भारत एक कृषि प्रधान देश है, जहां अधिकांश ग्रामीण जनसंख्या कृषि पर निर्भर है. इसके बावजूद, देश के विभिन्न राज्यों में कृषि से होने वाली आय में भारी असमानता है. हाल के आंकड़े इस बात की ओर इशारा करते हैं कि पंजाब जैसे राज्यों में किसानों की औसत मासिक आय राज्यों की तुलना में तीन गुना ज्यादा है. यह असमानता उत्पादन, सरकारी नीतियों, बाजार तक पहुंच, भूमि-धारण पैटर्न और सामाजिक-आर्थिक स्थितियों के तमाम अंतर को साफ-साफ दिखाती है.
नेशनल बैंक फॉर एग्रीकल्चर एंड रूरल डेवलपमेंट (NABARD) की सर्वे रिपोर्ट 2021-22 और राष्ट्रीय सर्वेक्षण कार्यालय (NSSO) द्वारा उपलब्ध आंकड़ों के मुताबिक, पंजाब, हरियाणा और केरल जैसे राज्यों में खेती पर निर्भर परिवारों की मासिक आय दूसरे राज्यों की तुलना में अधिक है. वहीं, बिहार, ओडिशा और झारखंड में यह औसत से काफी कम है.
इस रिपोर्ट में हम पंजाब और बिहार के किसानों की आय में इस असमानता के कारणों का विश्लेषण करेंगे और उन नीतिगत सिफारिशों पर चर्चा करेंगे जिनके माध्यम से देश के सभी राज्यों में कृषि आय में सुधार लाया जा सकता है.
ऐतिहासिक पृष्ठभूमि: हरित क्रांति और इसके प्रभाव
1960 के दशक में शुरू हुई हरित क्रांति ने भारतीय कृषि को नयी दिशा दी. इस क्रांति के अंतर्गत, पंजाब में उन्नत बीज प्रजातियों (HYVs) का इस्तेमाल, सिंचाई में सुधार और उर्वरकों के बढ़ते उपयोग से कृषि उत्पादकता बहुत ज्यादा बढ़ गई.
गेहूँ का उत्पादन: पंजाब में हरित क्रांति के बाद गेहूं का उत्पादन 1965 में लगभग 12 लाख टन से बढ़कर 2021-22 में 170 लाख टन तक पहुंच गया.
धान की खेती: इसी प्रकार, पंजाब का धान उत्पादन भी बढ़ा, जिससे यह राज्य भारत के कुल धान उत्पादन में महत्वपूर्ण योगदान देने लगा.
इसके विपरीत, बिहार में ऐसी कृषि तकनीकों और संसाधनों का अभाव रहा, जिससे यहां की कृषि उत्पादकता और किसानों की आय में वो वृद्धि नहीं हो पाई जो पंजाब जैसे राज्यों में देखने को मिली.
सरकारी नीतियाँ और न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) का प्रभाव
पंजाब में न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) का ठीक तरीके से लागू किया गया जिससे किसानों को एक निश्चित मूल्य पर उनके उत्पाद बेचने की गारंटी मिली. वर्ष 2021-22 में गेहूँ के लिए MSP ₹2,015 प्रति क्विंटल और धान के लिए ₹1,940 प्रति क्विंटल तय किया गया था. MSP पर इस असरकारक नीति ने किसानों को उत्पाद के सही मूल्य मिलने की गारंटी दी, जिससे उनकी आय बढ़ी.
वहीं, बिहार में MSP का फायदा किसानों तक इसलिए नहीं पहुंचा क्योंकि वहां की सरकारों के काम करने का तरीका ढुलमुल रहा. किसानों में MSP की जानकारी का अभाव और सरकारी तंत्र में प्रशासनिक बाधाओं के कारण किसानों को MSP का लाभ नहीं मिल पाता है, जिससे उन्हें बाज़ार में अपने उत्पाद को कम कीमत पर बेचना पड़ता है.
आज के दौर में किसानों की आय के आंकड़े
NABARD के आंकड़ों के मुताबिक, 2021-22 में पंजाब में खेती पर निर्भर परिवारों की औसत मासिक आय ₹31,433 थी जबकि बिहार में यह केवल ₹9,252 रही. इस बड़े फर्क के पीछे एक नहीं कई वजहें भी हैं.
1. बाजार तक पहुँच और बुनियादी ढांचा: पंजाब में लगभग 150 मण्डियां (बाज़ार) हैं, जिससे किसानों को अपनी फसल का उचित मूल्य मिल जाता है. इसके विपरीत, बिहार में केवल 50 के आसपास ही मण्डियां हैं, जिससे किसानों को उनकी फसल के लिए उचित मूल्य मिलना कठिन हो जाता है.
2. भूमि-धारण पैटर्न: पंजाब में औसत भूमि-धारण आकार 3.6 हेक्टेयर है, जबकि बिहार में यह मात्र 0.4 हेक्टेयर है. बड़ी भूमि पर खेती से पैमाने की अर्थव्यवस्था का लाभ मिलता है, जिससे लागत कम होती है और आय बढ़ती है.
