आगरा का पेठा आज उत्तर भारत की सबसे ज्यादा पहचानी जाने वाली मिठाइयों में गिना जाता है. यह ताजमहल जितना मशहूर तो नहीं है लेकिन उससे कम भी नहीं. रेलवे स्टेशनों से लेकर हाईवे ढाबों और शहर के हर पुराने बाजार में पेठे की दुकानें शहर की पहचान बन चुकी हैं. लेकिन एक लोकप्रिय सवाल बार-बार सामने आता है. क्या आगरा का पेठा मुगलों की मिठाई है या उनकी देन है? इसे पहली बार किसने बनाया, और यह पूरे भारत में कैसे फैला?
पेठा को लेकर लोककथाओं और दुकानों की कहानियों में सबसे आम दावा यह मिलता है कि इसे मुगल दरबार में विकसित किया गया. ताजमहल के निर्माण काल में शाहजहां के रसोइयों ने मजदूरों के लिए हल्की, टिकाऊ और पौष्टिक मिठाई की खोज की, और तब पेठा बना. कुछ कथाएं यह भी कहती हैं कि इसका रंग-रूप ताजमहल के संगमरमर जैसा रखने का प्रयास भी किया गया था. चूंकि आगरा मुगलों की राजधानी रही है, ऐसे में इस कहानी पर लोग भरोसा भी कर लेते हैं.
मुगलों का पेठे से क्या है संबंध?ऐतिहासिक स्रोतों में पेठे का मुगल-दरबार से सीधा, प्रमाणिक उल्लेख न के बराबर मिलता है. मध्यकालीन फारसी दफ्तरी साहित्य या मुगल दरबार के खाद्य-व्यंजनों की विस्तृत सूचियों में आगरा का पेठा नाम से स्पष्ट संदर्भ नहीं मिलता. इसका मतलब यह नहीं कि मुगल काल में यह नहीं बनता था. संभावना है कि स्थानीय तौर पर कद्दू आधारित मीठी वस्तुएं बनती रही हों, लेकिन पेठे को मुगल दरबारी आविष्कार बताने वाले दावों के ठोस, समकालीन दस्तावेज कम हैं.
इसलिए अधिक संतुलित निष्कर्ष यही है कि पेठा आगरा और उसके आस-पास के खाद्य-परिदृश्य में मुगल काल के दौरान मौजूद रहा हो सकता है, पर मुगल दरबार द्वारा आधिकारिक रूप से ईजाद किए जाने का दावा लोककथा अधिक प्रतीत होता है. आगरा का शहरी-सांस्कृतिक परिवेश जहां मुगल प्रशासन, कारीगरी, व्यापार और विभिन्न समुदायों का मेल था, ने पेठे जैसी वस्तु को पनपने का अनुकूल माहौल अवश्य दिया.
ताजमहल के कारण भी यहां आने वाले पर्यटकों के जरिए पेठा खूब प्रसिद्ध हुआ.
पेठे की मूल सामग्री और तकनीकपेठा सफेद कद्दू से बनता है. कद्दू को छीलकर, बीज हटाकर टुकड़ों में काटा जाता है. चूना-जल या फिटकरी पानी में भिगोकर टुकड़ों को कड़क और पारदर्शी बनावट देने की तैयारी की जाती है. फिर टुकड़ों को उबालकर चीनी की चाशनी में पकाया जाता है, ताकि भीतर तक मिठास और हल्की पारदर्शिता आ जाए. अंत में उन्हें सूखाकर संग्रहण योग्य बना दिया जाता है. यह प्रक्रिया मिठाई को अपेक्षाकृत दीर्घकालीन टिकाऊ बनाती है. यात्रा, व्यापार और उपहार में देने के लिहाज से यह बड़े काम की मिठाई है.
आगरा का पेठा क्यों मशहूर हुआ?
मुगल बादशाह शाहजहां.
पहली बार किसने बनाया?आगरा का पेठा पहली बार किसने बनाया, यह प्रश्न अक्सर एकल-व्यक्ति या एकल-दुकान के नाम से जोड़ दिया जाता है. कई प्रतिष्ठित पुरानी दुकानों के अपने-अपने दावे हैं कि उनके पूर्वजों ने पेठे को परिष्कृत रूप दिया. परंतु, खाद्य इतिहास की प्रकृति ऐसी है कि अधिकतर पारंपरिक व्यंजन सामुदायिक नवाचार का परिणाम होते हैं. स्थानीय किसानों, हलवाइयों, रसोइयों और व्यापारियों के दीर्घकालीन प्रयोगों से कोई विधि स्थिर होती है. इसलिए अधिक यथार्थवादी उत्तर यह है कि पेठा किसी एक व्यक्ति की एकबारगी खोज नहीं, बल्कि आगरा-क्षेत्र में कद्दू आधारित मिठाइयों के क्रमिक विकास का परिणाम है. समय के साथ हलवाइयों ने चाशनी की परत, चूना-जल उपचार, उबालने-सूखाने के अनुपात, और स्वाद-विविधता पर काम किया, जिससे आज का मानक पेठा बना.
