भाजपा के स्टार प्रचारक योगी आदित्यनाथ महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में प्रचार के लिए महाराष्ट्र गए और अपनी ही पार्टी के लिए मुसीबत खड़ी करके चले आए। महाराष्ट्र में 20 नवंबर को विधानसभा चुनाव के अनुसार वोटिंग होनी है। इसी कड़ी में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ 6 नवंबर को पूर्वी महाराष्ट्र के वाशिम में प्रचार करने गए थे। वहां उन्होंने अपना पसंदीदा और हाल में हिट हुआ जुमला ‘बंटेंगे तो कटेंगे’ दोहराया। बीजेपी की सहयोगी एनसीपी (अजित) को यह रास नहीं आया। बीजेपी के साथी एनसीपी (अजित) के मुखिया अजित पवार को आदित्यनाथ का ये जुमला बिल्कुल नागवार गुजरा। उन्होंने उनकी जमकर खिंचाई कर दी और बोला कि जब दूसरे राज्यों के लोग यहां आते हैं तो वे अपने राज्य की जनता को दिमाग में रखते हुए बातें करते हैं। महाराष्ट्र ऐसी बातों को कभी स्वीकार नहीं करेगा और ये यहां हर चुनाव में साबित भी हो चुका है।
अजित पवार ने योगी और बीजेपी को एक तरह से चेतावनी देते हुए बोला कि ‘महाराष्ट्र छत्रपति शिवाजी महाराज, राजर्षि साहू महाराज और महात्मा फुले जैसे महापुरुषों की धरती है। आप महाराष्ट्र की तुलना किसी और राज्य से मत कीजिए। महाराष्ट्र के लोग इसे पसंद नहीं करते।’ अजित पवार ने बीजेपी को यह भी याद दिलाया कि शिवाजी ने हमें सबको साथ लेकर चलना सिखाया है। वैसे, बीजेपी और पीएम मोदी का भी नारा रहा है ‘सबका साथ, सबका विकास’, लेकिन बीजेपी के तमाम बड़े नेता चुनावी भाषणों में ऐसे नारों को झुठलाते देखे गए हैं। योगी आदित्य नाथ का बयान सीधे तौर पर मुस्लिमों पर निशाना माना जाता रहा है और महाराष्ट्र में यह एनसीपी की राजनीति के विरुद्ध जाता है। महाराष्ट्र में मुस्लिम पांरपरिक रूप से कांग्रेस पार्टी और एनसीपी के साथ रहे हैं। राज्य की करीब 60 विधानसभा सीटें ऐसी हैं जहां मुसलमान मतदाता चुनावी समीकरण प्रभावित करने की क्षमता रखते हैं। इनमें से 38 ऐसी हैं जहां कम से कम हर पांचवा वोटर मुस्लिम है।
एनसीपी में बंटवारे के बाद पहला विधानसभा चुनाव
एनसीपी में बंटवारे के बाद यह पहला विधानसभा चुनाव है, लेकिन लोकसभा चुनाव के परिणामों का विश्लेषण करने पर पता चलता है कि मुसलमान मतदाता अजित पवार के संचालन वाले एनसीपी से दूर रहे। शरद पवार के संचालन वाले एनसीपी का प्रदर्शन लोकसभा में अजित पवार गुट की तुलना में काफी अच्छा रहा था। संभवत: इसका कारण अजित पवार का बीजेपी के साथ होना ही था। लेकिन, सत्ता में भागीदारी की विवशता के चलते अजित पवार बीजेपी का साथ नहीं छोड़ सकते। इस विवशता के साथ मुसलमान मतदाताओं को नाराज करने का जोखिम वह नहीं उठा सकते। योगी आदित्य नाथ पर उनके जवाबी निशाने को इन्हीं संदर्भों में देखा जाना चाहिए। लोकसभा चुनाव के समय जमीनी स्तर पर अजित पवार की पार्टी के कई नेता-कार्यकर्ता बीजेपी के साथ एनसीपी के गठबंधन के पक्ष में नहीं थे।
योगी का ताजा जुमला
