भारत का इतिहास ही नहीं, भाग्य बदलने वाले युद्धों की पूरी कहानी
अलका राशि September 23, 2024 02:12 PM

भारत का इतिहास केवल साम्राज्य और शासकों की कहानी नहीं है, बल्कि यह उन निर्णायक युद्धों की गाथा भी है, जिन्होंने इस भूमि के भाग्य को बदलने में अहम भूमिका निभाई है. प्राचीन काल से लेकर आधुनिक युग तक, भारत में कई ऐसे युद्ध हुए हैं, जिन्होंने न केवल राजनीतिक सत्ता को प्रभावित किया, बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक धारा को भी नया मोड़ भी दिया है.

जैसे, 1526 का पानीपत का पहला युद्ध, जिसने दिल्ली के सलतनत को मुगलों के अधीन कर दिया और भारतीय उपमहाद्वीप में एक नए साम्राज्य की शुरुआत की. इसी तरह, 1757 का प्लासी का युद्ध ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी की नींव रखता है, जिसने भारत को औपनिवेशिक काल में धकेल दिया.

स्वतंत्रता संग्राम के दौरान, 1857 का विद्रोह और 1942 का अगस्त क्रांति जैसे संघर्ष ने भारतीय जनता के भीतर स्वतंत्रता की अलख जगाई, जो आखिर में देश को आजादी दिलाने में सफल रही. इन युद्धों की गाथाएं न केवल संघर्ष और बलिदान की कहानियां हैं, बल्कि यह प्रेरणा भी देती हैं कि कैसे सामूहिक प्रयास से भाग्य को बदला जा सकता है. इस लेख में हम ऐसे महत्वपूर्ण युद्धों की चर्चा करेंगे, जिन्होंने भारत के इतिहास और उसके भविष्य को आकार दिया.

1. दशराज्ञ युद्ध

दशराज्ञ युद्ध, जो 14वीं सदी ई.पू. में हुआ, प्राचीन भारतीय इतिहास का एक महत्वपूर्ण युद्ध है. इस युद्ध का वर्णन ऋग्वेद के 7वें मंडल में किया गया है और इसे वैदिक सभ्यता के विकास में एक महत्वपूर्ण मोड़ माना जाता है. यह युद्ध रावी नदी के पास लड़ा गया था, जिसमें भरत जनजाति ने राजा सुदास के नेतृत्व में दस अन्य जनजातियों के साथ संघर्ष किया. इन जनजातियों के बीच संघर्ष का मुख्य कारण भूमि और संसाधन था.

इस युद्ध में भरत जनजाति ने विजय प्राप्त की, जिससे यह साबित हुआ कि उनकी सैन्य रणनीति और एकता में ताकत थी. इस युद्ध ने भरत जनजाति की प्रतिष्ठा को बढ़ाया और वे बाद में वैदिक सभ्यता के प्रमुख हिस्सा बने. दशराज्ञ युद्ध ने भारतीय इतिहास में एक महत्वपूर्ण घटना के रूप में स्थान बना लिया है, और यह सैन्य, राजनीतिक और सामाजिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण था.

यह विजय केवल भरत जनजाति का क्षेत्र पर नियंत्रण मजबूत नहीं करती, बल्कि कुरु साम्राज्य की स्थापना की ओर भी ले जाती है, जिससे प्राचीन भारत में सत्ता की संरचना में महत्वपूर्ण बदलाव आता है. इस युद्ध के परिणामों का दूरगामी प्रभाव पड़ा, जिसने सामाजिक और राजनीतिक परिदृश्य को प्रभावित किया और वेदिक सभ्यता के उदय के लिए मंच तैयार किया. 


2. हाइडस्पेस का युद्ध (326 ई.पू.)

महान शासक अलेक्जेंडर जिसे सिकंदर  के नाम से भी जाना जाता है. दुनिया को जीतने के क्रम में 326 बीसीई में हाइडस्पेस नदी जिसे वर्तमान में झेलम नदी के नाम से जाना जाता है पर आक्रमण कर दिया था. इसी लड़ाई को विश्व बैटल ऑफ हाइडस्पेस (Battle Of Hydaspes) के नाम से जाता जाता है. माना जाता है सिकंदर इतना ताकतवर था कि उसे हराना आसान नहीं था लेकिन इस युद्ध में सिकंदर को हार का सामना करना पड़ा था. हाइडस्पेस युद्ध में सिकंदर का विश्व विजेता बनने का ख्वाब तो पूरा नहीं हुआ लेकिन ये लड़ाई एलेक्जेंडर यानी सिकंदर की चौथी और आखिरी लड़ाई बन कर रह गई. 

