भारत में महिला कारोबारियों की स्थिति: महिलाएं उद्यमी बनना चाहती हैं या मजबूरी है?
तरुण अग्रवाल October 06, 2024 04:12 PM

देश और समाज के विकास में महिला उद्यमी बड़ा योगदान देती हैं. जब महिलाएं अपना खुद का व्यापार शुरू करती हैं, तो वे न केवल अपने लिए बल्कि और भी लोगों के लिए रोजगार के नए अवसर पैदा करती हैं. 

महिला उद्यमी नए और अलग विचारों से काम करती हैं. इससे न सिर्फ महिलाओं का सशक्तिकरण होता है, बल्कि इससे पूरे समाज में सकारात्मक बदलाव आता है, गरीबी कम होती है और लैंगिक समानता को बढ़ावा मिलता है. जब महिलाएं आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर होती हैं, तो उनकी सामाजिक स्थिति भी बेहतर होती है और वे अपने अधिकारों के लिए खड़ी हो सकती हैं.

ग्लोबल फीमेल एंटरप्रेन्योरशिप इंडेक्स (FEI) के अनुसार, महिला उद्यमिता में भारत का रैंक 77 देशों में 70वां है. यह स्थिति सवाल उठाती है कि क्या भारत जैसे देशों में महिलाएं अपनी पसंद से उद्यमिता चुन रही हैं या फिर यह उनकी आर्थिक स्थिति की वजह से मजबूरी बन रही है? इस पर हाल ही में MoSPI (सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय) ने भारत में महिला उद्यमियों की स्थिति पर विस्तृत सर्वे रिपोर्ट जारी की है. 

लेबर फोर्स में महिलाओं की भागीदारी कितनी
वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम की ग्लोबल जेंडर गैप रिपोर्ट के मुताबिक, भारत आर्थिक भागीदारी और अवसरों के मामले में 145 देशों में से 139वें स्थान पर है. यह बात लेबर मार्केट में महिलाओं की भागीदारी को लेकर कई सवाल खड़े करती है. सबसे चिंताजनक बात यह है कि महिलाओं की लेबर फोर्स में भागीदारी घट रही है. 

ग्रामीण क्षेत्रों में महिलाओं की भागीदारी 2004-2005 में 12.6 करोड़ थी, जो 2009-2010 में घटकर 10.6 करोड़ और फिर 2011-2012 में 10.3 करोड़ रह गई. वहीं, शहरी क्षेत्रों में थोड़ा सुधार हुआ है. जहां 2009-2010 में यह 24.2% थी, जो 2011-2012 में बढ़कर 28.8% हो गई.

रिपोर्ट के अनुसार, 52% लोग स्व-रोजगार में लगे हुए हैं जिसमें महिलाओं की संख्या (56%) पुरुषों (51%) से ज्यादा है. लगभग 18% कामगार सैलरीड कर्मचारी हैं, लेकिन शहरी क्षेत्रों में यह आंकड़ा लगभग 43% है, जबकि ग्रामीण क्षेत्रों में यह केवल 9% है.


कितनी महिलाएं चलाती हैं अपना कारोबार
छठी आर्थिक जनगणना के मुताबिक, भारत में कुल 5.23 करोड़ कारोबारों में से 80.5 लाख (15.40%) कारोबार महिलाएं चलाती हैं. इनमें से 83.20% कारोबार ऐसे हैं जहां कोई कर्मचारी काम नहीं करता है. 

गांव में 86.85% और शहरों में 76.33% महिलाओं के कारोबार ऐसे हैं जहां कोई कर्मचारी नहीं है. लगभग 65.12% महिलाओं के कारोबार गांव में हैं, जबकि सिर्फ 34.88% शहरों में हैं. महिलाओं के कुल कारोबारों में से 34.3% खेती से जुड़े हैं. भारत में कुल 10.30 करोड़ कामकाजी लोगों में से 1.34 करोड़ (13.08%) लोग महिलाओं के कारोबार में काम करते हैं.

