जिले में परिवारवाद की राजनीति लगातार बढ़ती जा रही है। कई बड़े नेता, जिनमें मंत्री और विधायक शामिल हैं, आगामी चुनावों में अपने पुत्रों और पुत्रियों को राजनीतिक मान्यता दिलाने और स्थापित करने की कोशिश में लगे हुए हैं। इस प्रवृत्ति ने पार्टी संरचना और संगठनात्मक प्रक्रियाओं पर भी असर डाला है।
राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि जिले में परिवारवाद का यह बढ़ता रुझान लोकतांत्रिक मूल्य और पार्टी आंतरिक लोकतंत्र को कमजोर कर सकता है। उन्होंने बताया कि जब सत्ता और पद केवल परिवार के सदस्यों तक सीमित रह जाते हैं, तो पार्टी के अन्य मेहनती और वरिष्ठ कार्यकर्ताओं में असंतोष और निराशा पैदा होती है।
जीतन राम मांझी की पार्टी पहले से ही पारिवारिक पार्टी के रूप में जानी जाती है। पार्टी के भीतर निर्णय प्रक्रिया और उम्मीदवार चयन में परिवार के प्रभाव के कारण अन्य नेताओं और कार्यकर्ताओं में मतभेद देखा जा रहा है। इस पार्टी मॉडल ने जिले में परिवारवाद को और भी बढ़ावा दिया है।
वहीं अन्य प्रमुख नेता भी अपने बच्चों को राजनीतिक मंच पर आगे बढ़ाने के प्रयास में हैं। इसका असर केवल उम्मीदवार चयन तक ही सीमित नहीं है, बल्कि पार्टी के भीतर पदोन्नति और निर्णय लेने की प्रक्रियाओं में भी देखा जा रहा है। ऐसे कदमों से पार्टी में आंतरिक विवाद और असंतोष की स्थिति पैदा हो रही है।
स्थानीय लोगों का कहना है कि यदि परिवारवाद की राजनीति ऐसे ही बढ़ती रही, तो सामान्य कार्यकर्ता और योग्य उम्मीदवार पीछे रह जाएंगे। जनता में भी यह धारणा बन रही है कि राजनीतिक सत्ता और प्रभाव केवल कुछ परिवारों तक सीमित रह गया है।
राजनीतिक विशेषज्ञों का कहना है कि बिहार के कई हिस्सों में परिवारवाद का यह बढ़ता चलन राजनीतिक स्थिरता और विकास योजनाओं पर भी असर डाल सकता है। जब निर्णय केवल परिवारिक हितों पर आधारित हों, तो जनता की समस्याओं और क्षेत्रीय विकास की प्राथमिकताओं पर ध्यान कम दिया जाता है।
पार्टी सूत्रों का कहना है कि कई नेताओं के पुत्रों और पुत्रियों को आगे बढ़ाने के प्रयासों के कारण पार्टी संगठन में संतुलन और पारदर्शिता बनाए रखना चुनौतीपूर्ण हो गया है। उन्होंने सुझाव दिया कि राजनीतिक दलों को उम्मीदवार चयन और पदोन्नति में योग्यता और अनुभव को प्राथमिकता देनी चाहिए, न कि केवल पारिवारिक संबंधों को।
इस प्रकार, गया जिले में परिवारवाद की राजनीति ने न केवल पार्टी संगठन में विवाद को जन्म दिया है बल्कि आम जनता के बीच भी सकारात्मक दृष्टिकोण को प्रभावित किया है। आगामी चुनावों में यह देखना दिलचस्प होगा कि जनता और पार्टी कार्यकर्ता इस प्रवृत्ति पर क्या प्रतिक्रिया देते हैं और परिवारवाद के बढ़ते प्रभाव के बावजूद लोकतांत्रिक प्रक्रियाएं कितनी प्रभावी रहती हैं।