दरअसल अपने पिता की मौत को बाद अलेक्जेंडर यानी सिकंदर ग्रीस के मेसेडोनिया के सिंहासन पर विराजमान हो गया. उस वक्त सिकंदर पर्शियन साम्राज्य पर जीत हासिल की और धीरे धीरे  उत्तरी भारत में अपने पंख फैलाने की कोशिश करने लगा. वह विश्व को जीतने के क्रम में भारत पर भी अपना अधिकार जमाना चाहता था. इसी क्रम में उसने राजा पोरस को घुटने टेकते हुए, हथियार डालने का संदेश भी भेजा लेकिन साहसी पोरस ने उस संदेश को ठुकरा दिया. जिससे सिकंदर को काफी अपमानित महसूस हुआ और उसने पोरस पर आक्रमण करने का पूरा खाका तैयार कर लिया. 

जब पोरस को पता चला की सिकंदर उसपर हमला करने के लिए नदी पार कर चुका है, तो वह भी अपनी सेना के साथ आक्रमण के लिए आगे बढ़ा. पोरस ने नदी के किनारे पर अपनी अश्वारोही सेना को रखा, बीच में पैदल सेना को रखा और सामने हाथियों को रखा. सिकंदर ने अपनी भारी पैदल सेना को केंद्र में एक फालानक्स में तैनात किया, खुद दक्षिणपंथी घुड़सवार सेना का नेतृत्व किया, और एक पहाड़ी के पीछे एक विस्तृत, बाहर की सवारी पर कोएनस के तहत बाएं पंख की घुड़सवार सेना को भेजा. सिकंदर उस वक्त लगभग 50,000 सैनिकों को साथ मैदान में उतरा था, और उसके सामने पोरस की केवल 20,000 सेना खड़ी थी, लेकिन पौरव के राजा पोरस की 200 युद्ध हाथियों ने युद्ध के पहले ही दिन सिकंदर की सेना को जमकर धूल चटा दी. 

इस युद्ध में न सिर्फ विश्व विजेता सिकंदर की हार हुई बल्कि उसने राजा पोरस के साथ संधि कर ली. इस युद्ध के बाद सिकंदर ने पोरस को कई राज्य जीतने में मदद भी की.

3. पहला तराइन युद्ध (1191)

यह युद्ध 1191 में वर्तमान हरियाणा के तारोरी शहर के पास लड़ा गया था और उपमहाद्वीप के इतिहास में एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित हुआ. इस युद्ध में राजपूत संघ, जिसका नेतृत्व वीर पृथ्वीराज चौहान कर रहे थे, ने घुरी साम्राज्य की शक्तिशाली सेनाओं का सामना किया था, जो मुहम्मद गोरी के तहत थी.

युद्ध में तीव्र लड़ाई और रणनीतिक युद्धाभ्यास देखने को मिले, और अंततः राजपूत विजयी रहे. यह जीत राजपूत सैन्य शक्ति का एक महत्वपूर्ण प्रदर्शन थी और उनकी संप्रभुता की पुष्टि करती थी. हालांकि, यह जीत लंबे समय तक नहीं टिक सकी, क्योंकि इसने 1192 में होने वाले दूसरे तराइन युद्ध की तैयारी की, जिसमें गोरी एक मजबूत सेना के साथ लौटे और पृथ्वीराज को पराजित कर दिया. इस पराजय ने उत्तर भारत में मुस्लिम शासन की आधारशिला रखी. 


4. दूसरा पानीपत युद्ध (1556)

दूसरा पानीपत युद्ध एक महत्वपूर्ण सैन्य संघर्ष था जो 5 नवंबर 1556 को हुआ था. यह युद्ध भारतीय इतिहास में एक निर्णायक क्षण था, जिसमें मुग़ल सेनाएं और हेम चंद्र विक्रमादित्य (हेमु) की सेना आमने-सामने आईं थी. इस युद्ध का मुख्य कारण मुग़ल साम्राज्य की शक्ति को पुनः स्थापित करना था. बाबर की मृत्यु के बाद, उनका पुत्र अकबर युवा था और रेजेंट बैराम खान ने सत्ता संभाली थी.

