Panchayat Chunav 2025: हाईकोर्ट का झटका, राजस्थान सरकार को पंचायत चुनाव टालने को लेकर लगाईं फटकार
aapkarajasthan August 20, 2025 12:42 AM

राजस्थान उच्च न्यायालय ने सोमवार को परिसीमन के नाम पर पंचायती राज संस्थाओं के चुनाव स्थगित करने के मामले में राज्य सरकार को बड़ा झटका दिया। न्यायालय ने कड़ी टिप्पणी करते हुए कहा कि चुनाव के लिए निर्धारित समय-सीमा का पालन न करना संविधान के उल्लंघन का प्रत्यक्ष उदाहरण है।

संवैधानिक समय-सीमा के भीतर चुनाव कराए जाएँ, अन्यथा आयोग हस्तक्षेप करे
यदि सरकार चुनाव नहीं कराती है, तो राज्य चुनाव आयोग की ज़िम्मेदारी है कि वह लोकतांत्रिक स्थानीय शासन व्यवस्था को बहाल करने के लिए हस्तक्षेप करे। चुनाव न कराने से स्थानीय शासन व्यवस्था में शून्यता पैदा होती है, जिसका सेवाओं के वितरण पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। न्यायालय ने उम्मीद जताई कि सरकार जल्द ही चुनाव कराएगी। न्यायालय ने प्रक्रिया का पालन किए बिना निलंबित पंचायत प्रशासकों को बहाल कर दिया, साथ ही कानूनी प्रक्रिया का पालन करते हुए दोबारा कार्रवाई करने की अनुमति भी दी।

मुख्य सचिव और चुनाव आयोग को भेजी गई आदेश की प्रति
न्यायाधीश अनूप कुमार ढांड ने महावीर प्रसाद गौतम व अन्य की 17 याचिकाओं पर यह आदेश दिया। न्यायालय ने इस मामले में त्वरित कार्रवाई के लिए आदेश की प्रति मुख्य सचिव और चुनाव आयोग को भी भेजी है।

पंचायती राज संस्थाओं के चुनाव पाँच वर्ष के भीतर कराना आवश्यक
अदालत ने कहा कि पंचायती राज संस्थाओं के चुनाव पाँच वर्ष के भीतर कराना आवश्यक है, चुनाव केवल 6 माह के लिए ही स्थगित किए जा सकते हैं। राज्य सरकार संवैधानिक प्रावधानों के अनुसार समय पर परिसीमन प्रक्रिया पूरी करने और समय पर चुनाव कराने के लिए बाध्य है।

याचिकाकर्ताओं का पक्ष सुनने के बाद कार्रवाई की अनुमति दी
सरकार ने पंचायतों के कार्य प्रबंधन के लिए निवर्तमान सरपंचों को प्रशासक नियुक्त किया था, लेकिन बाद में निर्धारित प्रक्रिया का पालन किए बिना उन्हें हटा दिया। अदालत ने याचिकाकर्ताओं का पक्ष सुनने के बाद दो माह में उन्हें बहाल कर दिया और कार्रवाई करने की अनुमति दे दी।

निलंबित प्रशासक बहाल
याचिकाओं में कहा गया है कि सरपंचों का कार्यकाल पूरा होने के बाद, चुनाव में देरी को देखते हुए विभाग ने 16 जनवरी को अधिसूचना जारी कर निवर्तमान सरपंचों को प्रशासक नियुक्त किया। बाद में, जांच और सुनवाई का अवसर दिए बिना ही उन्हें प्रशासक पद से हटा दिया गया। याचिका में नियुक्ति को वैध बताते हुए उन्हें हटाने की कार्रवाई को अवैध बताया गया है। राज्य सरकार ने इसका विरोध करते हुए कहा कि याचिकाकर्ताओं को प्रशासक के पद पर बने रहने का संवैधानिक अधिकार नहीं है। उनका पाँच साल का कार्यकाल पूरा हो चुका है और जाँच लंबित है। ऐसे में याचिकाएँ खारिज की जानी चाहिए।

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