सामरिक दृष्टि से जरूरी चिन्यालीसौड़ हवाई अड्डे पर स्वीकृति के 12 वर्ष बाद भी फायर अलार्म, रडार, टैक्स स्टैंड लगाने और समतलीकरण कार्य पूरे नहीं हो पाया है. इन कार्यों के लिए छह करोड़ की दरकार है, लेकिन बजट स्वीकृति के बाद भी यह रकम नहीं मिल पाई है. वहीं, अलार्म और रडार जैसे जरूरी उपकरण नहीं होने से वायुसेना को युद्धाभ्यास के लिए अपनी कम्यूनिकेशन टीम को यहां लाना पड़ता है.
चिन्यालीसौड़ हवाई अड्डे के लिए साल 2013 मे 46 करोड़ स्वीकृत हुए थे, जिसमें से 40 करोड़ से रनवे, टर्मिनल भवन और पॉवर हाउस, एटीसी टॉवर एवं एप्रोच रोड आदि का निर्माण हुआ. लेकिन बजट के अभाव में फायर अलार्म, रडार, टैक्स स्टैंड, सजावट, समतलीकरण कार्य नहीं हो पाया. जबकि इसके लिए स्वीकृत बजट में से छह करोड़ मिलने थे, लेकिन यह रकम आज 12 वर्ष बाद भी नहीं मिल पाई है.
फायर अलार्म, रडार, टैक्स स्टैंड लगने और समतलीकरण जैसे जरूरी कार्य नहीं होने से वायुसेना के विमानों को ही यहां लैंडिंग और टेकऑफ में दिक्कतों से दो-चार होना पड़ता है. एटीसी टावर में कम्युनिकेशन के लिए रडार और अन्य जरूरी उपकरण नहीं होने से वायुसेना को गोरखपुर और बरेली एयरबेस से कम्युनिकेशन टीम को साथ लाना पड़ता है.
कम्युनिकेशन टीम पहुंचने के बाद भी यहां वायुसेना का अभ्यास संभव हो पाता है. इधर, उत्तर प्रदेश निर्माण निगम के निर्माण कार्य का जिम्मा संभाल रहे प्रभारी इंजीनियर घनश्याम सिंह ने कहा कि हाल में शासन से हवाई अड्डे के निर्माण कार्यों की जांच हुई. आशा है कि शीघ्र अवशेष कार्यों के लिए छह करोड़ की रकम मिल जाए. कहा कि इससे सीसीटीवी कैमरे, कनवेयर बेल्ट आदि भी लगाए जाएंगे.
आपातकाल में भी जरूरी है हवाई अड्डा
चिन्यालीसौड़ हवाई अड्डा आपातकाल में भी जरूरी रहा है. पिछले वर्ष सिलक्यारा में सुरंग में फंसने वाले 41 मजदूरों को भी इसी हवाई अड्डे से वायुसेना के चिनूक विमान से ऋषिकेश एम्स भेजा गया था. वहीं, साल 2013 की आपदा में फंसे चार हजार लोगों को वायुसेना ने इसी हवाई अड्डे की सहायता से रेस्क्यू ऑपरेशन चलाया था.