हेम चंद्र विक्रमादित्य, जिन्हें हेमु के नाम से जाना जाता है, ने उत्तर भारत में अपने शासन का विस्तार किया था और उन्होंने मुग़लों को चुनौती दी. युद्ध पानीपत में हुआ और दोनों पक्षों ने बड़ी संख्या में युद्ध हाथियों का इस्तेमाल किया. हेम चंद्र विक्रमादित्या युद्ध के दौरान एक हाथी पर सवार थे जब एक तिरछी तीर उनकी आंख में लग गई और वे बेहोश हो गए. उनके गिरने से उनकी सेना में हड़बड़ी फैल गई. परिणामस्वरूप मुगल सेना की जीत हुई, जिससे मुग़ल साम्राज्य की वापसी हुई, यह युद्ध अकबर के शासन की नींव रखने में महत्वपूर्ण साबित हुआ, जिसने भारत में मुग़ल साम्राज्य को मजबूत किया. 

5. तलिकोटा का युद्ध (1565) 

तलिकोटा का युद्ध, 23 जनवरी 1565 को हुआ था. इस युद्ध ने ही दक्षिण भारत के अंतिम महान हिंदू साम्राज्यों में से एक विजयनगर साम्राज्य के पतन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी. इस साम्राज्य ने डेक्कन सुलतानतों के एक गठबंधन—अहमदनगर, बीजापुर, गोलकोंडा, बीदर, और बेरर का सामना किया. इस युद्ध में विजयनगर सेना की संख्या अधिक थी, लेकिन बावजूद इसके उन्हें एक करारी हार का सामना करना पड़ा था. युद्ध का प्रमुख मोड़ तब आया जब साम्राज्य के वास्तविक शासक, राम राय, की मृत्यु हो गई. 

युद्ध के बाद, कभी इस साम्राज्य की राजधानी हंपी को तबाह कर दिया गया. यहां तक की इसकी भव्यता भी लूट ली गई और यह खंडहर में बदल गई. इस युद्ध ने विजयनगर साम्राज्य की कहानी को समाप्त कर दिया और दक्षिण भारत के इतिहास में एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित हुआ.


6. युद्ध ऑफ कर्नाल (1739) 

युद्ध ऑफ कर्नाल 1739 में हुआ, जो अहमद शाह अब्दाली और मुग़ल सम्राट मुहम्मद शाह के बीच लड़ा गया था. यह लड़ाई भारतीय इतिहास में एक महत्वपूर्ण घटना मानी जाती है. इस युद्ध की पृष्ठभूमि में मुग़ल साम्राज्य की कमजोर स्थिति थी, जिससे अब्दाली ने भारत पर आक्रमण करने का निर्णय लिया. कर्नाल, जो वर्तमान हरियाणा में स्थित है, इस संघर्ष का स्थान था.

युद्ध के दौरान, अब्दाली ने बेहतर रणनीति और तैयारी के साथ मुग़ल सेना का सामना किया. अंततः, वह निर्णायक जीत हासिल करने में सफल रहा, जिससे मुग़ल साम्राज्य की स्थिति और भी कमजोर हो गई. इस युद्ध का प्रभाव भारतीय राजनीति पर गहरा पड़ा, क्योंकि यह मुग़ल साम्राज्य के पतन की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम था. इसके बाद क्षेत्रीय शक्तियों, जैसे मराठों और सिखों, का उदय होने लगा. इस प्रकार, युद्ध ऑफ कर्नाल ने भारतीय इतिहास में एक महत्वपूर्ण मोड़ पेश किया और ब्रिटिश साम्राज्य के उदय के लिए रास्ता प्रशस्त किया.

7. प्लासी का युद्ध (1757)

प्लासी का युद्ध 23 जून 1757 को हुआ था, जो भारतीय उपमहाद्वीप के इतिहास में एक महत्वपूर्ण घटना है. यह युद्ध अंग्रेज़ों और बंगाल के नवाब सिराजुद्दौला के बीच लड़ा गया था. इस युद्ध का मुख्य कारण था इंग्लिश ईस्ट इंडिया कंपनी की बढ़ती शक्ति और नवाब की खिलाफत. नवाब ने कंपनी की गतिविधियों को रोकने के लिए कदम उठाए, जिसके परिणामस्वरूप युद्ध हुआ. इस युद्ध में अंग्रेज़ों की जीत ने उन्हें बंगाल पर नियंत्रण स्थापित करने में मदद की और भारतीय उपमहाद्वीप में ब्रिटिश साम्राज्य की नींव रखी. इसके परिणामस्वरूप, ईस्ट इंडिया कंपनी ने बंगाल की शासन व्यवस्था अपने हाथ में ले ली, जिससे भारत में ब्रिटिश उपनिवेशवाद की शुरुआत हुई.

प्लासी का युद्ध भारतीय इतिहास में एक महत्वपूर्ण मोड़ था, जिसने ब्रिटिश साम्राज्य के विस्तार और भारतीय राजनीति पर गहरा प्रभाव डाला. 