योगी आदित्यनाथ ने हाल ही में उत्तर प्रदेश के एक कार्यक्रम में पहली बार यह जुमला सुनाया, ‘बंटेंगे तो कटेंगे।’ उनके इस जुमले को कट्टर हिंदुत्ववादी समझे जाने वाले बीजेपी नेताओं ने हाथों-हाथ लिया। बीजेपी सांसद गिरिराज सिंह ने बिहार में हिंदू स्वाभिमान यात्रा निकाली और इस दौरान ‘बंटेंगे तो कटेंगे’ पर बल दिया। उधर, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) ने भी मथुरा में अपनी बैठक में इस जुमले को हिंदू एकता से जोड़ते हुए इसे एक तरह से मान्यता दे दी। महाराष्ट्र में बड़ी संख्या में उत्तर भारतीय वोटर्स हैं। उनका ध्यान रखते हुए बीजेपी ने योगी के इस जुमले को वहां के चुनाव में प्रारम्भ से ही उछाला है। योगी के पहुंचने से काफी पहले, अक्तूबर के अंतिम सप्ताह में ही बीजेपी नेताओं ने महाराष्ट्र में कई स्थान ‘बंटेंगे तो कटेंगे’ के नारे के साथ पोस्टर लगाए थे।
झारखंड में भी ‘हेट स्पीच’
महाराष्ट्र के साथ झारखंड में भी विधानसभा चुनाव हो रहे हैं। वहां बीजेपी के एक सांसद, निशिकांत दुबे का ताजा बयान है कि बीजेपी जीती तो झारखंड से करीब 60 प्रतिशत मुसलमान बाहर हो जाएंगे, क्योंकि ये बांग्लादेशी घुसपैठिये हैं। पीएम सहित तमाम बड़े भाजपाई नेता लगातार मामला उठाते हुए दावा कर रहे हैं कि झारखंड, खास कर संथाल परगना में बांग्लादेशी घुसपैठियों की संख्या बहुत बढ़ गई है। वे कह रहे हैं कि बीजेपी की गवर्नमेंट बनी तो एनआरसी लागू कर सभी गैरकानूनी घुसपैठियों को बाहर कर दिया जाएगा। भाजपा सांसद नवीन जायसवाल और केंद्रीय मंत्री शिवराज सिंह चौहान के विरुद्ध इसी तरह के बयान दिए जाने को लेकर चुनाव आयोग से कम्पलेन भी की गई है।
हिंदू ध्रुवीकरण बीजेपी की राजनीति का मुख्य आधार
झारखंड में भी मुसलमान वोट मुख्य रूप से गैर बीजेपी पार्टियों को ही जाता रहा है। आदिवासियों और मुस्लिमों के संयुक्त समर्थन से पिछले चुनाव में झारखंड मुक्ति मोर्चा के संचालन वाले गठबंधन को सत्ता में आने में बड़ी सहायता मिली थी। असल में हिंदू ध्रुवीकरण बीजेपी की राजनीति का मुख्य आधार रहा है। घुसपैठियों का मामला भी उसकी ध्रुवीकरण की राजनीति का ही एक हिस्सा है। यह मामला उसके लिए कई राज्यों में चुनावी लिहाज से लाभ वाला भी साबित रहा है। बांग्लादेश से सटे राज्यों, असम, बंगाल, त्रिपुरा आदि में बीजेपी इस मामले का सियासी लाभ उठा चुकी है। झारखंड में बांग्लादेशी घुसपैठिये का मामला भी इसी सफलता के भरोसे पर उठाया जा रहा है। बंगाल में हाल ही में तृणमूल कांग्रेस पार्टी और बीजेपी नेता मिथुन चक्रवर्ती के ‘भड़काऊ बयान’ पर राजनीति बहुत गरम रही थी।
भाजपा शासित राज्यों में ‘हेट स्पीच’ के कितने मामले?
अमेरिका के वाशिंगटन डीसी स्थित एक संगठन इण्डिया हेट लैब ने इस वर्ष की आरंभ में एक रिपोर्ट जारी की थी। इसमें कहा गया था कि वर्ष 2023 में हिंदुस्तान में मुस्लिमों को निशाना बना कर दिए गए 668 भड़काऊ बयान दर्ज किए गए थे। इनमें से करीब 75 प्रतिशत (498) बयान बीजेपी शासित राज्यों, केंद्र शासित प्रदेशों और दिल्ली (जहां की पुलिस केंद्र गवर्नमेंट के अधीन है) में दिए गए थे। ‘हेट स्पीच इवेंट्स इन इंडिया’ नाम से जारी इस रिपोर्ट में कहा गया था कि 36 प्रतिशत (239) बयानों में सीधे तौर पर मुसलमानों के विरुद्ध अत्याचार की बात की गई थी।