क्या महिलाएं उद्यमी बनना चाहती हैं या मजबूरी है?
आर्थिक जनगणना के आंकड़े बताते हैं कि ज्यादातर महिलाएं छोटे कारोबार चलाती हैं, खासकर गांव में. इनमें से ज्यादातर खेती से जुड़े हैं और बहुत कम महिलाएं कर्मचारी रख पाती हैं. इससे पता चलता है कि शायद उनके पास और कोई ऑप्शन नहीं है, इसलिए वो मजबूरी में ये काम कर रही हैं.

हालांकि मजबूरी में किया गया कारोबार भी महिलाओं को कुछ कमाई करने में मदद करता है, लेकिन असली तरक्की तब होती है जब महिलाएं अपनी मर्जी और हुनर से कोई काम शुरू करती हैं तो उससे नौकरियां पैदा होती हैं, नई चीजें बनती हैं और अर्थव्यवस्था को मजबूती मिलती है.

अच्छी बात यह है कि पांचवीं और छठी आर्थिक जनगणना के आंकड़ों को देखें तो पता चलता है कि महिलाओं के कारोबारों की संख्या बढ़ी है. पांचवीं जनगणना में जहां 9.50% कारोबार महिलाओं के थे, वहीं छठी जनगणना में यह बढ़कर 15.40% हो गया है. महिलाओं के कारोबारों में काम करने वालों की संख्या भी बढ़ी है.

क्या महिलाओं को कारोबार करने के लिए सही माहौल मिल रहा है?
पिछले कुछ सालों में महिलाओं के कारोबारों की संख्या बढ़ी है लेकिन क्या यह बढ़त स्थिरता और सुरक्षा की ओर इशारा करती है? आर्थिक जनगणना के आंकड़े कुछ और ही कहानी बताते हैं. पांचवीं जनगणना के मुकाबले छठी जनगणना में बिना किसी पक्की जगह के चलने वाले कारोबारों की संख्या में भारी बढ़ोतरी हुई है. पांचवीं जनगणना में जहां 13.2% कारोबार बिना किसी पक्की जगह के चलते थे, वहीं छठी जनगणना में यह बढ़कर 38.5% हो गया. मतलब कि ज्यादातर महिलाएं अभी भी ऐसे कारोबार कर रही हैं जो स्थायी जगह पर नहीं हैं. जैसे कि ठेले पर सामान बेचना या घर-घर जाकर सेवाएं देना. ऐसे कारोबारों में अनिश्चितता बहुत ज्यादा होती है और मुनाफा भी कम होता है.

पांचवीं जनगणना में जहां 77.10% महिलाएं अकेले काम करती थीं, वहीं छठी जनगणना में यह बढ़कर 83.20% हो गया है. मतलब है कि महिलाओं के कारोबार का आकार बहुत छोटा है और वो बहुत कम लोगों को रोजगार दे पा रही हैं. इन आंकड़ों से साफ है कि महिलाओं के सामने कारोबार करने में कई चुनौतियां हैं.

कारोबार में महिलाओं का मालिकाना हक कम
जब हम महिलाओं और पुरुषों के कारोबारों की तुलना करते हैं, तो एक बात साफ नजर आती है कि महिलाओं के पास  अपने कारोबार पर मालिकाना हक कम है, चाहे वो खेती से जुड़ा हो या  किसी और क्षेत्र से. गांव में खेती से जुड़े कारोबारों में महिलाओं का मालिकाना हक और भी कम है. पांचवीं जनगणना में जहां 21.15% खेती के कारोबार महिलाओं के नाम पर थे, वहीं छठी जनगणना में यह घटकर 20.73% रह गया है.

इसके विपरीत, पुरुषों का मालिकाना हक बढ़ा है. पांचवीं जनगणना में 78.85%  से बढ़कर छठी जनगणना में 78.95%  खेती के कारोबार पुरुषों के नाम पर हो गए हैं. शहरों में भी यही हाल है. छठी जनगणना के अनुसार,  शहरों में 69.4% खेती के कारोबार पुरुषों के पास हैं, जबकि सिर्फ 30.31% महिलाओं के पास हैं.

हालांकि, एक अच्छी बात यह है कि शहरों में महिलाओं के मालिकाना हक में थोड़ी बढ़ोतरी हुई है. पांचवीं जनगणना में जहां 21.86% महिलाओं के पास  खेती के कारोबार थे, वहीं छठी जनगणना में यह बढ़कर 30.31% हो गया है. लेकिन पुरुषों के मालिकाना हक़ में शहरों में कमी आई है.

