हाल ही में हुए कार ब्लास्ट के बाद दिल्ली का लालकिला फिर चर्चा में था. यह एक ऐसी इमारत है, जो किसी न किसी बहाने चर्चा में बनी रहती है. देश के पीएम हर साल 15 अगस्त को इसी के प्राचीर पर तिरंगा लहराते हैं. यहां की सुरक्षा-व्यवस्था भी तगड़ी है. फिर भी कभी पर्यटकों की वजह से तो कभी हादसों की वजह से यह ऐतिहासिक इमारत बिना चर्चा के नहीं रहती. अपने निर्माण के समय से ही इस इमारत का यही हाल है.
अब जब इसकी चर्चा हो रही है तो यह भी जान लेना रोचक होगा कि इसे पाने को हाल ही अंतिम मुगल बादशाह बहादुर शाह जफर के परिवार की एक सदस्य सुल्ताना बेगम ने लाल किला का मालिकाना हक उन्हें वापस करने को दिल्ली हाईकोर्ट और फिर बाद में सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था, जिसे दोनों ही अदालतों ने खारिज कर दिया. यह कहानी रोचक भी है और ऐतिहासिक तथ्य भी. सवाल यह है कि क्या इस राष्ट्रीय संपत्ति का कानूनी हक किसी व्यक्ति को दिया जा सकता है? क्या कहता है कानून? सुल्ताना बेगम ने इसके लिए क्या-क्या प्रयास किए?
कौन हैं सुल्ताना बेगम और क्या है उनका दावा?पश्चिम बंगाल के हावड़ा में चाय बेचकर अपना गुज़ारा करने वाली एक बुज़ुर्ग महिला सुल्ताना बेगम ने अदालत में याचिका दायर कर कहा कि वह अंतिम मुगल शासक बहादुर शाह ज़फर की वंशज हैं. उनके अनुसार, बहादुर शाह ज़फर के बेटे मिर्ज़ा बख्तावर शाह के वंश से उनका रिश्ता है. इस नाते उनका अधिकार भारत सरकार के अधीन ऐतिहासिक लालकिला पर होना चाहिए. याचिका में उन्होंने यह भी मांग रखी कि सरकार को इस संपत्ति को मुगल विरासत संपत्ति के रूप में मान्यता देनी चाहिए और इसे परिवार की देखरेख में सौंप देना चाहिए. उनका कहना था कि अंग्रेज़ों ने इसे युद्ध के दौरान जब्त किया था और अब, जब देश आज़ाद है, तो इस संपत्ति को उनके खानदान को लौटाया जाना चाहिए.
सुल्ताना बेगम. फोटो: PTI
दिल्ली हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दी थी याचिकासुप्रीम कोर्ट के एडवोकेट और कानूनविद अश्विनी कुमार दुबे कहते हैं कि खुद को अंतिम मुगल शासक बहादुर शाह जफर के पड़पोते मिर्जा बेदार बख्त की बेवा बताने वाली सुल्ताना बेगम ने पिछले साल पहले दिल्ली हाईकोर्ट में लालकिले पर कब्जा देने और साल 1857 से अब तक का मुआवजा देने की मांग थी, 13 दिसंबर 2024 को अदालत ने इस याचिका को खारिज कर दिया. इसके बाद सुल्ताना बेगम इस फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट पहुंच गईं. तब चीफ जस्टिस रहे संजीव खन्ना ने सवाल किया कि केवल लाल किला ही क्यों, आगरा किला, ताजमहल, फतेहपुर सीकरी जैसे अन्य ऐतिहासिक स्थलों पर दावा क्यों नहीं किया जा रहा है? सर्वोच्च अदालत ने इस याचिका को बेतुका एवं निराधार कहते हुए खारिज कर दिया था.
सुल्ताना बेगम ने पिछले साल दिल्ली हाईकोर्ट में लालकिले पर कब्जा देने की मांग की थी. फोटो: Getty Images
सुप्रीम कोर्ट में क्या हुआ और क्या सवाल उठे?जब यह मामला सुप्रीम कोर्ट में पहुंचा तो न्यायालय ने कई महत्वपूर्ण और तर्कपूर्ण सवाल उठाए. कोर्ट ने सबसे पहले यह पूछा कि क्या याचिकाकर्ता अपने वंशज होने का कोई ठोस प्रमाण प्रस्तुत कर सकती हैं? क्या किसी सरकारी दस्तावेज़, वंशावली या इतिहास के अभिलेख में उनका नाम या संबंध प्रमाणित है?
