डोमन की जिंदगी में एक महत्वपूर्ण मोड़ तब आया जब उनकी पत्नी का अचानक निधन हो गया। इस घटना ने उनके जीवन में गहरा खालीपन छोड़ दिया, और उनके तीन छोटे बच्चे पूजा, महेश और शंकर अपनी मां के प्यार और देखभाल से वंचित रह गए। इस कठिनाई के बावजूद, डोमन ने इस पर्व को बंद करने के बजाय इसे आगे बढ़ाने का निर्णय लिया।
डोमन बताते हैं कि इस व्रत के दौरान उन्हें 24 घंटे तक न तो भोजन मिलता है और न ही जल। यह तपस्या उनके शरीर और मन पर भारी पड़ती है, लेकिन बच्चों की भलाई के लिए उनका संकल्प हर कठिनाई को पार कर जाता है। उनका मानना है कि भले ही उनकी पत्नी अब उनके साथ नहीं हैं, लेकिन बच्चों की परवरिश और आशीर्वाद देने की जिम्मेदारी वे पूरी निष्ठा से निभाते रहेंगे।