खेती से अलग दूसरे कारोबारों में भी महिलाओं का मालिकाना हक पुरुषों से काफी कम है. हालांकि पांचवीं और छठी आर्थिक जनगणना में महिलाओं की भागीदारी बढ़ी है, लेकिन  अभी भी 84.60%  कारोबार पुरुषों के नाम पर हैं, महिलाओं के नाम पर सिर्फ 15.40% कारोबार हैं.

दक्षिण भारत में महिला उद्यमियों का दबदबा
छठी आर्थिक जनगणना के अनुसार, ज्यादातर महिला उद्यमी दक्षिण भारत के राज्यों में हैं. ये राज्य हैं: तमिलनाडु (13.51%), केरल (11.35%), आंध्र प्रदेश (10.56%), पश्चिम बंगाल (10.33%), महाराष्ट्र (8.25%). यह  दिलचस्प है कि  उत्तर भारत के  राज्यों में जहां महिलाओं की आबादी ज्यादा है, वहां महिला उद्यमियों का प्रतिशत कम है. 


पांचवीं आर्थिक जनगणना में यह लिस्ट कुछ  अलग  थी: केरल (18.51%), तमिलनाडु (17.79%), गुजरात (12.48%). आंध्र प्रदेश (10.10%), कर्नाटक (9.58%). दोनों आर्थिक जनगणनाओं में दक्षिण भारत के राज्यों में महिला उद्यमियों का प्रतिशत ज्यादा रहा है. महाराष्ट्र एक ऐसा राज्य है जहां महिला उद्यमियों की संख्या में तेजी से बढ़ी है. 

किन क्षेत्रों में सबसे ज्यादा महिला उद्यमी 
पांचवीं और छठी आर्थिक जनगणना के अनुसार महिलाओं के सबसे ज्यादा कारोबार खेती के क्षेत्रों में थे. यह क्षेत्र महिलाओं के लिए सबसे प्रमुख बना हुआ है. पांचवीं जनगणना में 35% और छठी जनगणना में 34.3% महिला उद्यमी खेती से जुड़ी थीं. मैन्युफैक्चरिंग में महिलाओं की भागीदारी कम हुई है. पांचवीं जनगणना में 34.9% से घटकर छठी जनगणना में 29.8% हो गई है.

व्यापार में भी महिलाओं की भागीदारी घटी है. पांचवीं जनगणना में 19.1% से घटकर छठी जनगणना में 18.2% हो गई. होटल और रेस्टोरेंट सेक्टर में महिलाओं की भागीदारी थोड़ी बढ़ी है. पांचवीं जनगणना में 2.2% से बढ़कर छठी जनगणना में 2.8% हो गई है.

महिलाओं के कारोबार छोटे होने की वजह
MoSPI की रिपोर्ट कुछ अध्ययनों के हवाले से बताया गया है कि विकासशील देशों में महिलाओं के कारोबार आमतौर पर छोटे होते हैं. इसकी कई वजहें है कि महिलाओं को बैंक से कर्ज लेने में अक्सर दिक्कतों का सामना करना पड़ता है. महिलाएं अक्सर कुछ खास तरह के कारोबारों तक ही सीमित रहती हैं, जिससे उन्हें नुकसान होता है. इसके अलावा, महिलाओं को कई सामाजिक और सांस्कृतिक  बाधाओं का भी सामना करना पड़ता है. इस कारण कई बार महिलाओं को अपने कारोबार से जुड़े फैसले खुद लेने की आजादी नहीं होती.

कई बार महिलाओं को कारोबार चलाने के लिए जरूरी कौशल नहीं सिखाए जाते. घर और परिवार की जिम्मेदारियों के कारण महिलाओं के पास कारोबार पर ध्यान देने के लिए पर्याप्त समय नहीं होता. इन सभी  बाधाओं के  कारण  महिलाओं के लिए  कारोबार  शुरू करना और  उसे  कामयाब  बनाना  एक  बड़ी  चुनौती  होता है.

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