Deepotsav : अयोध्या की अनोखी परंपरा ,क्यों दिवाली पर राम से पहले होती है हनुमान की पूजा?

News India Live, Digital Desk: दिवाली का त्योहार भगवान राम के 14 वर्षों के वनवास के बाद अयोध्या लौटने की खुशी में मनाया जाता है. इस दिन हर घर में दीये जलाए जाते हैं, खुशियाँ मनाई जाती हैं और भगवान गणेश और माँ लक्ष्मी के साथ--साथ भगवान राम की भी पूजा की जाती है. लेकिन क्या आप जानते हैं कि अयोध्या में, जहाँ के राम राजा हैं, वहाँ दिवाली की पूजा की एक बहुत ही अनोखी और सदियों पुरानी परंपरा है?यह परंपरा है हनुमानगढ़ी में भगवान हनुमान की पूजा करने की. मान्यता है कि अयोध्या में अगर कोई भी शुभ काम करना है, या भगवान राम का आशीर्वाद पाना है, तो उससे पहले उनके परम भक्त हनुमान जी की आज्ञा और कृपा लेनी ज़रूरी है.अयोध्या के रक्षक हैं हनुमानपौराणिक कथाओं के अनुसार, जब भगवान राम रावण का वध करके अयोध्या लौटे, तो उन्होंने अपने सबसे प्रिय भक्त हनुमान को रहने के लिए एक स्थान दिया, जो आज 'हनुमानगढ़ी' के नाम से प्रसिद्ध है. उन्होंने हनुमान को यह ज़िम्मेदारी भी सौंपी कि वे हमेशा अयोध्या और उनके भक्तों की रक्षा करेंगे. हनुमान जी एक ऊँचे टीले पर विराजमान हो गए ताकि वे पूरी अयोध्या पर नज़र रख सकें. इसी वजह से उन्हें 'अयोध्या का कोतवाल' भी कहा जाता है.राम का आदेश, सबसे पहले हनुमान का सम्मानमाना जाता है कि यह परंपरा स्वयं भगवान राम ने ही शुरू की थी. उन्होंने कहा था कि जो कोई भी मेरे दर्शन करने अयोध्या आएगा, उसे पहले मेरे भक्त हनुमान के दर्शन करने होंगे. जो हनुमान की पूजा करेगा, उसी पर मेरी कृपा बरसेगी. बस तभी से यह अटूट परंपरा चली आ रही है.दिवाली के दिन अयोध्यावासी सबसे पहले हनुमानगढ़ी जाकर बजरंगबली के दर्शन करते हैं, उनका पूजन करते हैं और 'रामकाज' की शुरुआत के लिए उनसे अनुमति माँगते हैं. यहाँ तक कि अयोध्या में दिवाली के पहले दीये भी हनुमानगढ़ी में ही जलाए जाते हैं. हनुमान जी की आरती के बाद ही बाकी मंदिरों और घरों में दीपोत्सव शुरू होता है.यह परंपरा सिर्फ एक रीति-रिवाज नहीं है, बल्कि यह भक्ति के सबसे सुंदर रूप को दर्शाती है. यह बताती है कि भगवान भी अपने भक्तों को कितना सम्मान देते हैं. अयोध्या की यह अनोखी परंपरा गुरु और शिष्य, भगवान और भक्त के अटूट रिश्ते का सबसे बड़ा प्रतीक है.