जयपुर न्यूज़ डेस्क, राजस्थान विधानसभा के नेता प्रतिपक्ष टीकाराम जूली ने खानों पर छाए संकट को लेकर भजनलाल सरकार पर जमकर हमला बोला है. उन्होंने कहा कि प्रदेश में 23 हजार खानें बंद होने की स्थिति के लिए केंद्री और राज्य सरकार जिम्मेदार है. आठ नवंबर से इन खानों पर स्वत: ताले लग जायेंगे, जिसके लिए मुख्यमंत्री स्वयं जिम्मेदार होंगे. टीकाराम ने आगे कहा कि नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ( एनजीटी) ने प्रदेश की 23 हजार खानों के एनवायरमेंट क्लियरेंस की एनओसी के लिए जारी करने के लिए 7 नवंबर 2024 की अंतिम तिथि घोषित कर रखी है, लेकिन प्रदेश में राज्यस्तरीय पर्यावरण कमेटी नहीं होने से यह काम अटक गया है.
एनजीटी का अंतिम तिथि बढ़ाने से इनकार
राज्य सरकार ने नई कमेटी के गठन के लिए केन्द्रीय पर्यावरण मंत्रालय को प्रस्ताव भेज रखा है, लेकिन उसने अभी तक इस कमेटी के गठन की स्वीकृति नहीं दी है और साथ ही एनजीटी ने 7 नवंबर की अंतिम तिथि को बढ़ाये जाने से भी इनकार कर दिया है. जूली ने कहा कि अगर केन्द्र व राज्य सरकार में इतने अहम मसले पर भी समन्वय नहीं है तो फिर 'डबल इंजन सरकार' के क्या मायने हैं. यह शब्द लोगों को लुभाने के लिए भाजपा का सिर्फ़ एक जुमला भर है.
सरकार की उदासीनता खान के बंद होने की जिम्मेदार
नेता प्रतिपक्ष ने कहा कि प्रदेश में 35 हजार खानें हैं. इसमें माइनर मिनरल और क्वारी लाइसेंस धारकों की 23 हजार खानें बंद होने की नौबत के लिए राज्य सरकार की उदासीनता जिम्मेदार है. छह महीने पहले भी प्रदेश में यह स्थिति बनी थी, लेकिन तब यह अवधि आगे बढ़ गयी थी. पिछले छह महीने में राज्य सरकार ने 12 हजार आवेदकों में से सिर्फ एक हजार आवेदकों को एनओसी जारी की और अक्टूबर महीने में राज्यस्तरीय पर्यावरण कमेटी का कार्यकाल पूरा हो गया. वहीं, अन्य बारह हजार खान मालिक तो आवेदन करने से भी वंचित रहे और अब नई कमेटी के लिए केन्द्रीय पर्यावरण मंत्रालय अधिसूचना जारी नहीं कर रहा है.
उन्होंने आगे कहा कि खनिज अर्थव्यवस्था प्रदेश के उद्योग और व्यापार जगत की धुरी है. एक तरफ मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा 'राइजिंग राजस्थान' को लेकर विदेशी निवेश के लंबे-चौड़े दावे कर रहे हैं, वहीं दूसरी तरफ प्रदेश में 23 हजार खानों के बंद होने और 15 लाख लोगों की रोजी-रोटी पर संकट के बादल मंडरा रहे हैं. ईआरसीपी को लेकर हुए समझौते का भी मुख्यमंत्री प्रदेश की जनता के सामने खुलासा करने में विफल रहे हैं और अब खानों की एनवायरमेंट क्लियरेंस के संवेदनशील मुद्दे पर मुख्यमंत्री की नाकामी एक बार फिर सामने आयी है.