8. तीसरा पानीपत युद्ध (1761)

तीसरा पानीपत युद्ध 14 जनवरी 1761 को हुआ था, और यह भारत के इतिहास में एक महत्वपूर्ण लड़ाई मानी जाती है. यह युद्ध मराठा साम्राज्य और अफगान आक्रमणकारी अहमद शाह अब्दाली के बीच लड़ा गया था.

इसका मुख्य कारण मराठों की बढ़ती शक्ति और क्षेत्रीय विवाद था. मराठों ने उत्तरी भारत में अपना प्रभाव बढ़ाने की कोशिश की, जिससे अब्दाली को खतरा महसूस हुआ. युद्ध में मराठों को भारी हार का सामना करना पड़ा था, जिसके परिणामस्वरूप लाखों लोग मारे गए और उनका साम्राज्य कमजोर हो गया. यह हार न केवल मराठा साम्राज्य के लिए, बल्कि पूरे भारतीय उपमहाद्वीप के लिए एक निर्णायक मोड़ साबित हुई, क्योंकि इससे ब्रिटिश साम्राज्य के विस्तार का मार्ग प्रशस्त हुआ. 

9. बैटल ऑफ बक्सर (1764)

1764 का बैटल ऑफ बक्सर 22 अक्टूबर को हुआ था. यह युद्ध ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी और बंगाल के नवाब शुजाउद्दौला, अवध के नवाब सफदरजंग, और मुग़ल सम्राट शाह आलम II के बीच लड़ा गया था.

इस युद्ध की पृष्ठभूमि पहले की लड़ाइयों, जैसे प्लासी के युद्ध, से जुड़ी थी, जहां ईस्ट इंडिया कंपनी ने बंगाल पर नियंत्रण हासिल किया था. अब्दाली के खिलाफ एकजुट होने के प्रयास में नवाबों ने मिलकर कंपनी के खिलाफ लड़ाई लड़ी.

युद्ध में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी को निर्णायक जीत मिली, जिसके परिणामस्वरूप उसे बंगाल, बिहार और उड़ीसा पर पूर्ण नियंत्रण मिला. इस जीत ने कंपनी को भारतीय राजनीति में एक प्रमुख शक्ति बना दिया और ब्रिटिश साम्राज्य के विस्तार का मार्ग प्रशस्त किया. इस प्रकार, बैटल ऑफ बक्सर ने भारतीय इतिहास में एक महत्वपूर्ण मोड़ पेश किया, जिससे ब्रिटिश शासन की नींव मजबूत हुई. 


10. साम्राज्य का युद्ध (1857)

साम्राज्य का युद्ध, जिसे भारतीय विद्रोह या 1857 का विद्रोह भी कहा जाता है, ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के खिलाफ भारतीय सिपाहियों और जनता द्वारा किया गया एक महत्वपूर्ण संघर्ष था. यह विद्रोह 10 मई 1857 को मेरठ से शुरू हुआ और बाद में पूरे भारत में फैल गया.

विद्रोह का मुख्य कारण था ईस्ट इंडिया कंपनी द्वारा लागू की गई नीतियां, जो भारतीय समाज, संस्कृति और धार्मिक भावनाओं के खिलाफ थीं. इन नीतियों में सिपाहियों के लिए नई राइफलों का इस्तेमाल, जिनमें गाय और सुअर की चर्बी का उपयोग था, शामिल था, जिसने हिंदू और मुस्लिम दोनों समुदायों में भारी नाराजगी पैदा की.

विद्रोह की शुरुआत मेरठ से हुई, जहां सिपाहियों ने अंग्रेज़ों के खिलाफ विद्रोह किया. इसके बाद दिल्ली, कानपूर, लखनऊ, झाँसी और अन्य स्थानों पर संघर्ष शुरू हुआ.विद्रोह में अनेक राजाओं, रानीयों और नेताओं ने भाग लिया, जैसे रानी लक्ष्मीबाई, बेगम हज़रत महल और तात्या टोपे.

ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ने इस विद्रोह को कड़ी मेहनत से दबा दिया.1858 में, कंपनी के शासन को समाप्त करके भारत में ब्रिटिश राज की स्थापना की गई. इस विद्रोह ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की नींव रखी और भारतीय जनता में स्वतंत्रता की भावना को जागृत किया. इस प्रकार, साम्राज्य का युद्ध 1857 भारतीय इतिहास में एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित हुआ, जिसने भारत में ब्रिटिश उपनिवेशवाद के खिलाफ संघर्ष की शुरुआत की.

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