जानें काला जार की कहानी, जिसने बिहार समेत कई राज्यों में ले ली लाखों जान
कोमल पांडे October 22, 2024 09:42 AM
Kala Azar : कालाजार एक ऐसी बीमारी, जिसने बिहार समेत देशभर में लाखों लोगों की जान ले ली. अब भारत से खत्म होने की दहलीज पर है. लगातार दो सालों से इस बीमारी को खत्म करने के WHO के पैरामीटर्स के अनुसार 10,000 में से एक मामले को रखने में कामयाब रहा है.
 
बता दें कि देश में मलेरिया के बाद कालाजार दूसरी सबसे घातक परजीवी बीमारी है. केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार, देश में 2023 में 595 मामले और 4 मौतें दर्ज की गईं और इस साल अब तक 339 मामले और एक मौत दर्ज की गई है. चलिए जानते हैं कालाजार (Kala Azar) कितनी खतरनाक बीमारी है और इसकी कहानी क्या है...
 
काला जार बीमारी क्या है और कैसे फैलती है
कालाजार को काला बुखार (Black Fever) नाम से भी जानते हैं. देश में पश्चिम बंगाल, बिहार और झारखंड में इसके काफी मामले देखने को मिलते थे.  हालांकि, आज यह बीमारी करीब-करीब खत्म हो गई है.  काला जार बालू मक्खी (Sandflies) के काटने से फैलती है. इसके शुरुआती लक्षण नहीं दिखाई देते हैं. इस बीमारी को विसरल लीशमैनियासिस (VL) भी कहते हैं. यह एक प्रोटोजोआ परजीवी की वजह से होती है. ये बीमारी 9- सैंडफ्लाई प्रजातियों से ज्यादा फैलती है. 
 
 अब 40 पर्सेंट तक कम हो जाएगा सर्वाइकल कैंसर से मौत का खतरा, 10 साल की टेस्टिंग के बाद तैयार हुआ खास ट्रीटमेंट
 
काला जार बीमारी के लक्षण
अनियमित बुखार
वजन घटना
प्लीहा या लिवर
एनीमिया
हर चीज के प्रति इच्छा न होना
चेहरा पीला पड़ना
कमजोरी
 
कालाजार बीमारी का इतिहास
यह बीमारी पहली बार 1870 में असम से सामने आई थी, जो ब्रह्मपुत्र और गंगा के मैदानों के साथ बंगाल और बिहार तक तेजी से फैली. इस बीमारी से लाखों लोगों की जान चली गई थी.  सबसे पहले 1854-1875 में पश्चिम बंगाल के बर्दवान जिले के सिविल सर्जन डॉ फ्रेंच ने कुछ लोगों में इसके लक्षण देखे थे.
 
 देश के लगभग 88% लोग हैं एंग्जायटी के शिकार, अगर आप भी हैं उनमें से एक तो करें ये काम
 
तब इस बीमारी का नाम बर्दवान फीवर दिया गया है. साल 1882 में असम के तुरा में उस समय के सिविल मेडिकल अफसर क्लार्क मैकनॉट ने भी इस तरह के लक्षण देखे गए. असम के लोगों ने इस बीमारी को कालाजार नाम दिया. 1903 में विलियम लीशमैन और चार्ल्स डोनोवन ने कलकत्ता और मद्रास के 2 सैनिकों की अटॉप्सी कर पैथोजेन की खोज की. सर रोनाल्ड रॉस ने इसका नाम लीशमैनिया दिया था.
 
कालाजार क्यों खतरनाक
WHO ने इस बीमारी को खतरनाक माना है. इस बीमारी का सबसे बड़ा कारण सही समय पर इसकी पहचान न हो पाना है. ज्यादातर लोग इसे सामान्य बुखार करकर अनदेखा कर देते हैं और इलाज नहीं करवाते हैं. जहां भी ऐसे केस आते हैं, वहां सरकार सैंडफ्लाई को मारने के लिए कीटनाशक का छिड़काव करवाती है लेकिन कई इलाकों में लोग ऐसा करने से मना कर देते हैं, उन्हें लगता है इससे उन्हें नुकसान होगा. इस बीमारी को लेकर जागरूक न होना ही इसे खतरनाक बनाता है.

Disclaimer: खबर में दी गई कुछ जानकारी मीडिया रिपोर्ट्स पर आधारित है. आप किसी भी सुझाव को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह जरूर लें.

 क्या आपकी आंखों में धूल झोंक रहे हैं एंटी ग्लेयर लेंस? जान लीजिए ये कितने कारगर

 
© Copyright @2024 LIDEA. All Rights Reserved.