भगवान परशुराम की कहानियाँ (सोशल मीडिया से)
भगवान परशुराम की कहानियाँभगवान परशुराम की कहानियाँ: भारत की पवित्र भूमि पर कई महान व्यक्तित्वों का जन्म हुआ है, जिनका जीवन केवल एक युग तक सीमित नहीं रहा। इन महापुरुषों के दिव्य रूपों का वर्णन धार्मिक ग्रंथों में मिलता है। इन्हें अष्टचिरंजीवी कहा जाता है, और भगवान परशुराम इनमें से एक हैं। वे हिंदू धर्म के सात अमर व्यक्तियों में से माने जाते हैं, जो आज भी जीवित माने जाते हैं।
परशुराम को भगवान विष्णु का छठा अवतार माना जाता है। उनके असली नाम के बारे में कोई स्पष्ट जानकारी नहीं है, लेकिन 'परशुराम' नाम उन्हें अपनी कुल्हाड़ी (परशु) के कारण मिला। वे न केवल युद्ध में अद्वितीय थे, बल्कि उन्होंने हजारों शिष्यों को शास्त्र और शस्त्र की शिक्षा भी दी। यही कारण है कि वे रामायण और महाभारत में विभिन्न रूपों में समाज का मार्गदर्शन करते हैं।
महाभारत काल में, परशुराम दक्षिण भारत में अपने आश्रम में निवास करते थे। जब जरासंध ने मथुरा पर आक्रमण किया, तब श्रीकृष्ण ने परशुराम से मिलने का निर्णय लिया। परशुराम ने उन्हें सुदर्शन चक्र प्रदान किया, जो आगे चलकर धर्म की रक्षा का एक महत्वपूर्ण अस्त्र बना।
परशुराम ने बचपन से ही ज्ञान और शक्ति की खोज की। उनके दादा ऋचीक और पिता जमदग्नि ने उन्हें वेद और शास्त्र पढ़ाए, जबकि युद्धकला का ज्ञान भगवान शिव से प्राप्त किया। शिव ने उन्हें एक दिव्य शस्त्र, फरसा, भी दिया। इसी फरसे की शक्ति से परशुराम ने अन्याय का अंत किया और हैहयवंशीय क्षत्रियों को 21 बार पराजित किया।
गणेशजी को एकदंत कहा जाता है, और उनके एक दांत टूटने की कहानी परशुराम से जुड़ी है। एक बार परशुराम कैलाश पर्वत पर भगवान शिव से मिलने गए, जहां उनका सामना गणेशजी से हुआ। गणेशजी ने उन्हें बिना पिता की अनुमति के भीतर जाने से रोका, जिससे परशुराम क्रोधित हो गए और उन्होंने गणेशजी पर वार किया। इस वार से गणेशजी का एक दांत टूट गया।
रामायण काल में, हनुमान जी ने परशुराम को चुनौती दी जब एक निर्दोष क्षत्रिय उनकी शरण में आया। युद्ध के दौरान हनुमान जी ने परशुराम को गदा से अचेत कर दिया। भगवान शिव ने इस संघर्ष को समाप्त किया।
परशुराम के जीवन में एक दुखद घटना ने उन्हें क्रोधित कर दिया। हैहयवंशी क्षत्रियों के राजा सहस्त्रबाहु के पुत्रों ने उनके पिता जमदग्नि की हत्या कर दी, और उनकी मां रेणुका ने पति के साथ सती होने का निर्णय लिया। इस घटना ने परशुराम को प्रतिशोध की प्रतिज्ञा लेने पर मजबूर किया।
परशुराम, जो भगवान विष्णु के छठे अवतार थे, राम पर क्रोधित हो गए जब उन्होंने शिवजी के धनुष को तोड़ दिया। लेकिन जब उन्होंने राम के भीतर विष्णु का दिव्य रूप देखा, तो उनका क्रोध शांत हो गया।
महाभारत में, अम्बा ने देवव्रत से प्रतिशोध की प्रतिज्ञा की और परशुराम से भीष्म को युद्ध की चुनौती दी। यह युद्ध कई दिनों तक चला, लेकिन कोई निर्णायक परिणाम नहीं निकला। अंततः देवताओं के हस्तक्षेप से यह युद्ध रुका।
कर्ण ने परशुराम से युद्ध कौशल सीखा, लेकिन जब परशुराम को कर्ण का छल पता चला, तो उन्होंने उसे श्राप दिया कि जब उसे इस विद्या की सबसे अधिक आवश्यकता होगी, वह इसे भूल जाएगा। यही श्राप महाभारत युद्ध में उसकी हार का कारण बना।
मां दुर्गा परशुराम के जीवन में शक्ति का स्रोत थीं। जब परशुराम ने अपने माता-पिता के दुख को सहा, तब देवी दुर्गा का स्मरण उन्हें मानसिक और आध्यात्मिक रूप से सशक्त बनाता था।