बिलासपुर: छत्तीसगढ़ की 60 वर्षीय शारदा तिवारी ने खेल के मैदान में एक नयी कहानी लिखी है। 50 साल की उम्र के बाद खेल में वापसी कर उन्होंने राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर हिंदुस्तान का नाम रोशन किया है। हाल ही में नेपाल के पोखरा में आयोजित मास्टर एथलेटिक्स प्रतियोगिता में उन्होंने गोला फेंक, तवा फेंक और हैमर थ्रो में तीन गोल्ड मेडल जीतकर अपना नाम इतिहास में दर्ज किया है।
शारदा तिवारी ने समाज की पुरानी सोच और तानों को नजरअंदाज कर अपने सपनों का पीछा किया। 50 की उम्र के बाद खेल में वापसी कर उन्होंने 50 से अधिक राष्ट्रीय और 3 अंतर्राष्ट्रीय गोल्ड मेडल हासिल किए। उनकी इस उपलब्धि ने साबित किया कि उम्र सपनों के आड़े नहीं आती।
पारिवारिक जिम्मेदारियों के बाद खेल में वापसी
शारदा ने कहा कि वे 25 वर्ष तक घर पर अपनी बच्चियों का देखभाल करती थीं, उस समय वे खेल से पूरी तरह से टूट चुकी थीं। पारिवारिक जिम्मेदारियों के बाद, उन्होंने 2014 में खेल में वापसी की। उनकी बेटियों ने उनका साथ दिया, जिससे उनका आत्मविश्वास और प्रदर्शन दोनों में सुधार हुआ।
स्वास्थ्य के प्रति सतर्क करने का उद्देश्य
शारदा तिवारी स्त्रियों को खेल के माध्यम से स्वास्थ्य के प्रति सतर्क करना चाहती हैं। उन्होंने अपनी मेहनत और लगन से साबित किया कि उम्र केवल एक संख्या है। वे 50 साल से अधिक उम्र के लोगों के लिए एक प्रेरणा बन चुकी हैं और खासकर उन स्त्रियों को खेल के प्रति सतर्क करना चाहती हैं जो घर की बंदिशों में रहती हैं।
पहली बार पिता ने सिखाया भाला फेंकना
शारदा बताती हैं कि जब वे छोटी थीं, तब खेल के प्रति उनकी रुचि को देखकर उनके पिता ने मच्छरदानी के डंडों से भाला फेंकना सिखाया। वे अपने पिता को ही अपना पहला गुरु मानती हैं। शारदा तिवारी की कहानी हमें यह सिखाती है कि कभी भी अपने सपनों को छोड़ना नहीं चाहिए, और यह कि कठिनाइयाँ केवल एक चुनौती हैं, जिन्हें पार किया जा सकता है।