अररिया। दीपावली समाप्त होने के बाद लोग अब छठ पूजा की तैयारी में जोर-शोर से जुट गए हैं। छठ पूजा का चार दिवसीय अनुष्ठान 5 नवंबर से प्रारम्भ हो जायेगा। जहां एक ओर दुकानदार छठ पूजा में बिकने वाले सामानों की पहले से खरीदारी कर जमा करने में लगे हैं। वहीं दूसरी ओर सूप, दउरा बनाने वाले कारीगरों में सूप,दउरा बनाने की होड़ मची हुई है।
36 घंटे का निर्जला व्रत
बता दें कि कार्तिक मास की षष्ठी तिथि से छठ पर्व की आरंभ होती है जो इस बार 5 नवंबर को है। छठ पर्व का पहला दिन नहाय खाय के साथ प्रारम्भ होता है, दूसरे दिन खरना, तीसरे दिन संघ्या अर्घ्य और चौथे दिन उगते सूर्य को अर्घ्य देकर यह खत्म हो जाता है। चार दिन तक चलने वाले इस पर्व में 36 घंटे तक निर्जला व्रत रखा जाता है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, सूर्यदेव और छठी मैया की पूजा-अर्चना और अर्घ्य देने से सुख-शांति,समृद्धि और संतान की प्राप्ति होती है।
80-100 रुपये में बिक रहा एक सूप
सोमवार को भरगामा, खजुरी, भटगामा, सिमरबनी, महथावा बाजारों में सूप बिक्री स्थलों पर छठ व्रतियों की भारी भीड़ दिखने से कारीगरों में अतिरिक्त उत्साह नजर आया। कारीगर प्रदीप मल्लिक, अनिल मल्लिक, बबलू मल्लिक, चंदेश्वरी मल्लिक, मनोज मल्लिक, विनोद मल्लिक, सुनील मल्लिक, प्रमिला मल्लिक, मीना मल्लिक, गुंजा मल्लिक आदि ने कहा कि छठव्रती महिलाएं पूजा के मद्देनजर भरपूर मात्रा में सूप खरीद रही हैं। एक सूप 80-100 रुपये में बिक रहा है। इसी बिक्री से हमलोगों का पेट भरता है। इन चार-पांच दिनों में जी तोड़ मेहनत करना पड़ता है। इन्हीं समुदाय द्वारा बनाये सूप में पूजा सामग्री रख कर षष्ठी पूजा के लिए सजाया जाता है।
बांस का है विशेष महत्त्व
कारीगरों ने बोला कि हमारे द्वारा बनाए गए सूप में छठ पूजा से जुड़ी सामग्री को रखकर भगवान सूर्य की आराधना की जाती है, लेकिन फिर भी हमलोगों के साथ समाज में अच्छा व्यवहार नहीं होता है। दरअसल मूल रूप से संतान प्राप्ति के लिए यह व्रत किया जाता है। छठ में बांस के सूप का प्रयोग इस बात का प्रतीक है कि जैसे-जैसे बांस तेजी से बढ़ता है वैसे ही तेजी से संतान की भी प्रगति हो। यही वजह है कि छठ में बांस से बने सामानों का इस्तेमाल किया जाता है और इसके बिना पूजा अधूरी मानी जाती है।