नेशनलिस्ट कांग्रेस पार्टी के चुनाव चिन्ह घड़ी में 10:10 ही क्यों बजते हैं? जानिए शरद पवार ने क्या बताया
अविनाश राय, एबीपी न्यूज़ October 25, 2024 09:12 PM

कभी जिस घड़ी का ईजाद चाचा शरद पवार ने किया था, अब वो घड़ी उनके हाथ से फिसलकर भतीजे अजित पवार के पास चली गई है. फैसला सुप्रीम कोर्ट का है तो किसी तरह के शक-सुबहे की भी गुंजाइश नहीं है और तय हो गया है कि असली वाली एनसीपी तो अजित पवार के पास ही है. अब महाराष्ट्र चुनाव में चाचा की घड़ी के साथ भतीजे अजित क्या कमाल कर पाते हैं, ये तो चुनावी नतीजे ही तय करेंगे, लेकिन आज हम आपको ये बताते हैं कि चाचा के हाथ से फिसलकर जो घड़ी भतीजे अजित पवार के हाथ में आई है, उस घड़ी में हमेशा 10 बजकर 10 मिनट ही क्यों होते हैं? 
 
तारीख थी 15 मई 1999. तब कांग्रेस की राष्ट्रीय अध्यक्ष थीं सोनिया गांधी. उन्होंने कांग्रेस वर्किंग कमेटी की एक बैठक बुलाई, जिसका मुख्य एजेंडा इस बात को समझना था कि अगर सोनिया गांधी के विदेशी मूल के मुद्दे को बीजेपी ने लोकसभा चुनाव में मुद्दा बनाया तो इसका कांग्रेस के प्रदर्शन पर क्या प्रभाव होगा. सवाल का पहले जवाब दिया अर्जुन सिंह ने, जिन्होंने सोनिया गांधी को राष्ट्र माता कहा. फिर एके एंटनी से लेकर गुलाम नबी आजाद और अंबिका सोनी तक ने कहा कि सोनिया गांधी का विदेशी मूल का होना कोई मुद्दा है ही नहीं.

लेकिन सोनिया गांधी के करीबी नेता पीए संगमा इससे सहमत नहीं थे. एनसीपी के संस्थापक शरद पवार अपनी आत्मकथा ऑन माई टर्म्स में लिखते हैं-

''पीए संगमा को सोनिया गांधी का बहुत करीबी समझा जाता था, लेकिन उन्होंने कहा कि इसमें कोई शक नहीं है कि सोनिया गांधी के विदेशी मूल का विषय चुनाव में एक बड़ा मुद्दा होगा.''

शरद पवार के मुताबिक तारिक अनवर भी पीए संगमा से सहमत थे. वहीं शरद पवार ने कहा-

''विपक्ष विदेशी मूल के प्रश्न को चुनावी मुद्दा नहीं बनाएगा, ये सोचना हमारी भारी भूल होगी.''

इस पूरी बातचीत के बाद बिना सोनिया गांधी के अंतिम वक्तव्य के कांग्रेस वर्किंग कमेटी की बैठक खत्म हो गई, लेकिन कांग्रेस दफ्तर के बाहर हंगामा होने लगा. अगले दिन यानी कि 16 मई 1999 को शरद पवार, तारिक अनवर और पीए संगमा ने सोनिया गांधी को पत्र लिखा कि संविधान में संशोधन के जरिए ये तय होना चाहिए कि भारत का राष्ट्रपति, उप राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री भारत में जन्मा स्वाभाविक भारतीय नागरिक होना चाहिए. शरद पवार अपनी आत्मकथा में लिखते हैं-

''जैसे ही ये पत्र कांग्रेस वर्किंग कमेटी की बैठक में पहुंचा, हम तीनों लोगों को छह-छह साल के लिए पार्टी से बाहर निकाल दिया गया.''

फिर 25 मई को ऑल इंडिया कांग्रेस कमेटी की एक बैठक दिल्ली के तालकटोरा स्टेडियम में बुलाई गई, जहां इन तीनों ही नेताओं के निलंबन पर मुहर लग गई. तो इन तीनों ही नेताओं ने मिलकर एक नई पार्टी बनाने का फैसला किया. इसके लिए 10 जून 1999 को मुंबई के सम्मुखखंड हॉल में एक बैठक बुलाई गई और तय हुआ कि नई पार्टी का नाम नेशनलिस्ट कांग्रेस पार्टी यानी कि एनसीपी होगा. पार्टी ने चुनाव आयोग से चुनाव निशान के तौर पर चरखा मांगा, लेकिन चरखा चुनाव निशान के कामराज और एस निजलिंगप्पा के कांग्रेस संगठन के नाम पर आवंटित था. ऐसे में चुनाव आयोग की ओर से घड़ी निशान एनसीपी को दिया गया. उस घड़ी में 10 बजकर 10 मिनट हो रहे थे और बकौल शरद पवार उनकी पार्टी की पहली बैठक 10 जून को 10 बजकर 10 मिनट पर ही शुरू हुई थी, तो यही उनका चुनाव चिह्न बन गया.

अब करीब 25 साल बाद शरद पवार का चुनाव चिह्न उनसे अलग हो गया है और अब उस चुनाव चिह्न के मुखिया शरद पवार के भतीजे अजित पवार हैं, जो महाराष्ट्र के विधानसभा चुनाव में उसी घड़ी चुनाव निशान का इस्तेमाल करेंगे, जिसे उनके चाचा ने 10 जून 1999 को 10 बजकर 10 मिनट पर अपनाया था. 

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