Bulldozer Justice Case : उच्चतम न्यायालय ने कहा है कि नागरिकों की आवाज को उनकी संपत्ति नष्ट करने की धमकी देकर नहीं दबाया जा सकता और कानून के शासन में बुलडोजर न्याय पूरी तरह अस्वीकार्य है। प्रधान न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की पीठ ने कहा कि बुलडोजर के जरिए न्याय करना किसी भी सभ्य न्याय व्यवस्था का हिस्सा नहीं हो सकता।
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पीठ ने कहा कि राज्य को अवैध अतिक्रमणों या गैरकानूनी रूप से निर्मित संरचनाओं को हटाने के लिए कार्रवाई करने से पहले कानून की उचित प्रक्रिया का पालन करना चाहिए। उसने कहा, कानून के शासन में बुलडोजर न्याय बिल्कुल अस्वीकार्य है। अगर इसकी अनुमति दी गई तो अनुच्छेद 300ए के तहत संपत्ति के अधिकार की संवैधानिक मान्यता समाप्त हो जाएगी।
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संविधान के अनुच्छेद 300ए में कहा गया है कि किसी भी व्यक्ति को कानून के प्राधिकार के बिना उसकी संपत्ति से वंचित नहीं किया जाएगा। शीर्ष अदालत ने 2019 में उत्तर प्रदेश के महाराजगंज जिले में एक मकान को ध्वस्त करने से संबंधित मामले में छह नवंबर को अपना फैसला सुनाया।
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पीठ ने उत्तर प्रदेश सरकार को अंतरिम उपाय के तौर पर याचिकाकर्ता को 25 लाख रुपए का मुआवजा देने का निर्देश दिया। याचिकाकर्ता का मकान एक सड़क परियोजना के लिए ढहा दिया गया था। (भाषा)
Edited By : Chetan Gour