कोर्ट ने कहा कि लालकिला अब एक राष्ट्रीय धरोहर है. इसे 1947 के बाद से भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) द्वारा संरक्षित किया जा रहा है. इसलिए यह अब किसी व्यक्ति की निजी संपत्ति नहीं रह गई, बल्कि राष्ट्रीय महत्व की संपत्ति है. सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि भले ही कोई ऐतिहासिक संबंध मौजूद हो, लेकिन किसी भी शासक की संपत्ति आज के भारत के कानून में निजी स्वामित्व नहीं मानी जा सकती. अंग्रेजों ने साल 1858 में दिल्ली और उससे जुड़ी रियासतों को ब्रिटिश क्राउन के अधीन घोषित किया था. भारत की आज़ादी के बाद वह सब सरकार का हुआ.
सुप्रीम कोर्ट.
क्या कहता है कानून?भारतीय कानून में किसी ऐतिहासिक स्मारक या पुरातात्विक संरचना को वापस निजी स्वामित्व में देना संभव नहीं है, जब तक कि वह संपत्ति साल 1857 के पहले से किसी व्यक्ति, संस्था या परिवार के कब्ज़े में साबित न हो. Ancient Monuments and Archaeological Sites and Remains Act, 1958 के तहत, सरकार किसी भी ऐतिहासिक स्मारक या पुरातात्विक स्थल को राष्ट्रीय महत्व घोषित कर सकती है. लालकिला इस अधिनियम के तहत घोषित एक राष्ट्रीय स्मारक है. इसलिए इसका रखरखाव और स्वामित्व केंद्र सरकार के अधीन है.
अंतिम मुगल बादशाह बहादुर शाह जफर द्वितीय.
बेहद सीमित हैं वंशज के अधिकारयह कानूनी सिद्धांत कहता है कि सरकार ऐतिहासिक स्मारकों की संरक्षक है, मालिक नहीं. उन्हें बेच या हस्तांतरित नहीं किया जा सकता क्योंकि ये जनता की सामूहिक धरोहर हैं. किसी राजा या नवाब के वंशज को सिर्फ इसलिए संपत्ति का अधिकार नहीं दिया जा सकता कि उनके पूर्वज कभी उस स्थान पर शासन करते थे. प्रजा, शासन और राज्य के बीच जो सीमाएं थीं, वे ब्रिटिश शासन के बाद समाप्त हो चुकी हैं.
लाल किला का इतिहासलाल किला का निर्माण 1648 में शहंशाह शाहजहाँ ने करवाया था. यह मुग़ल शासन की राजधानी रहा और दिल्ली सल्तनत के गौरव का प्रतीक बना. साल 1857 की क्रांति के बाद अंग्रेजों ने इसे अपने नियंत्रण में लिया, और बहादुर शाह ज़फर को रंगून (म्यांमार) निर्वासित कर दिया गया. उनके बाद से यह क़िला ब्रिटिश सेना का अड्डा और बाद में भारत की राजनीति और स्वतंत्रता आंदोलन का प्रतीक बना. साल 1947 में भारत की आज़ादी के बाद यह भारत सरकार की देखरेख में आ गया और 2007 में युनेस्को विश्व धरोहर स्थल के रूप में मान्यता प्राप्त की.
दिल्ली के लालकिले को बादशाह शाहजहां ने बनवाया था. फोटो: Unsplash
जनता में संवेदना पर न्यायालय में तथ्यों की मांगइस पूरे प्रकरण ने लोगों में भावनात्मक प्रतिक्रिया जगाई. बहुत लोग यह मानते हैं कि एक शाही परिवार की वंशज महिला का चाय बेचना अपने आप में एक प्रतीक है, समय और सत्ता के बदलाव का लेकिन न्यायालय की दृष्टि भावनात्मक नहीं बल्कि कानूनी होती है. सुप्रीम कोर्ट ने साफ कहा कि संवेदना और कानून दो अलग आधार हैं. अदालत ने कहा कि यदि याचिकाकर्ता इतिहास में अपनी वंशावली साबित कर दें तो भी लालकिला जैसी राष्ट्रीय संपत्ति व्यक्तिगत स्वामित्व में नहीं दी जा सकती.
क्या बहादुर शाह ज़फर की वंशजों को कभी कुछ मिलेगा?कानूनी रूप से देखें तो उनके वंशजों के लिए किसी संपत्ति या किले का स्वामित्व हासिल करना असंभव है. हालांकि, सरकार चाहे तो ऐसे परिवारों को सम्मानजनक पहचान देने के लिए नीतिगत या सांस्कृतिक कदम उठा सकती है. मसलन, वंशजों को इतिहास संरक्षण से जुड़ी संस्थाओं में विशेष आमंत्रित करना, या प्रतीकात्मक मान्यता देना, जैसे मुग़ल विरासत संग्रहालयों में उनका उल्लेख करना आदि. लेकिन स्वामित्व, खासकर लालकिला जैसा राष्ट्रीय प्रतीक, किसी को भी व्यक्तिगत स्तर पर नहीं दिया जा सकता.
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