बच्चों से बड़ों तक लोग कई घंटे फोन चलाते रहते हैं और उन्हें पता ही नहीं चलता है कि कितना टाइम गुजर गया है. खासतौर पर मोबाइल टाइमिंग में सबसे ज्यादा वक्त लोग रील्स और शॉर्ट वीडियोज को स्क्रॉल करने में गुजार देते हैं. इससे शारीरिक एक्टिव नेस में कमी की वजह से स्टिफनेस, दर्द, पोस्चर का बिगड़ना जैसी दिक्कतें तो आम होती ही हैं, इसके अलावा रील देखने की लत मेंटल हेल्थ को भी प्रभावित करती है. आज के टाइम में ये एक गंभीर समस्या बनती जा रही है. लंबे समय तक स्क्रीन पर ध्यान लगाए रहने की वजह से मानसिक थकान होने के अलावा आंखों में जलन, खुजली, ड्राईनेस हो सकती है. जो लोग देर रात तक फोन चलाते हैं, उनमें नींद की कमी हो सकती है. रील्स किस तरह से आपकी मेमोरी को प्रभावित करती हैं, इस बारे में एक्सपर्ट से जानेंगे.
रील या फिर शॉर्ट वीडियो देखने की लत से समय की बर्बादी तो होती ही है, इससे शरीर कई बीमारियों का घर बनने लगता है, क्योंकि व्यक्ति इस दौरान एक ही पोस्चर में लंबे समय तक बैठा रहता है और लेजीनेस की वजह से मोटापा होना, पीठ, मकर में दर्द, गर्दन में अकड़न जैसी दिक्कतें हो सकती हैं. इससे फोकस और एकाग्रता भी प्रभावित होती है. चलिए जान लेते हैं इसका मेंटल हेल्थ पर क्या होता है असर.
क्या कहते हैं एक्सपर्ट?नारायणा अस्पताल, गुरुग्राम न्यूरो एवं स्पाइन सर्जरी एक्सपर्ट…डायरेक्टर एवं विभागाध्यक्ष डॉक्टर उत्कर्ष भगत का इस बारे में कहना है कि शार्ट वीडियो लगातार देखते रहने से ध्यान और याददाश्त दोनों पर नेगेटिव असर होता है, इसलिए बहुत जरूरी है कि इसलिए जरूरी है कि सीमित टाइम के लिए ही फोन चलाएं और इस दौरान वीडियोज या फिर रील देखने की टाइमिंग को भी कम करना ही सही रहता है.
फोकस नहीं रहता है सहीकिसी भी काम को सही तरीके से कम्पलीट करने के लिए जरूरी है कि फोकस सही रहे, लेकिन डॉ कहते हैं कि इंटरेस्टिंग कंटेंट, लगातार देखते रहने से ज्यादा जटिल कामों पर फोकस करना मुश्किल हो जाता है, जैसे बुक रीडिंग करना, किसी कठिन प्रोजेक्ट पर काम करते रहने की क्षमता का प्रभावित होता है.
कॉग्निटिव लोड का बढ़नाएक्सपर्ट कहते हैं कि अचानक से कॉन्टेक्स्ट-स्विचिंग होने से दिमाग पर बोझ बढ़ता है. इससे आपकी संज्ञानात्मक (सोचने-समझने की ताकत) क्षमता प्रभावित होती है. जैसे आप रील या शॉर्ट्स देख रहे हो और फिर आपको अपना फोकस शिफ्ट करके दूसरे काम पर लगाना पड़े तो इससे उस काम पर ध्यान बनाए रखना मुश्किल लगता है. एक ही कार्य पर ध्यान बनाए रखना मुश्किल हो जाता है.
अटेंशन कंट्रोल में कमी होनाडॉक्टर कहते हैं कि कुछ स्टडीज में भी पाया गया है कि शॉर्ट-फॉर्म वीडियो को ज्यादा देखने वाले लोगों में ध्यान केंद्रित करने में मुश्किल होती है और वह किसी भी तरह की काम में आने वाली रुकावट से बचने में कठिनाई महसूस करते हैं. इसके पीछे की वजह से बचने में कठिनाई दिमाग की रिवॉर्ड प्रणाली का अधिक उत्तेजित होना माना जाता है.
रिवॉर्ड सिस्टम का बदलनाज्यादातर प्लेटफार्म का कंटेंट डोपामाइन रिलीज को ट्रिगर करने का काम करता है, जो नशे जैसी लत वाली चीजों से काफी मिलता-जुलता है. जब आप ये वीडियोज कई घंटे देखते हैं तो लगातार डोपामाइन हिट मिलने से दिमाग की रिवॉर्ड प्रणाली असंवेदनशील हो सकती है, जिससे नॉर्मल एक्टिविटीज में एंजॉय कर पाना कठिन लगने लगता है. इसलिए मूड में चिड़चिड़ापन, एंग्जायटी जैसे लक्षण दिख सकते हैं.
क्या याददाश्त पर होता है असर?डॉक्टर उत्कर्ष भगत के मुताबिक, शार्ट वीडियोज में लगातार कंटेंट बदलता रहता है, जिससे वर्किंग मेमोरी (जानकारी को संभालने और उसे यूज करने की क्षमता) प्रभावित होती है. इसके अलावा प्रोस्पेक्टिव मेमोरी (याद रखना कि कोई प्लान किया गया काम कंप्लीट करना है) पर भी असर होता है.
याद रखने की क्षमता में कमीशॉर्ट-फॉर्म कंटेंट तेजी से जानकारी पहुंचाने में काफी फायदेमंद रहता है, लेकिन इसे लेकर कुछ अध्ययनों में कहा गया है कि इसकी तेज रफ्तार लंबे समय तक याददाश्त बनाए रखने और कठिन सब्जेक्ट को को समझने के लिए फेवरेबल (अनुकूल) नहीं होती है. यही बहुत जरूरी है कि रील्स को एक सीमित मात्रा में ही स्क्रॉल करें. अपने लिए रोजाना एक लिमिट तय करें. ज्यादा स्क्रीन टाइम स्किन को भी बूढ़ा बनाता है साथ ही आंखों पर भी बुरा असर होता है.