प्रेमानंद जी महाराज का जीवन दर्शन: कठिनाइयों में कैसे पाएं सच्चा सुख?
Stressbuster Hindi September 10, 2025 09:42 PM

प्रेमानंद जी महाराज का संदेश

Premanand Ji Maharaj (Image Credit-Social Media)

Premanand Ji Maharaj

प्रेमानंद जी महाराज: जीवन का मार्ग हमेशा सरल और सुखद नहीं होता। इसमें कभी-कभी कठिन रास्ते और कांटे भी मिलते हैं। ऐसे में यह सोचकर जीना कि कोई कठिनाई नहीं आएगी, गलत है। जब हालात कठिन होते हैं, तो इंसान टूटने लगता है। प्रेमानंद जी का संदेश इस समय में मार्गदर्शन करता है। उनका कहना है, 'भरोसा रखो, प्रभु सब संभाल लेंगे।' यही विश्वास साधक को हर मुश्किल से उबारता है।


माया की चाल को समझें माया की चाल को हल्का मत समझो


महाराज जी बताते हैं कि माया बहुत चालाक है। वह साधक को ऐसे प्रलोभनों में फंसाती है जो बाहरी रूप से आकर्षक लगते हैं, लेकिन वास्तव में खोखले होते हैं। इंसान सोचता है कि वह सुख में है, जबकि यह केवल माया का जाल है। धीरे-धीरे विवेक की आंखें बंद हो जाती हैं और जीवन परतंत्रता में बंध जाता है। महाराज चेतावनी देते हैं कि 'माया तुम्हें ऐसे सुखों में उलझाती है जो असल में उसके पास हैं ही नहीं। असली सुख तो प्रभु के चरणों में है।'


ईश्वर का सहारा ईश्वर ही सबसे बड़ा सहारा है

जब हालात बिगड़ते हैं, साधक अक्सर सोचता है कि सब कुछ हाथ से निकल गया। लेकिन प्रेमानंद जी का कहना है कि हर परिस्थिति पर प्रभु का नियंत्रण होता है। जैसे सर्दी में अचानक कोई कंबल डाल दे और राहत मिले, वैसे ही कठिन समय में प्रभु अपने भक्त को ढक लेते हैं। यही भरोसा साधक को निर्भय बनाता है। जैसे भगवान ने गोवर्धन पर्वत उठाकर अपने भक्तों को बचाया था, वैसे ही वे आज भी अपने भक्तों के लिए कवच बनकर खड़े रहते हैं।


नामस्मरण का महत्व शरीर में सांस की तरह होना चाहिए नामस्मरण

प्रेमानंद जी एक गहरा उदाहरण देते हैं। वे कहते हैं कि जैसे सांस रुकते ही बेचैनी होती है, वैसे ही ईश्वर का नाम रुकना भी साधक के लिए असहनीय होना चाहिए। नामस्मरण को भी उतना ही सहज होना चाहिए। यदि कभी मन से नाम छूट जाए, तो वही बेचैनी होनी चाहिए, जैसी सांस थम जाने पर होती है। तब ही नाम साधक के जीवन की धड़कन बन पाता है।


संकट का सामना परिस्थितियों से भागो मत, डटकर सामना करो

जीवन में ऐसे पल आते हैं जब संकट ही संकट नजर आता है। माया अपने प्रपंचों में जकड़ने लगती है। ऐसे समय प्रेमानंद जी का स्पष्ट संदेश है, भागना मत, डरो मत। डटकर सामना करो। जब मन यह ठान ले कि प्रभु ने हमें पकड़ रखा है, तो फिर सबसे विषम परिस्थिति भी साधारण हो जाती है। प्रभु कभी अपने भक्तों को निराश नहीं करते।


