कानपुर, 16 दिसंबर (Udaipur Kiran) . सोशियो इमोशनल लर्निंग रूम बच्चों को अपनी भावनाओं को समझने, व्यक्त करने और संतुलित ढंग से प्रबंधित करने का सुरक्षित वातावरण प्रदान कर सकते हैं. बच्चों को तनाव से मुक्त रखने के लिए अभिभावकों की नियमित काउंसलिंग कराई जाए तथा शिक्षकों और कर्मचारियों के लिए कार्यशालाओं का आयोजन कर उन्हें बच्चों के प्रति संवेदनशील और सकारात्मक व्यवहार के लिए प्रशिक्षित किया जाए. यह निर्देश मंगलवार को जिलाधिकारी जितेंद्र प्रताप सिंह ने अधिकारियों को दिए.
जिलाधिकारी जितेन्द्र प्रताप सिंह की अध्यक्षता में कलेक्ट्रेट सभागार में मानसिक स्वास्थ्य, छात्र कल्याण, कोचिंग सेंटर विनियमों की निगरानी तथा शिक्षण संस्थानों में सोशियो इमोशनल लर्निंग रूम की स्थापना को लेकर काउंसलर्स के साथ बैठक आयोजित की गई. बैठक का मुख्य उद्देश्य बच्चों के भावनात्मक विकास और तनाव प्रबंधन के लिए सोशियो इमोशनल लर्निंग रूम को एकरूप एवं प्रभावी ढंग से लागू करने पर विचार करना रहा. बैठक में विश्वविद्यालयों और विद्यालयों से आए मनोवैज्ञानिक परामर्शदाताओं ने विद्यार्थियों की वर्तमान मानसिक स्थिति, पढ़ाई और Examination ओं के दबाव तथा अभिभावकों की अपेक्षाओं से उत्पन्न तनाव पर अपने सुझाव साझा किए.
इस संबंध में जिला विद्यालय निरीक्षक को आवश्यक कार्रवाई के निर्देश दिए गए. जिलाधिकारी ने कहा कि बदलते सामाजिक परिवेश में बच्चों, अभिभावकों और शिक्षकों के दृष्टिकोण में सकारात्मक बदलाव लाने में सोशियो इमोशनल लर्निंग रूम महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं.
बैठक में विशेषज्ञ के रूप में उपस्थित क्लिनिकल साइकोलॉजिस्ट एवं सीएसजेएमयू के असिस्टेंट प्रोफेसर सृजन श्रीवास्तव ने कहा कि पेरेंटिंग में संतुलन और संवेदनशीलता के साथ बच्चों के भावनात्मक कौशल को मजबूत करना समय की आवश्यकता है. उन्होंने बच्चों पर उम्र और क्षमता से अधिक अपेक्षाएँ या तुलना का दबाव न डालने, परिणाम के बजाय प्रयास की सराहना करने और खुले संवाद को प्राथमिकता देने पर जोर दिया. उन्होंने बताया कि सोशियो इमोशनल लर्निंग रूम बच्चों को भावनात्मक सुरक्षा प्रदान कर उनके आत्मविश्वास को सुदृढ़ करेंगे. साथ ही उन्होंने डिजिटल, अकादमिक और कोचिंग के अत्यधिक दबाव को सीमित रखने की आवश्यकता बताई.
मनोवैज्ञानिक परामर्शदाता कविता ने बताया कि सोशियो इमोशनल लर्निंग रूम के माध्यम से छात्रों को एसडब्ल्यूओटी एनालिसिस जैसी गतिविधियों के जरिए इमोशन मैनेजमेंट की ट्रेनिंग दी जा सकती है. उन्होंने कहा कि यदि बच्चों को स्वयं को अभिव्यक्त करने का अवसर और निरंतर सहयोग मिले, तो वे अवसाद जैसी स्थितियों से काफी हद तक सुरक्षित रह सकते हैं. उन्होंने यह भी कहा कि बच्चों के लिए किताबी ज्ञान के साथ-साथ जीवन कौशल सीखना भी आवश्यक है.
पीपीएन कॉलेज की आभा सिंह ने बताया कि उनके महाविद्यालय में विद्यार्थियों की भावनात्मक अभिव्यक्ति को प्रोत्साहित करने के लिए इमोशन बॉक्स की व्यवस्था की गई है. उन्होंने कहा कि इस पहल से छात्रों की मनोदशा को समझने और उन्हें समय पर मार्गदर्शन देने में मदद मिल रही है.
बैठक में उपस्थित परामर्शदाताओं ने सुझाव दिया कि विद्यालयों और कोचिंग संस्थानों में सोशियो इमोशनल लर्निंग रूम को नियमित गतिविधियों के साथ संचालित किया जाए तथा ऐसे विद्यार्थियों को चिन्हित कर समय पर सहयोग प्रदान किया जाए, जो सामान्य व्यवहार से अलग प्रतीत होते हों. बैठक में डीआईओएस संतोष कुमार राय सहित विभिन्न अधिकारी उपस्थित रहे.
(Udaipur Kiran) / रोहित कश्यप