Digital Campaigning : बिहार में मुख्यमंत्री की रेस हाई-टेक, AI और YouTube तय करेंगे इस बार किसका होगा टिकट

News India Live, Digital Desk: Digital Campaigning : बिहार की चुनावी राजनीति हमेशा से ही बड़ी दिलचस्प और हलचल भरी रही है, है ना? लेकिन इस बार जो बदलाव देखने को मिल रहा है, वो थोड़ा अलग और हाई-टेक है! अगर आप सोच रहे हैं कि इस बार किसे पार्टी का टिकट मिलेगा या आपका पसंदीदा नेता चुनाव के मैदान में कैसे एंट्री मारेगा, तो आपको ये जानना होगा कि इस बार टेक्नोलॉजी एक बड़ा खेल खेलने वाली है. अब सिर्फ़ भाषण और जनसभाएं ही नहीं, बल्कि आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI), यूट्यूब और आईटी का इस्तेमाल करके भी नेता अपनी दावेदारी को ज़ोरदार तरीके से मज़बूत कर रहे हैं.बिहार चुनाव: नेताओं का 'डिजिटल दंगल', AI-यूट्यूब से पक्का कर रहे अपना टिकटये वो समय है जब चुनाव की गर्माहट बढ़ने लगती है और हर नेता अपनी पार्टी से टिकट पाने के लिए दिन-रात एक कर देता है. लेकिन इस बार की टिकट की दौड़ पहले से थोड़ी अलग और ज़्यादा तकनीकी है. अब नेता केवल पुराने, पारंपरिक तरीकों पर ही निर्भर नहीं रह रहे, बल्कि खुद को पार्टी और जनता के सामने सबसे बेहतर दावेदार साबित करने के लिए आधुनिक तकनीक का सहारा ले रहे हैं.तो आख़िर इस बार क्या नया है इस चुनावी खेल में?आजकल टिकट के लिए दावेदार अपना बायोडाटा भी बड़े नए अंदाज़ में बनवा रहे हैं. इसमें वे अपने किए हुए कामों का हिसाब तो दे ही रहे हैं, साथ में यूट्यूब के लिंक्स भी शामिल कर रहे हैं. इन लिंक्स में उनके सामाजिक कार्यों के वीडियो, उनकी रैलियों में भीड़, या जनता के बीच उनकी लोकप्रियता दिखाने वाले वीडियोज़ होते हैं. ऐसे कई युवा नेता जो विदेशों में बड़ी नौकरियां छोड़कर राजनीति में आए हैं, वे अपने बायोडाटा में अपनी तकनीकी समझ और सोशल मीडिया पर अपनी अच्छी पहचान का पूरा ज़िक्र कर रहे हैं.AI और डिजिटल का बढ़ रहा दबदबा:चुनाव आयोग भी आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) और डीपफेक तकनीक के बढ़ते इस्तेमाल पर नज़र रख रहा है और इन्हें लेकर कुछ दिशा-निर्देश भी जारी किए हैं, ताकि मतदाता किसी धोखे में न पड़ें. इससे पता चलता है कि नेता और राजनीतिक पार्टियाँ अब सोशल मीडिया का बहुत ध्यान से और रणनीतिक रूप से इस्तेमाल कर रहे हैं. बिहार कांग्रेस का एक उदाहरण सामने आया था, जहाँ पीएम मोदी की माँ से जुड़ा एक AI-जनरेटेड वीडियो वायरल हुआ था, जिसे बाद में हाई कोर्ट के कहने पर हटाना पड़ा था. यह घटना दिखाती है कि नेता अब सोशल मीडिया और AI की ताक़त को अच्छी तरह से समझ चुके हैं.कांग्रेस जैसी कुछ पार्टियों ने तो टिकट के लिए आवेदन भी ऑनलाइन मंगवाए हैं. इसमें आवेदन करने वालों को अपनी सक्रियता साबित करने के लिए अपने मौजूदा लोकेशन के साथ तस्वीरें और यूट्यूब वीडियो के लिंक देने पड़ रहे हैं. कई उम्मीदवारों ने तो अपने पक्ष में जनता की बाइट्स (लोगों के विचारों) के लिंक भी शेयर किए हैं. यह साफ़-साफ़ बताता है कि टिकट पाने की इस होड़ में हर कोई खुद को सबसे काबिल और जनता के बीच लोकप्रिय दिखाने के लिए हर डिजिटल दाँव अपना रहा है.अन्य पार्टियाँ और बीजेपी का तरीका:बीजेपी के टिकट के दावेदार ज़्यादातर खुद को पार्टी का वफादार सिपाही और प्रधानमंत्री मोदी की काम करने की शैली से प्रेरित बता रहे हैं. उनके बायोडाटा में 20-25 सालों से पार्टी से जुड़े होने और अलग-अलग पदों पर काम करने का ज़िक्र होता है. पंचायत और नगर निकाय चुनावों में जीते हुए नेता भी अब विधायक बनने का सपना देख रहे हैं. प्रशांत किशोर की जन सुराज पार्टी ने तो टिकट के लिए एक अलग ही तरीका अपनाया है; उन्होंने आवेदन शुल्क लेकर उम्मीदवारों का चयन करने की प्रक्रिया शुरू की है, जहाँ जनता की सीधी भागीदारी से प्रत्याशी चुने जाएंगे.यह सब बताता है कि बिहार में चुनावी जंग अब सिर्फ़ ज़मीन पर रैलियों और भाषणों तक ही सीमित नहीं है, बल्कि डिजिटल दुनिया में भी उतनी ही तेज़ी से लड़ी जा रही है. जो नेता टेक्नोलॉजी का ज़्यादा प्रभावी तरीके से इस्तेमाल करेगा, वही जनता तक अपनी बात पहुंचाने में कामयाब होगा और शायद टिकट की इस कठिन रेस में भी आगे निकल पाएगा