पटनाः केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने पटना एम्स के कार्यकारी निदेशक डॉक्टर गोपाल कृष्ण पाल को उनके पद से हटा दिया है. अगले तीन महीने के लिए देवघर एम्स के निदेशक डॉक्टर सौरभ वार्ष्णेय को कार्यकारी निदेशक नियुक्त किया गया है. मंगलवार को केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने इस संबंध में आदेश जारी किया है. मंत्रालय के अवर सचिव अरुण कुमार विश्वास ने डॉ. जीके पाल को केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय में तत्काल प्रभाव से रिपोर्ट करने को कहा है.
दिल्ली मंत्रालय में रिपोर्ट करने का निर्देश
मंत्रालय के अवर सचिव ने अपने आदेश में कहा है कि उनके खिलाफ 4 सितंबर को शिकायत दर्ज हुई थी. जिसके बाद शिकायत के आलोक में एक जांच समिति का गठन किया गया था. उस कमेटी ने अपनी रिपोर्ट 27 सितंबर को केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय को सौंपी थी. रिपोर्ट को लेकर मंत्रालय की ओर से डॉ. जीके पाल से भी जवाब मांगा गया था. उनके जवाब के संदर्भ में डॉ. जीके पाल को कार्यकारी निदेशक के पद से हटाते हुए उन्हें दिल्ली स्थित मंत्रालय में रिपोर्ट करने का आदेश दिया गया है.
क्या है मामला
पटना एम्स के कार्यकारी निदेशक डॉक्टर जीके पाल गोरखपुर एम्स के भी कार्यकारी निदेशक के प्रभार में थे. प्रभारी ईडी रहते हुए अपने बेटे ओरो पाल का नामांकन पीजी में पटना एम्स के माइक्रोबायोलॉजी में करा दिया. नामांकन ओबीसी नॉन क्रीमी लेयर के लिए आरक्षित सीट पर कराई गई. इसके लिए डॉक्टर जीके पाल ने अपने बेटे का दानापुर एसडीओ कार्यालय से नॉन क्रीमी लेयर प्रमाण पत्र बनवा लिया.
ओडिशा के बदले पटना का दिया पता
नॉन क्रीमी लेयर प्रमाण पत्र बनवाने के लिए इसमें उन्होंने अपना स्थाई पता पटना एम्स स्थित निदेशक बंगला का दिया. मूल रूप से ओडिशा निवासी डॉ. जीके पाल के पुत्र का प्रमाणपत्र पटना से आवंटित होने और नॉन क्रीमी लेयर के विषय पर एम्स पटना में विवाद शुरू हो गया. विवाद बढ़ने पर पटना एम्स के एक चिकित्सक ने गलत प्रमाणपत्र देने पर उनके खिलाफ पहले थाने में केस दर्ज कराया.
जांच रिपोर्ट आने के बाद कार्रवाईः
इसके बाद डॉ. पाल के पुत्र ने माइक्रोबायोलॉजी से नामांकन वापस ले लिया. उसके बाद केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय में इस संबंध में शिकायत दर्ज कराई गई. चिकित्सकों ने दानापुर से नॉन क्रीमी लेयर प्रमाण पत्र निर्गत होने की शिकायत पटना डीएम से भी की. डीएम ने मामले की जांच के लिए तत्काल एक कमेटी का गठन कर दिया. विवाद बढ़ने पर केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय की ओर से भी मामले की जांच के लिए दो सदस्यीय कमेटी गठित कर दी गई. इसके बाद अब केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने यह फैसला लिया है.