Lalkrishna Advani Birthday Special: आखिर क्यों आडवाणी नहीं बन सके प्रधानमंत्री, जन्मदिन के मौके पर सामने आई ये बड़ी वजह
Samachar Nama Hindi November 08, 2024 01:42 PM

लालकृष्ण आडवाणी (अंग्रेज़ी: Lal Krishna Advani, जन्म: 8 नवंबर, 1927, कराची (वर्तमान पाकिस्तान में)] भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ट नेता और भारत के पूर्व उप-प्रधानमंत्री हैं। भारतीय जनता पार्टी को भारतीय राजनीति में एक प्रमुख पार्टी बनाने में उनका योगदान सर्वोपरि कहा जा सकता है। वे कई बार भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष रह चुके हैं। भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व वाली गठबंधन सरकार में दो बार (1998 और 1999) केंद्रीय ग्रहमंत्री नियुक्त हुए। आडवाणी ने पार्टी को पुनर्जीवित कर मज़बूत बनाने का प्रमुख रूप से उत्तरदायित्व निभाया। 1980 के दशक के आरंभ में भारत के राजनीतिक मानचित्र पर वस्तुत: अस्तित्वहीन यह पार्टी भारत की सबसे मज़बूत राजनीतिक शक्तियों में एक रूप में उभरी है।

जीवन परिचय

लालकृष्ण आडवाणी का जन्म 8 नवम्बर, 1927 को पाकिस्तान के कराची में हुआ था । उनके पिता श्री के. डी. आडवाणी था और माता का नाम ज्ञानी आडवाणी था। विभाजन के बाद आडवाणी भारत आ गए। लालकृष्ण आडवाणी ने अपनी शुरुआती शिक्षा लाहौर में ही हुई थी पर बाद में भारत आकर उन्होंने मुंबई के गवर्नमेंट लॉ कॉलेज से लॉ में स्नातक की शिक्षा प्राप्त की। जब लालकृष्ण आडवाणी सेंट पैट्रिक स्कूल में पढ़ रहे थे, उनके देश भक्ति विचारों ने उन्हें केवल 14 वर्ष की आयु में राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ (आर.एस.एस.) से जुड़ने के लिए प्रेरित किया। तभी से उन्होंने राष्ट्र की सेवा में अपना पूरा जीवन समर्पित किया हुआ है। आज वे भारतीय राजनीति में एक बड़ा नाम हैं।

25 फ़रवरी, 1965 को 'कमला आडवाणी' को अपनी अर्धांगिनी के रूप में स्वीकार किया। लालकृष्ण आडवाणी के परिवार की तरह ही कमलाजी का परिवार भी देश के विभाजन के बाद कराची से विस्थापित होकर आया था। कमला जी को भी आम नागरिक की तरह कठिन जीवन जीना पड़ा। उन्होंने लगभग 17 वर्षों तक दिल्ली तथा मुम्बई के जनरल पोस्ट ऑफिस में कार्य किया।

लालकृष्ण आडवाणी के दो बच्चे हैं एक पुत्र जयंत है और एक पुत्री प्रतिभा दोनों अपना प्रोफेशनल जीवन जी रहे हैं। जयंत दिल्ली में अपना एक छोटा सा कारोबार चलाते हैं। वे क्रिकेट के बहुत ही शौकीन हैं। प्रतिभा एक प्रसिद्ध टी.वी. व्यक्तित्व हैं। कई चैनलों पर प्रसारित किये जाने वाले कार्यक्रमों की एंकरिंग तथा प्रस्तुति करती हैं। उन्होंने टी.वी. चैनलों के लिए हिन्दी सिनेमा पर आधारित कथ्यपरक कार्यक्रम तैयार करने में विशेषता हासिल की है। इन कार्यक्रमों में राम, कृष्ण, शिव, गणेश और हनुमान तथा हिन्दी सिनेमा में होली, दीपावली और राखी के त्यौहारों को प्रमुख स्थान दिया है। प्रतिभा ने हिन्दी सिनेमा में 'वन्दे मातरम्' पर एक फ़िल्म भी बनाई है। इन कार्यक्रमों में सांस्कृतिक तथा देशभक्तिपूर्ण मूल्यों को प्रभावशाली ढंग से प्रस्तुत करने के लिए इनकी व्यापक रूप से सराहना की है। श्री आडवाणी जी की स्वर्णजंयती रथ यात्रा (1997) तथा भारत सुरक्षा यात्रा (2006) पर बनी फ़िल्में भी प्रतिभा के कार्यों में शामिल हैं।

राजनीतिक जीवन

कराची में आरंभिक स्कूली शिक्षा पूरी करने के बाद आडवाणी ने क़ानून की पढ़ाई के लिए बंबई विश्वविद्यालय में दाखिला लिया। वह राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ में शामिल हो गए और देश के विभाजन के बाद उन्होंने राजस्थान में संगठन की गतिविधियों का कार्यभार संभाला। 1951 में जब डॉक्टर श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने जनसंघ (भारतीय जनता पार्टी का पूर्ववर्ती) की स्थापना की, तो आडवाणी पार्टी की राजस्थान इकाई के सचिव बने। बाद में दिल्ली चले गए और उन्हे जनसंघ की दिल्ली इकाई का सचिव नियुक्त किया गया।

