Govardhan Puja 2025: हर साल दिवाली के अगले दिन लोग गोवर्धन पूजा का त्योहार मनाते हैं. ये त्योहार हर साल कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि के दिन मनाया जाता है. गोवर्थन पूजा का पर्व लोग मथुरा सहित देश भर में उत्साह के साथ मनाते हैं. इस शुभ अवसर पर गोवर्धन पर्वत की पूजा-अर्चना की जाती है. इस दिन भगवान कृष्ण और गायों की भी पूजा की जाती है. गायों को चारा खिलाया जाता है.
इस दिन 56 भोग बनाए जाते हैं. इस दिन पूजा करने करने वाले अपने सभी दुखों से मुक्त हो जाते हैं. साथ ही उनको भगवान कृष्ण की कृपा और आशीर्वाद प्राप्त होता है. भगवान कृष्ण ने ब्रजवासियों को देवराज इंद्र के प्रकोप से बचाया था. ब्रजवासियों को देवराज इंद्र के प्रकोप से बचाने के लिए उन्होंने अपनी उंगली पर पूरा गोवर्धन पर्वत उठा लिया था. भगवान की उसी लीला की याद में लोग ये त्योहार मनाते हैं. ऐसे में आइए पढ़ते हैं गोवर्धन पर्वत की कथा.
कब है गोवर्धन पूजा? (Kab Hai Govardhan Puja 2025)वैदिक पंचांग के अनुसार, इस साल कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि की शुरुआत 21 अक्टूबर को शाम 05 बजकर 54 मिनट पर हो रही है, जिसका समापन 22 अक्टूबर को रात 08 बजकर 16 मिनट पर होगा. ऐसे में इस साल गोर्वधन पूजा 22 अक्टूबर को है. इस दिन पूजा करने का शुभ मुहूर्त सुबह 06 बजकर 20 मिनट से शुरू होगा, जोकि 08 बजकर 38 मिनट तक रहेगा. वहीं दूसरा मुहूर्त दोपहर 03 बजकर 13 मिनट से शुरू होगा. ये शाम 05 बजकर 49 मिनट तक रहेगा.
गोवर्धन पर्वत की कथा ( Govardhan Parvat Ki Katha)गोवर्धन पर्वत का वर्णन श्रीमद्भागवत पुराण में किया गया है. पौराणिक कथा के अनुसार, एक समय पर देवताओं के राजा इंद्र को घंमड हो गया था. ऐसे में भगवान कृष्ण ने देवराज का घंमड तोड़ने के लिए लीला की. एक दिन सभी ब्रजवासी देवराज इंद्र के पूजन की तैयारी में लगे थे. कई तरह के पकवान बनाए जा रहे थे. इसी दैरान भगवान कृष्ण ने माता यशोदा से पूछा कि सभी ब्रजवासी किस तैयारी में लगे हैं.
इस पर माता यशोदा ने भगवान कृष्ण को बताया कि सभी इंद्र देव पूजा की तैयारी में लगे हैं. इस पर भगवान कृष्ण ने माता यशोदा से पूछा कि इंद्र देव पूजा क्यों की जाती है. तब माता यशोदा ने कहा कि इस पूजा से देवराज इंद्र प्रसन्न होते हैं और अच्छी वर्षा करते हैं, जिससे पैदावार अच्छी होती है. इस पर भगवान कृष्ण ने कहा कि वर्षा करना तो देवराज इंद्र का काम है.
भगवान ने कहा कि अगर किसी की पूजा की जानी चाहिए तो वो गोवर्धन पर्वत की, क्योंकि वहां हमारी गायें चरती हैं. इसके बाद ब्रज के सभी लोग इंद्र देव की पूजा छोड़ गोवर्धन पर्वत को पूजने लगे. इससे देवराज इंद्र क्रोधित हुए और भीषण वर्षा करनी शुरू कर दी. फिर देवराज इंद्र के प्रकोप से ब्रज के लोगों को बचाने के लिए भगवान कृष्ण ने अपनी छोटी उंगली पर गोवर्धन पर्वत उठा लिया.
सभी ब्रज के लोग गोवर्धन पर्वत के नीचे आ गए. इसके बाद देवराज इंद्र को अपनी गलती का अहसास हुआ. फिर उसी समय से गोर्वधन पर्वत का पूजन शुरू हो गया.
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