विघ्नहर्ता और बुद्धि के देवता के रूप में पूजे जाने वाले भगवान गणेश की पूजा हर शुभ कार्य के आरंभ में की जाती है। उनकी प्रतिमाओं में उनकी सूंड की दिशा हमेशा से चर्चा का विषय रही है। क्या आपने कभी सोचा है कि कुछ मूर्तियों की सूंड बाईं ओर और कुछ की दाईं ओर क्यों होती है? यह केवल एक डिज़ाइन नहीं है, बल्कि इसके पीछे गहरा धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व है। भगवान गणेश को वक्रतुंड कहा जाता है, अर्थात कभी उनकी सूंड बाईं ओर मुड़ी होती है, तो कभी दाईं ओर। दोनों रूपों का अलग-अलग धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व माना जाता है। आइए जानें कि घर और मंदिर में रखी जाने वाली गणेश प्रतिमाओं में सूंड की दिशा अलग-अलग क्यों होती है।
बाईं ओर सूंड वाले गणपतिघर में पूजा के लिए सर्वश्रेष्ठ
परंपरा के अनुसार, घरों में बाईं ओर मुड़ी हुई सूंड वाले गणेश की प्रतिमा रखना शुभ माना जाता है। ऐसा इसलिए है क्योंकि शरीर का बायाँ भाग हृदय और भावनाओं से जुड़ा होता है। यह जीवन की भौतिक और भावनात्मक वास्तविकताओं का प्रतिनिधित्व करता है।
शांति और सौम्यता का प्रतीक
बाईं ओर सूंड वाले गणेश जी शांत और सौम्य स्वभाव के माने जाते हैं। घर में इस मूर्ति की पूजा करने से परिवार में शांति, प्रेम और आपसी सद्भाव बना रहता है।
वैदिक परंपरा का प्रभाव
यह मान्यता वैदिक परंपरा से जुड़ी है, जहाँ गणपति के इस रूप को परिवार में समृद्धि और स्थिरता का कारक माना जाता है।
दाईं ओर सूंड वाले गणपतिमंदिरों और तांत्रिक परंपराओं में पूजे जाते हैं
मंदिरों में आमतौर पर दाईं ओर सूंड वाले गणेश जी की मूर्ति स्थापित की जाती है। शरीर का दाहिना भाग आध्यात्मिकता और ऊर्जा से जुड़ा माना जाता है। इसलिए तांत्रिक परंपराओं में इस रूप का विशेष महत्व है।
गतिशीलता और शक्ति का प्रतीक
यह रूप अत्यंत शक्तिशाली और सजग माना जाता है। ऐसा माना जाता है कि धन, संपत्ति और शक्ति की इच्छा रखने वाले व्यक्ति को दाईं सूंड वाले भगवान गणेश की पूजा करनी चाहिए।
सावधानी आवश्यक
शास्त्रों में कहा गया है कि इस रूप की पूजा विधि-विधान से करनी चाहिए। यही कारण है कि इसे सामान्य घरों के बजाय मंदिरों और विशेष साधना स्थलों में स्थापित किया जाता है।
सूर्य की दिशा का आध्यात्मिक संदेशगणेश की सूंड सदैव गतिशील रहती है, जो दर्शाती है कि वे सदैव सक्रिय रहते हैं। यह हमें सिखाती है कि जीवन में भी हमें सदैव कर्मठ और सतर्क रहना चाहिए।
बाईं सूंड: शांति, प्रेम, सौम्यता और पारिवारिक सुख का प्रतीक।
दाईं सूंड: शक्ति, आध्यात्मिकता, ऐश्वर्य और विजय का प्रतीक।