1970 में वह राज्यसभा के सदस्य बने और 1989 तक इस पद पर बने रहे। 1973 में उन्हे भारतीय जनसंघ को अध्यक्ष चुना गया और 1977 तक उन्होंने पार्टी का संचालन किया। जनता पार्टी के नेतृत्व वाली मोरारजी देसाई की गठबंधन सरकार में सूचना और प्रसारण मंत्री नियुक्त होने के बाद उन्होंने पार्टी अध्यक्ष पद छोड़ दिया। मंत्री के रूप में अपने कार्यकाल में उन्होंने प्रेस सेंसरशिप समाप्त की, आपातकाल के दौरान बनाए गए प्रेस-विरोधी क़ानूनों को निरस्त किया और मीडिया की स्वतंत्रता को बचाए रखने के लिए सुधारों की शुरुआत की। उन्होंने संसद में प्रसार भारती (ब्रॉडकास्टिंग कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया) विधेयक प्रस्तुत किया, जिसमें दूरदर्शन और रेडियो को स्वायत्तता प्रदान करने का प्रावधान था।
भारतीय जनता पार्टी का गठन
मोरारजी देसाई सरकार के पतन के फलस्वरूप भारतीय जनसंघ का विभाजन हो गया। आडवाणी तथा अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में बड़ी संख्या में भारतीय जनसंघ के लोगों ने 1980 में एक राजनीतिक पार्टी, भारतीय जनता पार्टी का गठन किया। आरंभिक वर्षों में भारतीय जनता पार्टी को नाममात्र का जन समर्थन मिला और 1984 के संसदीय चुनावों में यह लोकसभा की सिर्फ दो सीटें जी जीत पाई। पार्टी को लोकप्रिय बनाने तथा जनता को इसके कार्यक्रम से अवगत कराने के लिए आडवाणी ने 1990 के दशक में देश भर में कई रथ यात्राएं (राजनीतिक अभियान) की। इनमें से पहली यात्रा हिंदुओं के अत्यंत पूज्य भगवान राम पर केंद्रित थी।

चुनाव क्षेत्र
लालकृष्ण आडवाणी का चुनाव क्षेत्र गाँधीनगर, गुजरात है।

सदस्यता
  • राज्य सभा, 1970-1989 (चार बार);
  • विपक्ष के नेता, राज्य सभा, 1979-1981;
  • विपक्ष के नेता, लोक सभा, 1989-1991 और 1991-1993
केंद्रीय कैबिनेट मंत्री
  • सूचना और प्रसारण, 1977-1979,
  • गृहमंत्री, 1998-1999 और 13 अक्टूबर 1999 से 29 जून 2002
  • उपप्रधानमंत्री और गृह मंत्री, 29 जून 2002 से 1 जुलाई 2002
  • उपप्रधानमंत्री, गृह मंत्री तथा कोयला और खान मंत्री, 1 जुलाई 2002 से 26 अगस्त 2002
  • उप-प्रधानमंत्री और गृह मंत्री, 26 अगस्त, 2002 - 20 मई, 2004
यात्राएँ

राम रथ यात्रा 25 सितम्बर, 1990 को पंडित दीनदयाल उपाध्याय जी के जन्मदिन पर सोमनाथ से शुरू हुई थी और जिसका 10,000 कि.मी. की यात्रा करने के बाद 30 अक्तूबर को अयोध्या में समापन किया जाता था। यात्रा का सीधा सा सन्देश जनता में एकता और सांस्कृतिक राष्ट्रवाद की भावना जागृत करना, परस्पर समझदारी बढ़ाना तथा जनता को सरकार की तुष्टिकरण तथा अल्पसंख्यकवाद की राजनीति के बारे में समझाना था। इस यात्रा को अभूतपूर्व सफलता मिली राजनीतिक तौर पर भीड़ जुटाने हेतु ऐसी लोकप्रियता कभी हासिल नहीं हुई। इस यात्रा ने जनता द्वारा दर्शायी गई लोकशक्ति और दिल्ली के शासकों द्वारा प्रस्तुत राजशक्ति के बीच तुलना की ओर लोगों का ध्यान आकृष्ट किया।

श्री आडवाणी ने निष्ठुर, लोकतंत्र-विरोधी और जन-विरोधी उपायों के विरुद्ध जनमत जुटाने हेतु नेतृत्व प्रदान किया। श्री आडवाणी ने पार्टी के वरिष्ठ नेताओं के नेतृत्व में देश की चारों दिशाओं से यात्रा आरंभ करने की योजना बनाई। इन विधेयकों के जरिए छद्म-पंथनिरपेक्षवादी चार प्रमुख उद्देश्य प्राप्त करना चाहते थे।

  • चुनावों की मूल योजना को बिगाड़ना और पहले से अधिकृत अयोग्यता की अनुमति देना।
  • प्रतिबंधित संगठनों को संवैधानिक वैद्यता उपलब्ध कराना।
  • ऐसे राष्ट्र जो सभी धर्मों का समान रूप से आदर करता हो, को अधार्मिक बनाना।
  • राजनीतिक पार्टियों के पंजीकरण को समाप्त करने की अनुमति देना।

चारों यात्राएं 11 सितम्बर, 1993 को स्वामी विवेकानन्द के जन्मदिन से देश की चारों दिशाओं से यात्रा आरम्भ हुईं। श्री आडवाणी ने मैसूर से यात्रा का नेतृत्व किया था। श्री भैरोसिंह शेखावत ने जम्मू से; मुरली मनोहर जोशी ने पोरबंदर से और श्री कल्याण सिंह ने कलकत्ता से यात्रा आरंभ की थी। 14 राज्यों और 2 केन्द्रशासित क्षेत्रों से यात्रा करते हुए यात्री एक बड़ी रैली में 25 सितम्बर को भोपाल में एकत्र हुए। जनादेश यात्रा को जबरदस्त सफलता भी मिली थी।

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