पाकिस्तान में आर्मी चीफ आसिम मुनीर के मामले को लेकर सुप्रीम कोर्ट में असहमति की स्थिति उत्पन्न हुई है। दो प्रमुख जज, मंसूर अली शाह और अतहर मिनल्लाह, ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया है। उन्होंने यह स्पष्ट किया कि आर्मी चीफ को कानूनी सुरक्षा प्रदान करना और तीनों सेनाओं का डिफेंस चीफ बनाना संविधान के विपरीत है। उनके इस्तीफे में कहा गया है कि 27वें संवैधानिक संशोधन से लोकतंत्र के अन्य स्तंभ कमजोर हो रहे हैं। सूत्रों के अनुसार, अन्य जज भी इस्तीफा देने की योजना बना सकते हैं।
पाकिस्तान के सुप्रीम कोर्ट में कुल 16 जज हैं, जिनमें से 9 पद खाली हैं। दो जजों के इस्तीफे के बाद अब केवल 14 जज कार्यरत हैं। नए संशोधन ने सुप्रीम कोर्ट की कई शक्तियों को राष्ट्रपति के अधीन कर दिया है।
इस संविधान संशोधन के तहत आर्मी चीफ को तीनों सेनाओं का डिफेंस चीफ (CDF) बना दिया गया है। अब उनके खिलाफ कोई कानूनी कार्रवाई नहीं की जा सकेगी। इसके अलावा, नेशनल स्ट्रैटजिक कमांड (NSC) का गठन भी इसी संशोधन का हिस्सा है, जिसके तहत पाकिस्तान के परमाणु हथियार और मिसाइल प्रणाली पूरी तरह से सेना के नियंत्रण में रहेंगी। NSC के कमांडर की नियुक्ति प्रधानमंत्री की मंजूरी से होगी, लेकिन यह सेना प्रमुख की सिफारिश पर निर्भर करेगी।
पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान की पार्टी ने 27वें संशोधन को लोकतंत्र के खिलाफ बताया है। संसदीय समिति ने देशभर में विरोध प्रदर्शन की योजना बनाई है। विपक्षी गठबंधन ने सरकार के खिलाफ रणनीति तय की है। पूर्व स्पीकर असद कैसर ने कहा कि जजों का इस्तीफा सरकार के खिलाफ “पहली बारिश की बूंद” है।
पाकिस्तान की नेशनल असेंबली ने इस बिल को 234 मतों से पारित किया है। इसे सीनेट ने दो दिन पहले मंजूरी दी थी। राष्ट्रपति आसिफ अली जरदारी के हस्ताक्षर के बाद यह कानून प्रभावी हो जाएगा। प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ और नवाज शरीफ ने नेशनल असेंबली के सत्र में अपनी उपस्थिति दर्ज कराई।
विशेषज्ञों का मानना है कि इस संवैधानिक बदलाव से पाकिस्तान में सैन्य और लोकतंत्र के बीच तनाव बढ़ सकता है। विपक्षी दलों और इमरान खान की पार्टी के विरोध प्रदर्शन आगामी राजनीतिक माहौल को और अस्थिर कर सकते हैं। परमाणु हथियारों का नियंत्रण पूरी तरह से सेना के हाथ में होने से सुरक्षा और अंतरराष्ट्रीय चिंता भी बढ़ सकती है।