असरानी सिर्फ कॉमेडियन नहीं थे, अमिताभ बच्चन की फिल्मों के भी अहम किरदार रहे
TV9 Bharatvarsh October 21, 2025 12:42 PM

दिवंगत अभिनेता असरानी को हिंदी फिल्मों का एक कॉमेडियन कलाकार मान लिया जाता है. उन्होंने बहुत सारी फिल्मों में ऐसी भूमिकाएं की हैं, जिसके चलते उनकी छवि एक कॉमेडियन वाली बन गई. शोले में अंग्रेजों के जमाने का जेलर एक ऐसा ही किरदार था, जिसे लोग कभी नहीं भूल सकते. कहानी में जेलर की भूमिका की कोई खास दरकार नहीं थी, फिर भी असरानी शोले के ऐतिहासिक पात्रों में गिने जाते हैं. विश्व प्रसिद्ध तानाशाह हिटलर के हास्य रूपक उन्होंने अपने अंदाज में प्रस्तुत किया. इस फिल्म के बाद उन्हें हंसाने वाले रोल बहुत मिले.

आप को बताएं कि असरानी ने तकरीबन सौ से अधिक फिल्मों में काम किया है. लेकिन उनके निभाए किरदारों पर अगर एक नजर डालें तो वो केवल कॉमेडी करने वाले नहीं ठहरते. अगर कॉमेडी करते भी हैं तो कहानी में अपनी उपस्थिति के प्रति सचेत रहते हैं. उनके किरदार ना केवल कहानी को आगे बढ़ाने वाले रहे बल्कि मुख्य हीरो के सहायक भी रहे. उनकी फिल्मों के हीरो चाहे धर्मेंद्र हों, राजेश खन्ना हों या अमिताभ बच्चन या कि जितेंद्र आदि.

दिग्गज अभिनेताओं को दी टक्कर

सामान्य कद काठी के असरानी इन जैसे दिग्गज अभिनेताओं के आगे कभी हल्के नहीं पड़े. उन्होंने पुणे फिल्म प्रशिक्षण संस्थान से अभिनय का कोर्स किया था. उनके साथ पढ़ने वालों में जया बच्चन भी थीं. जया बच्चन के साथ असरानी की कई फिल्में हैं. उनमें ऋषिकेश मुखर्जी की फिल्म अभिमान अमिताभ-जया के साथ एक यादगार फिल्म है. इस फिल्म में असरानी की भूमिका हास्य कलाकार की नहीं बल्कि एक चरित्र अभिनेता की थी. चंदर बने असरानी अमिताभ-जया के बीच एक अहम कड़ी थे. फिल्म की कहानी में जब अमिताभ और जया के बीच तनाव होते हैं तब असरानी उस उलझन को सुलझाने वाली अहम भूमिका में होते हैं. इसके अलावा भी असरानी अमिताभ बच्चन की अन्य फिल्में मिली, चुपके चुपके, नमक हराम, हेरा फेरी और खून पसीना आदि में यादगार छाप छोड़ जाते हैं.

शानदार अभिनय से बनाई अलग पहचान

ऋषिकेश मुखर्जी की कई फिल्मों में असरानी एक चरित्र अभिनेता की तरह नजर आते हैं. उनकी अमिताभ-रेखा की फिल्म थी- आलाप, जिसमें असरानी ने गणेशी का न भूलने वाला छोटा सा किरदार निभाया था. इसी तरह जया बच्चन की पहली फिल्म गुड्डी में उन्होंने कुंदन का किरदार निभाया था. इस फिल्म में जया के साथ धर्मेंद्र और उत्पल दत्त जैसे बड़े कलाकार भी थे. असरानी ने एक बार गुड्डी की कहानी शेयर करते हुए कहा था कि ऋषिकेश मुखर्जी जया जी को खोजने के लिए पुणे आ पहुंचे. जया तो पहले नहीं मिली. मैं सामने टकरा गया. मेरे माध्यम से ही जया और ऋषिकेश मुखर्जी की मुलाकात हुई. इसके बाद जया को गुड्डी मिली. इसके एवज में ऋषि दा ने उनको अपने साथ आगे कई फिल्मों में रोल दिए. खास बात ये कि ऋषिकेश मुखर्जी की ज्यादातर फिल्मों में असरानी हमेशा चरित्र कलाकार की भूमिका निभाते दिखते हैं.

कॉमेडी कैरेक्टर में छाए असरानी

इसी तरह गुलजार की लिखी और निर्देशित फिल्म खुशबू में असरानी एक बार फिर चरित्र कलाकार की तरह नजर आते हैं. यह फिल्म भी शोले के साल यानी सन् 1975 में आई थी. इसमें जितेंद्र और हेमा मालिनी ने मुख्य भूमिकाएं निभाई थी. हालांकि अस्सी के दशक में जब जितेंद्र-श्रीदेवी-जया प्रदा-कादर खान-शक्तिकपूर की टीम वाली फिल्में आने लगीं तो असरानी भी उसमें हास्य बिखेरते नजर आए थे. दरअसल असरानी की हास्य प्रधान भूमिकाएं शोले के बाद फोकस में आने लगी थीं. चूंकि अंग्रेजों के ज़माने का जेलर इतना लोकप्रिय हुआ कि आगे चलकर निर्देशकों ने उनको कॉमेडी कैरेक्टर के रूप में लेने में ज्यादा दिलचस्पी दिखाई.

असरानी की यादगार फिल्में

असरानी को जितने भी रोल मिले, उन सभी को उन्होंने जीवंत बना दिया. उनके निभाए किरदार एक्टिंग के लिए कोर्स का अहम हिस्सा हैं. उनकी अन्य यादगार फिल्मों में अनहोनी, कोशिश, पिया का घर, परिचय, वावर्ची, पुष्पांजली, सत्यकाम, विदाई में डबल रोल, रोटी, चोर मचाए शोर आदि है. उन्होंने हाल-हाल तक कुछ फिल्मों में काम किया. मसलन शाकालाका बूम बूम, भूल भुलैया, मालामाल वीकली, भागम भाग, गरम मसाला आदि.

निर्देशन में भी आजमाया हाथ

गौरतलब है कि असरानी केवल अभिनय तक सीमित नहीं रहे. उन्होंने अपने करियर से हासिल अनुभव को अपने निर्देशन में भी उतारने की कोशिश की. कुछ फिल्में डायरेक्ट कीं- उनमें एक सबसे अहम है सन् 1977 की चला मुरारी हीरो बनने. इसमें वो खुद हीरो भी थे. इस फिल्म पर विस्तार से चर्चा फिर कभी. असरानी को गाने का भी शौक था. अगर आपने किशोर कुमार का वो गाना सुना हो- मन्नू भाई मोटर चली पम पम पम… इसमें असरानी ने भी आवाज दी थी. यानी असरानी एक बहुमुखी प्रतिभा के धनी कलाकार थे. नए अभिनेताओं को उनकी फिल्मों में निभाए किरदारों को गौर से देखना चाहिए और चरित्र में कैसे समा जाते थे, उसे सीखना चाहिए.

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