संकट में हीरा कारोबार: क्या भारत हीरे का गढ़ बना रह पाएगा?
तरुण अग्रवाल September 25, 2024 12:12 PM

भारत सदियों से हीरे के कारोबार में अग्रणी रहा है. हीरे की कटिंग और पॉलिशिंग के लिए दुनियाभर में भारत प्रसिद्ध है. सूरत जैसे शहरों ने हीरे के कारोबार को नई ऊंचाइयां दी हैं. लेकिन बदलते समय और वैश्विक परिस्थितियों के कारण हीरा कारोबार संकट के दौर से गुजर रहा है. 

ग्लोबल ट्रेड रिसर्च इनिशिएटिव (GTRI) के अनुसार, भारत का हीरा कारोबार एक बड़े संकट का सामना कर रहा है. पिछले तीन सालों में इसमें आयात और निर्यात में काफी गिरावट आई है. इस गिरावट के कारण हीरा कारोबार करने वाली कई कंपनियां डिफॉल्ट हो रही हैं, कारखाने बंद हो रहे हैं और बड़े पैमाने पर लोगों की नौकरियां जा रही हैं. गुजरात के हीरा उद्योग से जुड़े 60 से ज्यादा लोगों ने आत्महत्या कर ली.

इस स्पेशल स्टोरी में आइए समझते हैं कि इसके पीछे क्या कारण हैं और क्या भारत हीरे का गढ़ बना रह पाएगा.

पहले जानिए कितना बढ़ा है भारत का हीरा कारोबार
भारत में 7000 से ज्यादा कंपनियां हीरों का काम करती हैं. ये कंपनियां हीरे काटने, चमकाने और बाहर भेजने का काम करती हैं. ज्यादातर कंपनियां सूरत (गुजरात) और मुंबई (महाराष्ट्र) में हैं. इनमें से बहुत सी छोटी और मझोली कंपनियां हैं. कई कंपनियां परिवार के लोग चलाते हैं.

हीरा उद्योग में करीब 13 लाख (1.3 मिलियन) लोग सीधे काम करते हैं. इनमें वे लोग शामिल हैं जो हीरे काटते, चमकाते, बेचते और बाहर भेजते हैं. अकेले सूरत में लगभग 8 लाख लोग इस काम में लगे हैं. इस कारण सूरत दुनिया का सबसे बड़ा हीरा काटने और चमकाने का केंद्र है. हीरा उद्योग से जुड़े दूसरे कामों में भी लाखों लोगों को रोजगार मिलता है. जैसे कि हीरों की ढुलाई करना, दुकानों में बेचना और हीरे काटने के औजार बनाना.

हीरे के आयात और निर्यात में भारी गिरावट
भारत में कच्चे हीरे का आयात 24.5% गिरकर वित्त वर्ष 2021-22 में 18.5 बिलियन अमरीकी डॉलर से घटकर वित्त वर्ष 2023-24 में 14 बिलियन अमरीकी डॉलर रह गया. कटे और पॉलिश किए हुए हीरे का निर्यात 34.6% गिरकर वित्त वर्ष 2022 में 24.4 बिलियन अमरीकी डॉलर से घटकर वित्त वर्ष 2024 में 13.1 बिलियन अमरीकी डॉलर रह गया है. वहीं कच्चे हीरों के शुद्ध आयात और कटे-पॉलिश किए गए हीरों के शुद्ध निर्यात के बीच का अंतर बढ़ गया है. FY 2022 में यह 1.6 अरब USD था, जो FY 2024 में 4.4 अरब USD हो गया है.

कच्चे हीरे वे हीरे होते हैं जो पृथ्वी से निकाले जाने के बाद अभी भी अपनी प्राकृतिक अवस्था में हैं. मतलब उन हीरों को न अभी आकार दिया गया है या पॉलिश नहीं की गई है. FY 2022 से FY 2024 के बीच भारत में वापस भेजे गए न बिकने वाले हीरों का प्रतिशत 35% से बढ़कर 45.6% हो गया है.

कच्चे हीरे के आयात में दुबई की हिस्सेदारी सबसे ज्यादा
दुबई ने भारत के प्रमुख कच्चे हीरे आपूर्तिकर्ता के रूप में बेल्जियम के एंटवर्प को पीछे छोड़ दिया है. दुबई अभी तक हीरे का उत्पादन नहीं करता है फिर भी भारत के कच्चे हीरे के आयात में इसका हिस्सा लगातार बढ़ रहा है. दुबई बोत्सवाना, अंगोला, दक्षिण अफ्रीका और रूस से कच्चे हीरे का आयात करता है और इन्हें भारत को फिर से निर्यात करता है. बेल्जियम की हिस्सेदारी, जो वित्त वर्ष 2020 में 37.9% थी अब घटकर वित्त वर्ष 2024 में 17.6% हो गई.

वहीं दुबई की हिस्सेदारी 36.3% से बढ़कर 60.8% हो गई और अप्रैल-जून 2024 तक 64.5% तक पहुंच गई. इसका मुख्य कारण भारत की उच्च कॉर्पोरेट टैक्स नीति है, जो विदेशी आपूर्तिकर्ताओं को मजबूर करती है कि वे पहले हीरे दुबई भेजें और फिर भारत को निर्यात करें. इससे मुंबई और सूरत का हीरा कारोबार प्रभावित हुआ है.

