मुंबई में 21 अक्टूबर 1931 को जन्मे शम्मी कपूर ने 1950 और 60 के दशक में बॉलीवुड में एक नई लहर का आगाज़ किया। कपूर परिवार से संबंध रखते हुए, उन्होंने अपने बड़े भाई राज कपूर और पिता पृथ्वीराज कपूर की परंपरा को अपने अनोखे अंदाज में आगे बढ़ाया।
अपने करिश्माई व्यक्तित्व और मस्तमौला डांस के जरिए, शम्मी ने हिंदी सिनेमा में एक नया रंग भरा, जो आज भी लोगों के दिलों में बसा हुआ है।
उनका फिल्मी करियर 1953 में 'जीवन ज्योति' से शुरू हुआ, लेकिन असली पहचान उन्हें 1957 में 'तुमसा नहीं देखा' से मिली, जिसने उन्हें एक रोमांटिक हीरो के रूप में स्थापित किया।
1961 की 'जंगली' और 1964 की 'काजल' जैसी फिल्मों में उनके रॉक-एन-रोल डांस मूव्स ने युवाओं को दीवाना बना दिया।
उनके हिट गाने जैसे 'दिल के झरोखे में', 'ये चांद सा रोशन चेहरा', और 'आजा आजा मैं हूं प्यार तेरा' ने संगीत और सिनेमा को नई ऊंचाई पर पहुंचाया।
1960 के दशक में 'तीसरी मंजिल', 'एन इवनिंग इन पेरिस,' और 'ब्रह्मचारी' जैसी फिल्मों ने उन्हें सुपरस्टार बना दिया।
मोहम्मद रफी की आवाज उनके लिए एकदम उपयुक्त थी, और दोनों ने मिलकर कई हिट गाने दिए। 1974 में 'मंजिल' के बाद, उन्होंने लीड रोल से दूरी बना ली, लेकिन कई फिल्मों में कैमियो कर अपने फैंस को चौंकाया।
शम्मी कपूर का मानना था कि सिनेमा में सफलता का राज है—खुद को समय के साथ बदलना। उन्होंने पश्चिमी संगीत और नृत्य को भारतीय सिनेमा में शामिल किया, जो उनके फैंस के लिए एक क्रांति थी।
उनका मस्तीभरा अंदाज, लंबे बाल और रंगीन शर्ट्स आज भी फैशन आइकन के रूप में याद किए जाते हैं।
भारतीय सिनेमा में 'विद्रोही स्टार' की उपाधि पाने वाले शम्मी कपूर की अनूठी शख्सियत को रऊफ अहमद की किताब 'शम्मी कपूर: द गेम चेंजर' में बखूबी दर्शाया गया है।
इस किताब में एक मशहूर किस्सा है, जब उन्होंने एक दुर्घटना को अपने करिश्मे में बदलकर फिल्म के एक आइकोनिक सीन को अमर कर दिया।
यह वाकया 1964 की सुपरहिट फिल्म 'कश्मीर की कली' के एक रोमांटिक गाने "ये चांद सा रोशन चेहरा" की शूटिंग के दौरान हुआ।
शम्मी कपूर अपनी सिग्नेचर डांसिंग स्टाइल के लिए जाने जाते थे, जिसे वह 'फ्रीस्टाइल' या 'याहू' डांस कहते थे।
गाना पूरी ऊर्जा के साथ फिल्माया जा रहा था, जब शम्मी कपूर का संतुलन बिगड़ गया और वह झील के बर्फीले पानी में गिरने लगे। उन्होंने जानबूझकर खुद को झील में धकेल दिया और मुस्कुराते हुए तैरकर वापस आए।
यह सब कुछ एक ही 'अनकट' शॉट में कैद हो गया, और यह सीन शम्मी कपूर के करियर के सबसे यादगार दृश्यों में से एक बन गया।
यह किस्सा इस बात का प्रमाण है कि शम्मी कपूर केवल एक अभिनेता नहीं थे, बल्कि एक ऐसे कलाकार थे जिन्होंने अभिनय और जीवन के बीच की रेखा को धुंधला कर दिया।