कांग्रेस नेता राहुल गांधी आज झारखंड के सिमडेगा में चुनाव प्रचार करने पहुंचे थे. इस दौरान उन्होंने बीजेपी पर जमकर निशाना साधा. राहुल ने बोला कि मैं आपको मणिपुर के बारे में बताता हूं. बीजेपी ने मणिपुर को जला दिया और आज तक, हिंदुस्तान के प्रधान मंत्री ने वहां का दौरा नहीं किया है. इसका मतलब है कि उन्होंने इस बात को मान लिया है कि मणिपुर जैसा कोई राज्य नहीं है. उन्होंने बल देते हुए बोला कि बीजेपी की विचारधारा के कारण मणिपुर जला.
राहुल गांधी ने आगे बोला कि मैं चाहता हूं कि यदि यह राष्ट्र चले, तो 90% लोग इस राष्ट्र को चलाएं और भाजपा चाहती है कि राष्ट्र को 2-3 लोग चलाएं- पीएम नरेंद्र मोदी, एचएम अमित शाह, अंबानी और अडानी – और पूरे राष्ट्र की संपत्ति, चाहे आपकी ज़मीन हो, चाहे जंगल हो – सब आपसे छीन लिया जाएगा और इन 10-15 बड़े अरबपतियों को दे दिया जाएगा. उन्होंने बोला कि पीएम नरेंद्र मोदी ने 25 लोगों का 16 लाख करोड़ रुपये का ऋण माफ कर दिया है. उनमें आपको एक भी आदिवासी, दलित या पिछड़ा वर्ग का आदमी नहीं मिलेगा. जब हम कहते हैं कि किसानों का ऋण माफ होना चाहिए तो वो कहते हैं कि देखो राहुल गांधी किसानों की आदत खराब कर रहे हैं. जब आपने उनका ऋण माफ किया तो क्या आपने उनकी आदतें खराब नहीं कर दीं?
राहुल ने बीजेपी पर इल्जाम लगाया कि ये दलित और अल्पसंख्यकों के विरोधी हैं. उन्होंने बोला कि राष्ट्र में दलितों, पिछड़ों और आदिवासियों की कोई भागीदारी नहीं है. राष्ट्र के दलित, पिछड़े और आदिवासी वर्ग के लोग सक्षम हैं. आप में कोई कमी नहीं है. आप हर तरह का काम कर सकते हैं, लेकिन आपके रास्ते को रोका जाता है. मैंने संसद में जातिगत जनगणना की बात उठाई तो नरेंद्र मोदी चुप हो गए. उन्होंने बोला कि बीजेपी के लोग जहां भी जाते हैं, वो एक भाई को दूसरे भाई से, एक धर्म को दूसरे धर्म से, एक भाषा को दूसरी भाषा से लड़ाते हैं. इसलिए हमने ‘भारत जोड़ो यात्रा’ की, जिसमें नारा था- ‘नफरत के बाजार में मोहब्बत की दुकान’ खोलेंगे. जिससे हिंदुस्तान के लोग प्यार से एक साथ रहें.
कांग्रेस नेता ने बोला कि राष्ट्र में करीब 50% OBC, 15% दलित, 8% आदिवासी और 15% अल्पसंख्यक वर्ग के लोग हैं. ये जनसंख्या कुल 90% है. लेकिन आपको राष्ट्र की बड़ी-बड़ी कंपनियों के मैनेजमेंट में OBC, दलित और आदिवासी वर्ग का आदमी नहीं मिलेगा. उन्होंने बोला कि हिन्दुस्तान की गवर्नमेंट को 90 अधिकारी चलाते हैं, राष्ट्र के पूरे बजट का फैसला यही अधिकारी लेते हैं. यदि इसमें से एक अधिकारी आदिवासी वर्ग का है, तो गवर्नमेंट के 100 रुपए के खर्च में वो आदिवासी अधिकारी 10 पैसे का फैसला लेता है.