3. तकनीकी निवेश: पंजाब में लगभग 60% खेतों में मशीनीकरण हो चुका है, जबकि बिहार में केवल 20% खेतों में ही तकनीकी उपकरणों का उपयोग होता है. इससे पंजाब में कृषि उत्पादकता में सुधार हुआ है, जबकि बिहार में उत्पादकता और आय अपेक्षाकृत कम है.
कृषि तकनीक और संसाधनों का उपयोग
फसल प्रबंधन तकनीकें: पंजाब में उन्नत सिंचाई तकनीकों का उपयोग होता है. वहां 95% कृषि भूमि पर सिंचाई की सुविधा है, जबकि बिहार में केवल 50% भूमि पर सिंचाई होती है. इसके अलावा, पंजाब में उर्वरकों का उपयोग अधिक होता है (लगभग 180 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर) जबकि बिहार में यह केवल 90 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर ही है.
पशुधन और सहकारी समितियां: पंजाब में पशुधन का उपयोग सिर्फ आय के स्रोत के रूप में ही नहीं, बल्कि मिट्टी की उर्वरता बढ़ाने के लिए भी होता है. वहां की डेयरी सहकारी समितियां जैसे कि वेरका, किसानों को दूध का उचित मूल्य दिलवाती है. इसके विपरीत, बिहार में पशुधन का क्षेत्र उतना संगठित नहीं है और सहकारी आंदोलन की भी कमी है.
आर्थिक माहौल और ग्रामीण बुनियादी ढांचा: पंजाब में ग्रामीण बुनियादी ढांचा बेहतर है. वहां के 80% गांवों में हर मौसम में चलने योग्य सड़कें हैं और 99% गाँवों में बिजली की सुविधा है. इसके विपरीत, बिहार के ग्रामीण क्षेत्रों में सीमित सड़क और बिजली की सुविधा है, जो कि कृषि उत्पादकता और लाभप्रदता को प्रभावित करता है.
क्रेडिट और आर्थिक सहायता की उपलब्धता: पंजाब के किसानों को क्रेडिट तक बेहतर पहुँच है, जबकि बिहार के किसानों को अक्सर उच्च ब्याज दरों पर असंगठित स्रोतों से ऋण लेना पड़ता है. पंजाब में बैंकों का क्रेडिट-टू-GDP अनुपात लगभग 12% है, जो कृषि निवेश के लिए फायदेमंद है. इसके विपरीत, बिहार के किसान, विशेषकर छोटे किसान, महाजन और अन्य असंगठित स्रोतों पर निर्भर रहते हैं, जिनकी ब्याज दरें अक्सर 30% तक होती हैं.
नीति सुधार और भविष्य की दिशा
1. MSP कार्यान्वयन को मजबूत करना: सभी राज्यों में MSP का प्रभावी कार्यान्वयन करना जरूरी है, जिससे किसानों की आय में स्थिरता आए. इसके अलावा, अन्य फसलों के लिए भी MSP का दायरा बढ़ाना चाहिए, जिससे किसानों को विविधता में निवेश का प्रोत्साहन मिले.
2.बाजार ढांचे में सुधार: बिहार जैसे राज्यों में बाजार संरचना को सुधारने की जरूरत है, जिससे किसानों को उचित मूल्य मिल सके. नई मण्डियाँ स्थापित करना और निजी क्षेत्रों को बाजार में आमंत्रित करना आवश्यक है.
3.तकनीकी को प्रोत्साहन: बिहार जैसे राज्यों में कृषि में तकनीकी को बढ़ावा देने के लिए सब्सिडी और प्रशिक्षण कार्यक्रम शुरू किए जाने चाहिए.
4. सहकारी आंदोलन को सशक्त बनाना: सहकारी समितियों का गठन किसानों की सौदेबाजी की शक्ति को बढ़ाता है. बिहार जैसे राज्यों में सहकारी समितियों को बढ़ावा देना चाहिए.
5. क्रेडिट तक पहुँच में सुधार: सरकारी नीति के माध्यम से छोटे किसानों को सस्ता ऋण उपलब्ध कराने की दिशा में काम करना चाहिए, ताकि वे खेती में बेहतर निवेश कर सकें.
पंजाब और बिहार के किसानों की आय में असमानता केवल राज्य विशेष के उत्पादन या फसलों पर निर्भर नहीं है. इसके पीछे ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य, आर्थिक और सामाजिक परिस्थितियाँ, बाजार की स्थिति, और बुनियादी ढांचे में फर्क की प्रमुख भूमिका है. उचित नीतियों के माध्यम से बिहार और अन्य पिछड़े राज्यों के किसानों की स्थिति में सुधार लाया जा सकता है. बाजार पहुँच, तकनीकी उन्नयन, और सहकारी संगठनों के माध्यम से किसानों की आय में वृद्धि करना संभव है, जिससे देश की कृषि व्यवस्था को फायदा पहुंचे.