Bhog Tradition: आखिर भगवान को भोग क्यों लगाया जाता है? जानें इसके पीछे की शास्त्रीय परंपरा
TV9 Bharatvarsh December 30, 2025 12:42 PM

Spiritual Meaning of Bhog: हिंदू धर्म में पूजा-पाठ के दौरान देवी-देवताओं को भोग लगाने की परंपरा सदियों से चली आ रही है. अक्सर हमारे मन में यह सवाल उठता है कि जब भगवान साक्षात आकर भोजन नहीं करते, तो फिर उन्हें भोग लगाने का महत्व क्या है? क्या यह केवल एक रस्म है या इसके पीछे कोई गहरा अर्थ छिपा है? आइए जानते हैं शास्त्रों और परंपराओं के अनुसार भगवान को भोग लगाने के पीछे के प्रमुख कारण.

शास्त्रों में भोग का महत्व

शास्त्रों के अनुसार, भगवान को भोग अर्पित करना केवल एक धार्मिक कर्म नहीं बल्कि कर्म शुद्धि और अन्न शुद्धि का माध्यम है. माना जाता है कि जब बिना भोग लगाए भोजन किया जाता है, तो उससे अन्न दोष उत्पन्न हो सकता है. भोग अर्पण के बाद वही भोजन प्रसाद बन जाता है, जो न केवल शरीर बल्कि मन और आत्मा को भी शुद्ध करता है.

अन्न दोष क्या है और भोग से कैसे दूर होता है?

धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, भोजन केवल पेट भरने का साधन नहीं है, बल्कि उसमें ऊर्जा और संस्कार भी होते हैं. जब भोजन को भगवान को अर्पित कर दिया जाता है, तो उसमें निहित नकारात्मक ऊर्जा समाप्त हो जाती है. शास्त्र कहते हैं कि भोग लगाकर भोजन करने से अन्न दोष दूर होता है और जीवन में सुख-समृद्धि आती है.

भोग और त्याग की भावना का संबंध

भगवान के लिए भोग बनाना जातक की त्याग, दान और समर्पण की भावना को दर्शाता है. इसका एक सुंदर उदाहरण अक्सर दिया जाता है, जब आप अपने लिए लड्डू बनाते हैं, तो उसे खुद और अपने परिवार के सदस्यों के साथ खाते हैं. लेकिन वही लड्डू जब भगवान को भोग स्वरूप अर्पित किया जाता है, तो उसे ढूंढ-ढूंढकर लोगों में बांटा जाता है. यही प्रक्रिया व्यक्ति के भीतर त्याग, सेवा और समाज के प्रति जिम्मेदारी की भावना को जन्म देती है.

भोग से अहंकार का होता है नाश

भोग अर्पण का एक गहरा आध्यात्मिक अर्थ यह भी है कि इससे मैं और मेरा की भावना कम होती है. व्यक्ति यह स्वीकार करता है कि जो कुछ भी उसके पास है, वह ईश्वर की कृपा से है. इस प्रकार भोग अर्पण अहंकार को नष्ट कर विनम्रता सिखाता है.

क्यों कहा जाता है भोग के बाद ही भोजन करें?

शास्त्रों में स्पष्ट कहा गया है कि देवताओं को अर्पित भोजन ही मनुष्य के लिए योग्य होता है. ऐसा भोजन प्रसाद बन जाता है, जिसमें सात्विक गुण बढ़ जाते हैं. इससे न केवल स्वास्थ्य बेहतर रहता है, बल्कि मानसिक शांति और सकारात्मकता भी बढ़ती है.

भोग का सामाजिक और आध्यात्मिक संदेश

भोग की परंपरा व्यक्ति को केवल अपने तक सीमित नहीं रहने देती. यह सिखाती है कि जीवन में जो भी मिले, उसे साझा करना ही सच्ची भक्ति है. यही कारण है कि मंदिरों में भंडारे और प्रसाद वितरण की परंपरा आज भी जीवंत है.

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Disclaimer: इस खबर में दी गई जानकारी धार्मिक मान्यताओं और सामान्य जानकारियों पर आधारित है. टीवी9 भारतवर्ष इसकी पुष्टि नहीं करता है.

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