केंद्रीय जांच ब्यूरो (CBI) ने एक चौंकाने वाले मामले में उत्तर प्रदेश के एक व्यक्ति के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की है, जिस पर आरोप है कि उसने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नाम का दुरुपयोग करते हुए “Centre for Narendra Modi Studies” और “NaMo Kendra” नाम से एक फर्जी संस्था चलाई। यह संस्था खुद को प्रधानमंत्री से जुड़ा संगठन बताकर लोगों को भ्रमित कर रही थी और कथित तौर पर उनसे धन जुटाने का प्रयास कर रही थी।
CBI के अनुसार, आरोपी ने इस संस्था को ऐसे प्रस्तुत किया जैसे यह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में चल रहे सरकारी कार्यक्रमों और योजनाओं पर शोध व जनजागरूकता का काम करती हो। संस्था ने अपने प्रचार में दावा किया कि वह “प्रधानमंत्री के विज़न और नीतियों पर अध्ययन” करने वाला केंद्र है, जबकि जांच में यह सब मनगढ़ंत निकला।
जांच एजेंसी को यह मामला तब सौंपा गया जब प्रधानमंत्री कार्यालय (PMO) को इस तथाकथित केंद्र की गतिविधियों के बारे में शिकायतें मिलने लगीं। शिकायतों में कहा गया कि “Centre for Narendra Modi Studies” नामक संगठन सरकारी स्वीकृति के बिना प्रधानमंत्री के नाम का उपयोग कर रहा है और इससे लोगों को यह गलत धारणा दी जा रही है कि संस्था का संबंध सीधे सरकार या प्रधानमंत्री कार्यालय से है।
CBI की प्रारंभिक जांच में सामने आया कि संस्था के दस्तावेज, वेबसाइट और पते सभी फर्जी थे। आरोपी व्यक्ति ने खुद को इस संगठन का संस्थापक और अध्यक्ष बताया था और देशभर में इसके कई शाखाओं की घोषणा की थी। इसके अलावा, उसने “NaMo Kendra” नाम से ऑनलाइन और ऑफलाइन दोनों माध्यमों में प्रचार किया, जिससे आम नागरिकों को लगा कि यह केंद्र प्रधानमंत्री की किसी आधिकारिक पहल का हिस्सा है।
एजेंसी ने आरोपी के खिलाफ भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 419 (छल), 420 (धोखाधड़ी), 468 (कूटरचना), 471 (फर्जी दस्तावेजों का उपयोग) और आईटी अधिनियम की धाराओं के तहत मामला दर्ज किया है।
सूत्रों के अनुसार, आरोपी ने इस फर्जी संगठन के माध्यम से लोगों से “सदस्यता शुल्क”, “प्रशिक्षण कार्यक्रम” और “फ्रेंचाइज़ी” देने के नाम पर रकम मांगी थी। कई लोगों ने इस पर भरोसा कर भुगतान भी किया, क्योंकि संस्था का नाम प्रधानमंत्री मोदी से जुड़ा हुआ लग रहा था।
CBI अब संस्था के बैंक खातों, वेबसाइट रजिस्ट्रेशन डिटेल्स और डिजिटल कम्युनिकेशन की जांच कर रही है। एजेंसी यह भी पता लगा रही है कि आरोपी के साथ और कौन-कौन लोग इस फर्जीवाड़े में शामिल थे और क्या इसके तार किसी बड़े नेटवर्क से जुड़े हैं।
यह मामला एक बार फिर इस बात की याद दिलाता है कि डिजिटल युग में नाम और ब्रांड की प्रतिष्ठा का गलत इस्तेमाल कितनी आसानी से किया जा सकता है। विशेषज्ञों का कहना है कि आम जनता को किसी भी संस्था या संगठन के दावे पर भरोसा करने से पहले उसकी वैधता की जांच करनी चाहिए, खासकर तब जब वह सरकार या किसी प्रमुख व्यक्ति के नाम से जुड़ा हुआ हो।
CBI ने लोगों से अपील की है कि ऐसे किसी भी संदिग्ध संगठन की जानकारी तुरंत संबंधित अधिकारियों को दें ताकि भविष्य में इस तरह की धोखाधड़ी को रोका जा सके।