पूरे भारत में कैसे फैला?मुगलकाल और बाद के सूबेदारी, नवाबी प्रशासन में आगरा एक बड़ा केंद्र रहा. यहां आवागमन और व्यापार के चलते पेठा शहर की पहचान से जुड़ गया. रेल और सड़कों के विस्तार के साथ, 19वीं-20वीं सदी में पेठे की आपूर्ति आगरा से उत्तर भारत के अनेक शहरों तक सहज हो गई. स्टेशन-कियोस्क और यात्रा-संस्कृति ने इसे यात्रा की मिठाई बना दिया. स्वतंत्रता के बाद ताजमहल के वैश्विक पर्यटन केंद्र बनने से पेठे की मांग बढ़ी. विदेशी पर्यटक भी इसे स्थानीय स्पेशल्टी के रूप में लेने लगे. पैकेजिंग, वैक्यूम-सील, शुगर सिरप का मानकीकरण और विविध फ्लेवर ने इसकी मार्केटिंग आसान की.
भारत में रिश्तेदारी-समारोहों में दूर-दराज़ से आने-जाने का चलन रहा है. आगरा से आने-जाने वाले लोग पेठा साथ ले जाते रहे हैं. इससे मुंह-जबानी प्रचार हुआ. राष्ट्रीय राजमार्गों पर स्थित मिठाई दुकानों ने आगरा का पेठा लिखकर स्टॉक रखना शुरू किया. अखबार, टीवी शो, फूड ब्लॉगिंग और सोशल मीडिया युग में आगरा का मतलब ताजमहल और पेठा बना दिया. ऑनलाइन रिव्यू और ई-कॉमर्स ने इसे देश-विदेश में पहुंचाया. कई शहरों में स्थानीय हलवाइयों ने भी पेठे का उत्पादन शुरू किया, कभी आगरा स्टाइल तो कभी अपने ट्विस्ट के साथ- इससे सप्लाई गैप भरता गया और मिठाई जन-जन तक पहुंची.
पेठा को सफेद कद्दू से बनाया जाता है.
स्वाद और स्वास्थ्य का संतुलनपेठा शुद्ध चीनी-चाशनी आधारित मिठाई है, इसलिए इसमें शर्करा की मात्रा अधिक होती है. आजकल कई ब्रांड शुगर-फ्री या लो-शुगर विकल्प भी दिखाते हैं, जो आमतौर पर कृत्रिम मिठास या वैकल्पिक मीठे पदार्थों से बनाए जाते हैं. यदि आप कैलोरी या शुगर का ध्यान रखते हैं तो सीमित मात्रा में सेवन करें. शुद्धता के लिए पारदर्शक, ताज़ा, हल्के क्रिस्टलीकरण और बिना कृत्रिम रंग के टुकड़े चुनें. फ्लेवर पेठों (पान, केसर, अंगूरी) में सुगंधित तत्वों की गुणवत्ता पर ध्यान दें.
मुगलों की मिठाई से बढ़कर आगरा की पहचानइतिहास के तराजू पर पेठे को सीधे-सीधे मुगलों की मिठाई कहना आकर्षक लेकिन अप्रमाणित दावे की श्रेणी में आता है. अधिक संभव यही है कि आगरा के बहु-सांस्कृतिक खाद्य-परिदृश्य में, मुगलकाल से लेकर औपनिवेशिक युग और आधुनिक पर्यटन-युग तक, पेठा निरंतर विकसित और लोकप्रिय होता गया. इसे एक व्यक्ति या एक क्षण का आविष्कार कहने के बजाय, क्षेत्रीय ज्ञान, हलवाइयों की कारीगरी, व्यापारिक सूझ-बूझ और यात्रा-संस्कृति के सम्मिलित प्रभाव का परिणाम मानना अधिक उचित है.
आज आगरा का पेठा सिर्फ मिठाई नहीं, एक सांस्कृतिक प्रतीक है, जो ताजमहल की छाया में पनपी स्थानीय परंपरा, शहरी पहचान और भारत की यात्रा-संस्कृति का मीठा प्रतिनिधि बन चुका है. चाहे आप क्लासिक सफेद पेठा पसंद करें या पान व केसर जैसे नए फ्लेवर- हर बाइट में आगरा की वही पुरानी मोहकता और समय के साथ तराशा गया स्वाद मिलता है.
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