Ambulance Train: कहीं भी जब कोई हादसा हो जाता है. तो ऐसे स्थान पर तुरंत एंबुलेंस को बुलाया जाता है. या किसी की तबीयत खराब हो जाती है. तो ऐसे में भी लोग तुरंत एंबुलेंस को कॉल करते हैं. एंबुलेंस जब रोड पर गुजरती है. तो वहां मौजूद सभी वाहनों को एंबुलेंस को रास्ता देना होता है. ताकि एंबुलेंस घायलों की समय रहते मदद कर सके.
बीमार को समय रहते इलाज दिला सके. लेकिन क्या आपको पता है सिर्फ सड़कों पर चलने वाली ही एंबुलेंस नहीं होती. बल्कि भारत में पटरियों पर दौड़ने वाली एंबुलेंस भी होती है. इसे भी बाकी ट्रेनों को गाड़ियों की तरह आगे जाने के लिए रास्ता देना होता है. चलिए आपको बताते हैं इस एंबुलेंस ट्रेन के बारे में.
जब सड़क पर एक्सीडेंट हो जाता है. तो वहां तुरंत चलकर एंबुलेंस पहुंच जाती है. और घायलों को मेडिकल सुविधा मिल पाती है. लेकिन अगर किसी ट्रेन का एक्सीडेंट हो जाता है. तो फिर वहां एंबुलेंस का पहुंचना मुश्किल हो जाता है. क्योंकि वहां तक कई जगहों पर सड़क नहीं होती और रास्ता नहीं होता. लेकिन ऐसी जगह पर ट्रेन एंबुलेंस पहुंच सकती है. भारत में इसे लाइफ लाइन एक्सप्रेस के नाम से जाना जाता है. जो आपने पिछले कुछ महीनो में हुए ट्रेन हादसों में भी अपनी सेवा देते हुए देखी होगी.
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साल 1991 में भारतीय रेलवे ने पहली बार ट्रेन एम्बुलेंस यानी लाइफलाइन एक्सप्रेस का संचालन शुरू किया था. दरअसल भारत सरकार ने इस ट्रेन एंबुलेंस को इसलिए शुरू किया था. ताकि देश के दूर दराज इलाकों में रहने वाले गरीब लोग जो कि इलाज कराने के लिए बड़े शहरों तक का रुख नहीं कर सकते. उन तक इलाज उनके घर पहुंचाया जा सके. खासतौर पर जो लोग शारीरिक रूप से स सक्षम है सरकार ने उन तक उच्च मेडिकल सुविधा पहुंचाने के लिए इस ट्रेन को शुरू किया था.
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भारतीय रेलवे की लाइफलाइन एक्सप्रेस दूर दराज के इलाकों तक मेडिकल सुविधा पहुंचाती हैं. तो ट्रेन हादसों में भी लाइफलाइन एक्सप्रेस मेडिकल सुविधा देती है. इसे एक तरह से चलता फिरता अस्पताल कहा जा सकता है. जहां डॉक्टर और दवाइयां नहीं पहुंच पाती वहां लाइफलाइन एक्सप्रेस पहुंच जाती है.
इसे बिल्कुल अस्पताल की तरह डिजाइन किया गया है. इसमें पेशेंट के लिए बेड है. इसमें आधुनिक मशीनें हैं,ऑपरेशन थिएटर है. और एक डेडीकेटेड मेडिकल स्टाफ है. इस ट्रेन के हर कोच में पावर जनरेटर है. इसके साथ ही मेडिकल वार्ड है. तो वही पेंट्री कार की भी सुविधा ट्रेन के अंदर ही है.
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