गुरु भक्ति का महत्व जीवन में सुख और शांति देता है गुरु भक्ति और श्रद्धा का बल


प्रेमानंद जी कहते हैं कि प्रभु की ओर बढ़ना कठिन नहीं है, लेकिन साधक इसे कठिन बना लेता है क्योंकि वह इंद्रिय भोगों में फंस जाता है। साधक के लिए सबसे जरूरी है दृढ़ श्रद्धा, गुरु भजन में तत्परता और भोग-विलास से दूरी। यही तीन बातें साधक को रास्ता दिखाती हैं और माया के जाल से दूर ले जाती हैं। जब श्रद्धा और गुरु भक्ति एक साथ मिल जाती हैं, तो साधक का मन इतना मजबूत हो जाता है कि कोई भी प्रलोभन उसे हिला नहीं पाता।


मान-अपमान की चिंता छोड़ें ईश्वर भक्ति में मान-अपमान की चिंता छोड़ दो

जीवन में हानि-लाभ, निंदा-प्रशंसा, मान-अपमान आते-जाते रहते हैं। लेकिन प्रेमानंद जी कहते हैं कि जिसने प्रभु को अपना मान लिया, उसके लिए ये बातें महत्वहीन हो जाती हैं। जब साधक सच में प्रभु को समर्पित हो जाता है तो हर परिस्थिति उसे शुभ ही लगती है। तब उसे यह भरोसा रहता है कि जो भी हो रहा है, प्रभु की योजना के अनुसार हो रहा है और वही अंततः मंगलकारी है।


माया का सुख क्षणिक है माया का सुख बेहद क्षणिक है

माया बार-बार साधक को लुभाने की कोशिश करती है। वह कहती है कि यह आनंद तुम्हारा है, यह भोग तुम्हारे लिए है। लेकिन महाराज समझाते हैं कि यह आनंद स्थायी नहीं, केवल भ्रम है। एक बार यदि साधक इस छलावे में फंस गया तो लौटना कठिन हो जाता है। यही कारण है कि साधक को हमेशा सतर्क रहना चाहिए और माया के सुख के पीछे भागने की बजाय ईश्वर के शाश्वत सुख को चुनना चाहिए।


भक्ति का सरल सूत्र प्रेमानंद जी का भक्ति का सरल सूत्र है

कई लोग सोचते हैं कि भक्त बनना कठिन है, इसके लिए बड़ी तपस्या करनी पड़ेगी। लेकिन प्रेमानंद जी कहते हैं कि भक्त बनने का सूत्र बहुत सरल है बस यह स्वीकार कर लो कि 'मैं प्रभु का हूं और प्रभु मेरे हैं।' यही भाव साधक को निर्भय बना देता है। जब यह भाव दृढ़ हो जाए तो साधक को किसी और सहारे की आवश्यकता नहीं रह जाती। प्रेमानंद जी की वाणी संत परंपरा से मेल खाती है। कबीरदास ने कहा था, 'दुख में सुमिरन सब करें, सुख में करे न कोय। जो सुख में सुमिरन करे, तो दुख काहे को होय।' इसका सीधा अर्थ यही है कि भक्ति हर समय होनी चाहिए, केवल संकट में नहीं।


जीवन का अंतिम सत्य प्रेमानंद जी ने बताया जीवन का अंतिम सत्य


महाराज याद दिलाते हैं कि एक दिन सबको प्रभु के घर जाना है। जब यह सच्चाई मन में बैठ जाती है तो साधक व्यर्थ के भोगों में फंसना छोड़ देता है। वह जो मिला है उसमें संतोष पाता है और अपने जीवन को प्रभु के नाम में अर्पित कर देता है। यही मार्ग उसे शांति और मुक्ति दोनों की ओर ले जाता है।

प्रेमानंद जी महाराज का संदेश सरल लेकिन अत्यंत गहरा है। जीवन में कठिनाइयां आएंगी, माया अपने जाल बिछाएगी, लेकिन साधक को केवल प्रभु पर भरोसा बनाए रखना है। सांस की तरह नामस्मरण करना है और हर हाल में विश्वास रखना है कि प्रभु जो करेंगे, वही मंगल होगा। भक्त वही है जो अपने हृदय से कह सके कि 'मैं प्रभु का हूं और प्रभु मेरे हैं।' इस भावना के साथ जब ईश्वर में हम आस्था रखते हैं तो भगवान सारे कष्ट हर लेते हैं।


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