सीकर न्यूज़ डेस्क, कुछ देर पहले किए काम को भूल जाना, हर समय चिड़चिड़ा रहना। इन लक्षणों को सामान्य समझना एक गंभीर न्यूरोलॉजिक सिंड्रोम को न्यौता देना है। न्यूरोलॉजी चिकित्सकों के अनुसार खराब लाइफ स्टाइल और दिमाग में प्रोटीन के जमा होने के कारण एक दशक में अधेड़ावस्था में भूलने की बीमारी (अल्जाइमर) रोग तेजी से बढ़ी है।
नेशनल इंस्टीट्यूट ऑन एजिंग के अनुसार अल्जाइमर की शुरुआत आमतौर पर 60 के बाद होती है, लेकिन कुछ संकेत 30 वर्ष की आयु के बाद ही मिल सकते हैं। चिंताजनक बात है कि अल्जाइमर का कोई सटीक इलाज नहीं है। इस बीमारी के लक्षणों को केवल दवाओं और थेरेपी की मदद से कम किया जा सकता है। मेडिकल कॉलेज से जुड़े कल्याण अस्पताल की न्यूरोलॉजी ओपीडी में अल्जाइमर के लक्षणों वाले हर माह आ रहे चार दर्जन से ज्यादा नए मरीज आते हैं।
यह है कारण
चिकित्सकों के अनुसार अल्जाइमर रोग 65 वर्ष या उससे अधिक उम्र के लोगों में देखने को मिलता है। यह समस्या मस्तिष्क में ऐमीलॉइड और टाऊ नामक प्रोटीन के जमने से होती है। मस्तिष्क में टाऊ प्रोटीन गुच्छों के रूप में जमा होता है। नींद की कमी से स्वस्थ लोगों में भी टाऊ प्रोटीन का स्तर बढ़ जाता है। जो आस-पास के ऊतकों को नुकसान पहुंचाता है। इससे व्यक्ति की सोचने और याद रखने की क्षमता प्रभावित होती है। कुछ लोगों में यह स्थिति जल्दी उत्पन्न हो सकती है। इन मामलों में माता-पिता के जीन की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। ऐसे में जरूरत है कि युवा अवस्था से सक्रिय जीवन शैली रखें। समय पर व्यायाम, सही खानपान और तनाव मुक्त जिंदगी के जरिए इस बीमारी से बचा सकता है।डिमेंशिया का रूप अल्जाइमर रोग में आयु बढ़ने के साथ दिमाग के न्यूरॉन के अंदर खराब तरह का प्रोटीन जमा होने लगता है जो न्यूरॉन्स को जल्दी खराब कर देता है।अल्जाइमर बीमारी का पता लगाने के लिए ब्रेन एमआरआई, पीईटी स्कैन व ब्लड टेस्ट करवाएं जाते हैं। जैनेटिक कारण, ध्रूमपान, प्रदूषण, मोटापा, सर में ट्यूमर या चोट, पढाई का स्तर कम होने के कारण भी अल्जाइमर रोग हो सकता है। दवाएं और जीवन शैली में बदलाव से इस बीमारी को काफी हद तक कम किया जाता है।