श्रीमद्भगवद गीता में भक्ति के चार प्रकार: एक गहन अध्ययन
Gyanhigyan August 21, 2025 01:42 AM
श्रीमद्भगवद गीता का महत्व

हिंदू धर्म के प्रमुख ग्रंथों में से एक, श्रीमद्भगवद गीता, जीवन और भक्ति के गहरे रहस्यों को उजागर करता है। यह महाभारत का एक अभिन्न हिस्सा है, जिसमें भगवान श्रीकृष्ण और अर्जुन के बीच संवाद के माध्यम से जीवन का उद्देश्य, ईश्वर तक पहुँचने का मार्ग और भक्ति का स्वरूप स्पष्ट किया गया है।


भगवान श्रीकृष्ण की भक्ति के चार प्रकार

गीता के एक महत्वपूर्ण श्लोक (अध्याय 7, श्लोक 16) में भगवान श्रीकृष्ण ने बताया है कि उनकी भक्ति चार प्रकार के लोग करते हैं।


श्लोक:
“चतुर्विधा भजन्ते मां जनाः सुकृतिनोऽर्जुन।
आर्तो जिज्ञासुरर्थार्थी ज्ञानी च भरतर्षभ॥”


अर्थ:
हे अर्जुन! चार प्रकार के पुण्यात्मा लोग मेरी भक्ति करते हैं—



  • आर्त (दुखी) – जो रोग, संकट या किसी पीड़ा से ग्रस्त होकर भगवान की शरण में आते हैं और मुक्ति की प्रार्थना करते हैं।

  • जिज्ञासु (जिज्ञासु) – जो भगवान, संसार और आध्यात्मिक रहस्यों को जानने के लिए भक्ति करते हैं।

  • अर्थार्थी (संपत्ति चाहने वाले) – जिन्हें भौतिक सुख, धन, समृद्धि या परिवार की भलाई चाहिए।

  • ज्ञानी (ज्ञानवान) – जो बिना किसी मांग और स्वार्थ के, केवल प्रेम और श्रद्धा से भगवान की उपासना करते हैं।


  • ज्ञानी भक्त का महत्व

    इन चार प्रकार के भक्तों में, ‘ज्ञानी भक्त’ को श्रीकृष्ण ने सर्वोच्च स्थान दिया है। यह भक्त केवल ईश्वर के प्रति प्रेम और श्रद्धा से भक्ति करते हैं, बिना किसी व्यक्तिगत इच्छाओं के।


    © Copyright @2025 LIDEA. All Rights Reserved.