क्यों कम हो गया भारत का हीरा कारोबार
जीटीआरआई की रिपोर्ट के अनुसार, अमेरिका, चीन और यूरोप जैसे प्रमुख बाजारों में आर्थिक अस्थिरता, महंगाई और राजनीतिक तनाव के कारण पॉलिश किए हुए हीरों की मांग में तेजी से गिरावट आई है. इससे लग्जरी चीज जैसे हीरों पर खर्च कम हो गया है. वहीं लोगों का रुझान अब लैब में बनाए गए हीरों की ओर बढ़ रहा है. ये ज्यादा किफायती, नैतिक और टिकाऊ माने जाते हैं. ये एकदम असली हीरों जैसे दिखते हैं जिससे असल हीरों की मांग घट गई है. इसका असर भारत में कच्चे हीरे के आयात और निर्यात पर भी पड़ा है.

वैश्विक हीरे की कीमतों में लगातार उतार-चढ़ाव से खरीदार अनिश्चित हो गए हैं. वे कीमतों के और गिरने की आशंका में कच्चे हीरे खरीदने से बच रहे हैं और इसी आशा में कच्चे हीरे खरीदने में संकोच कर रहे हैं. रूस-यूक्रेन युद्ध ने भी वैश्विक हीरा आपूर्ति श्रृंखला को भी बाधित किया है. रूस एक प्रमुख कच्चे हीरे का उत्पादक है, मगर उसपर लगाए गए प्रतिबंधों ने व्यापार को और मुश्किल बना दिया है.

भारत के हीरा कारोबारियों के सामने चुनौतियां
हीरा कारोबारियों के साथ चुनौती ये हैं कि कई हीरा पॉलिशिंग यूनिट्स के पास पहले से ही बड़ी मात्रा में स्टॉक रखा हुआ है. इस कारण वह नए कच्चे हीरों का आयात नहीं कर पा रहे हैं, क्योंकि वे मौजूदा स्टॉक को बेचे बिना नया स्टॉक लेने का जोखिम नहीं उठाना चाहते हैं. उधर कच्चे माल की बढ़ती कीमतों के कारण उद्योग पर दबाव बढ़ गया है. इसके साथ ही, अंतरराष्ट्रीय बाजारों में मुनाफा कम हो गया है जिससे कई पॉलिशिंग यूनिट्स घाटे में चल रही हैं और मजबूरन कारखाने बंद करने पड़ रहे हैं. इस संकट का सबसे ज्यादा प्रभाव सूरत शहर पर पड़ा है.

इसके अलावा, यह उद्योग मुख्य रूप से बैंकों द्वारा दिए जाने वाले कर्ज पर निर्भर करता है, लेकिन वर्तमान में बैंकों की कड़ी शर्तों और कम ऋण उपलब्धता के कारण कंपनियों के लिए कच्चे हीरों की खरीदारी मुश्किल हो गई है. इससे उत्पादन और भी धीमा हो गया है. वहीं भारत से निर्यात किए गए हीरे क्वालिटी में कमी, गलत स्पेसिफिकेशन और कीमतों में उतार-चढ़ाव के कारण वापस भेजे जा रहे हैं. इन हीरों की वापसी प्रक्रिया में खर्च और समय दोनों लगते हैं.

क्या भारत हीरे का गढ़ बना रह पाएगा?
जीटीआरआई की रिपोर्ट में भारत को हीरा कारोबार का गढ़ बनाए रखने के लिए कुछ सुझाव दिए हैं. पहला सुझाव है RBI कटे और पॉलिश किए हुए हीरों के निर्यातकों के लिए क्रेडिट अवधि 6 महीने से बढ़ाकर 12 महीने कर सकता है. क्योंकि खरीदार लंबी क्रेडिट अवधि की मांग कर रहे हैं. कोविड काल के दौरान क्रेडिट अवधि 9 से 15 महीने तक बढ़ाई गई थी. ज्यादातर निर्यात कंसाइनमेंट आधार पर होते हैं. इसलिए विदेशी मुद्रा भुगतान में देरी होने पर निर्यातकों को बैंक द्वारा डिफॉल्टर घोषित किए जाने का खतरा रहता है.

भारत में मुंबई और सूरत में स्पेशल नोटिफाइड जोन (SNZs)  बनाए गए हैं जहां विदेशी कंपनियां अपने कच्चे हीरे बेच सकती हैं. लेकिन एक बड़ी समस्या है. विदेशी कंपनियों को भारत में हीरे बेचने पर 40% टैक्स देना पड़ता है. यह बहुत ज्यादा है. इस वजह से विदेशी कंपनियां भारत में हीरे नहीं बेचना चाहतीं. वे हीरों को वापस अपने देश ले जाती हैं और फिर दुबई जैसी जगहों पर बेचती हैं जहां टैक्स कम है. हालांकि,2024 के बजट में एक नई नीति लाई गई है जिसके तहत भारत में सीधे हीरे बेचने वाली विदेशी कंपनियों पर कॉर्पोरेट टैक्स कम किया जाएगा.

वहीं लैब में बने हीरों की कीमत बहुत गिर गई है. पिछले साल में कीमत 60,000 रुपये से घटकर 20,000 रुपये प्रति कैरेट हो गई. ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि बहुत ज्यादा हीरे बनाए जा रहे हैं. जब कोई गहना बेचा जाए तो उसमें साफ लिखा होना चाहिए कि उसमें लैब में बना हीरा है या नहीं. भारत में काफी हीरे बनाए जा सकते हैं, इसलिए बाहर से लाने की जरूरत नहीं है. अच्छी क्वालिटी के हीरे बनाने से भारत की अच्छी पहचान बनेगी.

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