Child Care : अगर आपका बच्चा चीजों पर ध्यान नहीं दे रहा है, तो इसे हल्के में न लें. यह उसकी शैतानी नहीं बल्कि एक तरह का न्यूरो-डेवपलमेंटल डिसऑर्डर है, जिसे ADHD (Attention-Deficit Hyperactivity Disorder) कहा जाता है. यह कोई रेयर बीमारी नहीं है लेकिन अगर इस पर समय रहते ध्यान न दिया जाए तो बच्चों का पूरा फ्यूचर खराब हो सकता है.
सेंटर फॉर डिजीज प्रिवेंशन एंड कंट्रोल की एक रिपोर्ट के अनुसार, अमेरिका में ही 11% बच्चे अटेंशन डेफिसिट हाइपरएक्टिविटी डिसऑर्डर की चपेट में है, जबकि दुनिया में यह आंकड़ा करीब 7.2% तक है. भारत की बात करें तो अनुमान के मुताबिक, 8-14% बच्चे इस डिसऑर्डर से जूझ रहे हैं. ऐसे में चलिए जानते हैं एडीएचडी क्या होता है और इससे बच्चों को कैसे बचा सकते हैं...
ADHD क्या होता है
एडीएचडी एक न्यूरो डेवलपमेंटल डिसऑर्डर है, जो बच्चों को ही नहीं एडल्ट्स में भी हो सकता है. इसमें बच्चे अपना फोकस यानी ध्यान किसी एक चीज पर नहीं लगा पाते हैं. उनमें हाइपर एक्टिविटी यानी जरूरत से ज्यादा सक्रियता देखने को मिलती है. वे बिना किसी नतीजे की चिंता किए कोई भी काम कर जाते हैं. ऐसे बच्चे एक जगह टिककर नहीं बैठ पाते हैं.
एडीएचडी का खतरा किस उम्र में ज्यादा
अटेंशन डेफिसिट हाइपरएक्टिविटी डिसऑर्डर आमतौर पर 5 से 9 साल के बच्चों में काफी तेजी से बढ़ता है लेकिन इसके बाद 15 साल तक इसके लक्षण कम होते हुए भी देखा जाता है. चूंकि बच्चों की ग्रोथ का यही सही उम्र होता है, ऐसे में एडीएचडी उनकी मेंटल हेल्थ पर बुरा असर डाल सकता है, जिसका खामियाजा ताउम्र देखने को मिल सकता है.
इस कंडीशन में बच्चों के दिमाग में सिर्फ खुराफात ही चलतारहता है. कुछ पैरेंट्स इसे उनकी बदमाशी या शैतानी मान लेते हैं, जो ठीक नहीं है. अगर इसे इग्नोर करते रहेंगे तो उनकी मेंटेलिटी बनती जाती है. इसलिए बच्चों को डांटने की बजाय सही पैरेंटिंग दें. अगर जरूरत महसूस हो तो काउंसलिंग भी कराएं.
ADHD होने के क्या संकेत हैं
चीजें खोना
बातें याद न रख पाना
दिन में भी सपनों में खोए रहना
बातूनी होना
रिस्की काम करना यानी खतरों से खेलना
चिड़चिड़ापन
बहुत ज्यादा चोटिल होना
बच्चों में ADHD का कारण
कम उम्र में सिर पर चोट लगना
जन्म के समय बच्चों का कम वजन
प्रेगनेंसी में मां का एल्कोहलिक होना यानी नशा करना
प्री-मैच्योर डिलीवरी
फैमिली का माहौल टॉक्सिक होना
ADHD से बच्चों को कैसे बचाएं
हेल्दी लाइफस्टाइल
समय पर सोना
उम्र के अनुसार फिजिकल एक्टिविटीज
खाने में फल-सब्जियां शामिल करें
स्क्रीन टाइम कम करना
कम उम्र से ही सही रूटीन फॉलो कराना
पैरेंट्स बच्चों के साथ फ्रेंडली रिलेशन रखें