जजों का अपमान करना पड़ा महंगा, दिल्ली हाईकोर्ट ने वकील को 4 महीने की सुनाई सजा, जुर्माना भी ठोका
अहमद बिलाल, एबीपी न्यूज़ November 07, 2024 11:12 PM

Delhi HC Sentences Lawyer: दिल्ली HC ने बुधवार (6 नवंबर 2024) को एक वकील को अदालत की आपराधिक अवमानना करने के लिए चार महीने की जेल की सजा सुनाई. इसके साथ ही वकील पर 2,000 रुपये का जुर्माना भी लगाया. वकील ने दिल्ली HC के जजों समेत न्यायिक अधिकारियों के खिलाफ अपमानजनक टिप्पणियां की थीं. 

जस्टिस प्रतिभा एम सिंह और जस्टिस अमित शर्मा की बेंच ने बुधवार यानी 6 नवंबर को आदेश किया, जिसमें कहा गया कि वकील ने अपने किए पर कोई अफसोस भी नहीं दिखाया. अदालत ने अपने आदेश में कहा, "अदालत में सुनवाई के दौरान अवमाननाकर्ता ने कोई अफसोस नहीं दिखाया. उसने कोई माफी नहीं मांगी और उसका पूरा आचरण अदालत को बदनाम करने की कोशिश है. अवमाननाकर्ता की ओर से ऐसा व्यवहार, खासकर, जो एक वकील है, उसे सजा दिए बगैर नहीं छोड़ा जा सकता है."

जजों के खिलाफ की थी अपमानजनक टिप्पणी

आपको बता दें कि अवमाननाकर्ता वकील के खिलाफ अवमानना की कार्यवाही तब शुरू की गई जब उन्होंने वर्चुअल कोर्ट की सुनवाई के दौरान वीडियो कांफ्रेंसिंग प्लेटफॉर्म के चैट बॉक्स में जजों के बारे में अपमानजनक टिप्पणी की थी. वकील ने चैटबॉक्स में लिखा था, "उम्मीद है कि यह अदालत बार सदस्यों के दबाव के बिना योग्यता के आधार पर आदेश पारित करेगा. जो डरता है वो कभी न्याय नहीं कर पाएगा. जानबूझकर धीमी सुनवाई करती है."

उन्होंने लिखा था, "गलत आदेश पारित करती है. पंडित की तरह भविष्यवाणी करती है. बगैर मेरिट के आदेश पारित करती है. केस ज़्यादा है तो माननीय दिल्ली हाइ कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश से और केस आवंटित मत करवाओ इस अदालत को...पहले पुराने बैकलॉग को खत्म कर लो."

आरोपी ने अदालत पर उठाई उंगली

इस मामले में अवमाननाकर्ता वकील ने अपनी अलग हो चुकी पत्नी, उसके परिवार और ज्यूडिशियल अधिकारियों के खिलाफ कई शिकायतें भी दर्ज कीं, जिन्होंने वकील के खिलाफ फैसले दिए थे. मामले में अवमाननाकर्ता वकील, एडवोकेट संजीव कुमार ने अदालत में खुद का प्रतिनिधित्व किया और ये दलील दी कि उन्होंने जो भी शिकायतें दर्ज की हैं, वे उनके वैवाहिक कलह से संबंधित वैध शिकायतें थीं. वकील ने दावा किया कि उनका व्यवहार ज्यूडिशियल अधिकारियों के कथित दुर्व्यवहार से प्रेरित थे. 

अदालत ने कुमार की ओर से बार-बार की गई निराधार शिकायतों और अपमानजनक टिप्पणियों का विश्लेषण किया और निष्कर्ष निकाला कि उनके व्यवहार से अदालत को बदनाम करने और उसकी गरिमा को कम करने की मंशा दिखाई दी.

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