Jhalawar गांवों में कौओं को खिलाया जा रहा है खाना, शहरों में नहीं दिख रहे
aapkarajasthan September 22, 2024 01:42 AM
झालावाड़ न्यूज़ डेस्क, झालावाड़ श्राद्व पक्ष शुरू हो चुके है, हिंदू धर्म में श्राद्व पक्ष का विशेष महत्व माना गया है। इन दिनों पुत्र व पौत्र अपने पितरों का श्राद्व करते ह ैा मान्यता है कि पितरों के निमित्त भोजन बनाकर कौए, गाय और ब्राह्रमण को देने से पितृ प्रसन्न होकर परिवार पर कृपा बनाएं रखते है। कस्बे सहित गांवों में तो अभी भी कौए की संख्या दिखाई देती है लेकिन शहरी क्षेत्र में तो पिछले कुछ सालों में कौए की संख्या में कमी आने से लोगों के सामने उन्हें भोजन देने की समस्या आने लगी है। वरिष्ठ नागरिक कन्हैयालाल नागर ने बताया कि बढ़ती शहर आबादी के चलते जंगल की ओर रूख कर गए है। इनको खाने के लिए भी आबादी में कुछ नही मिलता है। साथ ही खेतों में पेस्टीसाइड खाने से मनुष्य के साथ जीव जंतु के जीवन पर भी संकट आ गया है। हमारा इको सिस्टम गड़बड़ा गया है। पेड़ पौधों को उगाने, खेतों में फसल उगाने के लिए पेस्टीसाइड का प्रयोग ज्यादा होने से जीवों पर संकट आ गया है। पेस्टीसाइड भोजन खाने वाले जीवों के मरने के बाद जब इस जीव को गिद्व व कौवा आदि खाते है तो वो भी मरने लगे है। इसलिए धीरे-धीरे कौए लुप्त होते जा रहे है।

यमराज ने कौए को दिया था वरदान

पंडितों की माने तो गरूड पुराण के अनुसार कौए को यमराज का संदेश वाहक बताया गया है। पूर्वजों को अन व जल कौए के माध्यम से ही पंहुचता है। कौए को भोजन कराना शुभ माना गया है। शास्त्रों के अनुसार यमराज ने कौवे को वरदान दिया था कि तुम्हें दिया गया भोजन पूर्वजों की आत्मा को शांति देगा, तब से ही पितरों के निमित्त कौए को भोजन दिया जाने लगा।

श्राद्व कर्म की ऐसे हुई शुरुआत

पंडित चेतन दाधीच ने बताया कि महाभारत काल में भीष्म पितामाह ने युधिष्ठिर को बताया था कि सबसे पहले महर्षि निमि को आत्रि मुनि ने श्राद्व का ज्ञान दिया था। तब ऋषि निमि ने श्राद्व किया और उनके बाद अन्य ऋषियों ने भी श्राद्व कर्म प्रारंभ कर दिया। तभी से पूर्वजों के सम्मान व आत्मा के तारण के निमित्त बाद कर्म की परंपरा है।

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