हिंद महासागर क्षेत्र (IOR) और पश्चिम एशिया में हिंदुस्तान का महत्व बढ़ रहा है। इसके पीछे राष्ट्र की समुद्री ताकत है। इस क्षेत्र में सभी के लिए सुरक्षा और विकास (Security and Growth for All in the Region) (SAGAR) सिद्धांत के अनुसार हिंदुस्तान की विदेश नीति का अहम बनाता है। इस नीति के अनुसार क्षमता निर्माण,राजनयिक जुड़ाव और मानवीय पहुंच को बढ़ावा देना है। इस नजरिए से देखें तो हिंदुस्तान क्षेत्रीय सुरक्षा में एक विश्वसनीय भागीदार के रूप में खड़ा दिखाई देता है। वहीं हितों की रक्षा करने में भी वह सक्षम है।
आईओआर (IOR) में पड़ोसी राष्ट्रों के साथ हिंदुस्तान का जुड़ाव सामूहिक सुरक्षा के प्रति उसकी प्रतिबद्धता को उजागर करता है। एक प्रमुख उदाहरण नवंबर 2024 का है, जब मोजाम्बिक को फास्ट इंटरसेप्टर क्राफ्ट (FIC) की डिलीवरी हुई। इसकी तैनाती से क्षेत्र में समुद्री डकैती, आतंकवाद और उग्रवाद से निपटने की क्षमता को मजबूती मिली है। इससे पहले भी हिंदुस्तान ने यहां की सुरक्षा को लेकर 2019 में दो बड़े इंटरसेप्टर और 2022 में अतिरिक्त एफआईसी को शामिल किया। इससे क्षेत्रीय सुरक्षा प्रदाता के रूप में हिंदुस्तान की किरदार को विश्वसनीयता मिली है।
श्रीलंका में हिंदुस्तान की समुद्री रणनीति सभी के लिए केंद्र बिंदु बनी हुई है। आईएनएस वेला की हालिया कोलंबो यात्रा संयुक्त अभ्यास, सूचना साझाकरण और कार्मिक प्रशिक्षण इस बात को दर्शाता है। इस पहल से स्मग्लिंग और समुद्री डकैती जैसे सुरक्षा खतरों से निपटने में दोनों राष्ट्रों की तत्परता बढ़ी है।
अगर चीन से हिंदुस्तान तुलना की जाए तो जहां चीन का मॉडल विस्तारवाद है और दूसरे राष्ट्र को कर्ज देकर निर्भर बनाना है। वहीं हिंदुस्तान का दृष्टिकोण दूसरे राष्ट्र की संप्रभुता का सम्मान करना है। इसके साथ सशक्तिकरण को बढ़ावा देना है। इससे हिंदुस्तान के संबंध दूसरे राष्ट्र से दीर्घकालिक हो जाते हैं।
आईओआर में चीन की स्थिति आक्रामक है। चीन की नौसेना श्रीलंका में हंबनटोटा जैसे रणनीतिक बंदरगाहों पर नियंत्रण बनाना चाहती है। उसकी आधिपत्य की भावना और महत्वाकांक्षाए चिंताएं बढ़ाने वाली हैं। ऐसी स्थिति में हिंदुस्तान की प्रतिक्रिया रणनीतिक रूप से नपी-तुली रही है। हिंदुस्तान अपने क्षेत्रीय सहयोगियों को अपने जल को सुरक्षित करने और निर्भरता को बढ़ावा दिए बिना चीन के असर का मुकाबला करने की रही है।
भारत की समुद्री कूटनीति सॉफ्ट पावर और सहकारी सुरक्षा ढांचे को अहमियत देती है। समुद्री डकैती रोधी गश्त, विशेष आर्थिक क्षेत्र (ईईजेड) की नज़र और संयुक्त अभ्यास विश्वास को बढ़ावा देते हुए क्षेत्रीय चुनौतियों से निपटने की हिंदुस्तान की क्षमता को सामने रखती हैं। यह रणनीति आईओआर राष्ट्रों को विकल्प देती है कि हिंदुस्तान उसका अहम साझेदार हो सकता है।
भारतीय नौसेना की रणनीतिक पहुंच आईओआर से परे पश्चिम एशिया के ऊर्जा-समृद्ध जलक्षेत्रों तक फैली है। ये हिंदुस्तान की आर्थिक और सुरक्षा प्राथमिकताओं के लिए इस क्षेत्र के महत्व को बढ़ाती है। 2024 में फर्स्ट ट्रेनिंग स्क्वाड्रन (1TS) ने ओमान, बहरीन, यूएई और ईरान में तैनाती की। इन बंदरगाह में तस्करी, आतंकवाद और समुद्री डकैती जैसी साझा चिंताओं से निपटने के लिए ले संयुक्त अभ्यास शामिल थे।
ओमान के साथ नसीम-अल-बह्र जैसे द्विपक्षीय अभ्यास और तीसरा भारत-यूएई द्विपक्षीय नौसेना अभ्यास विश्वास को और गहरा करते हैं। वहीं ईरान के साथ हिंदुस्तान की सूक्ष्म कूटनीति-खाड़ी योगदान परिषद (जीसीसी) राष्ट्रों के साथ संबंध बनाए रखना, दर्शाता है कि जटिल क्षेत्रीय स्थिति में भी उसकी गतिशीलता बनी हुई है।
भारत की समुद्री रणनीति आंतरिक रूप से उसके आर्थिक उद्देश्यों से जुड़ी हुई है। फारस की खाड़ी और अरब सागर, ऊर्जा आपूर्ति के लिए अहम, हिंदुस्तान की अर्थव्यवस्था के लिए जीवन रेखाएं हैं। इसका लगभग 60 फीसदी ऑयल आयात पश्चिम एशिया से होता है। इन गलियारों को सुरक्षित करने से बिना रुके ऊर्जा प्रवाह और स्थिर व्यापार मार्ग तय होते हैं। संयुक्त अरब अमीरात के साथ व्यापक आर्थिक साझेदारी समझौते (सीईपीए) ने व्यापार वृद्धि को और अधिक बढ़ावा दिया है। 2022 में द्विपक्षीय वाणिज्य में 38 फीसदी की बढ़त देखी गई। ये सुरक्षा और आर्थिक स्थिरता के बीच परस्पर क्रिया को दर्शाता है।
मानवीय सहायता के प्रति भारतीय नौसेना का रवौया उसकी नरम शक्ति को दर्शाता है। 2004 की सुनामी से लेकर यमन में हालिया निकासी तक सभी में भारतीय नौसेना ने मानवीय पहलुओं को आगे रखा। ये मिशन, सांस्कृतिक आदान-प्रदान और सामुदायिक जुड़ाव गतिविधियां और एक स्थिर शक्ति के रूप में हिंदुस्तान की छवि को और अधिक को मजबूत करते हैं।
भारत की समुद्री रणनीति आईओआर और पश्चिम एशिया में एक संतुलित है। हिंदुस्तान प्रतिद्वंद्विता पर योगदान को आगे बढ़ता है। इसके साथ सुरक्षा में संग खड़ा रहता है। समुद्री डकैती विरोधी अभियान, खुले व्यापार मार्ग और सहयोगात्मक समुद्री कानून प्रवर्तन इस दृष्टिकोण का उदाहरण हैं। हिंदुस्तान को क्षेत्रीय स्थिरता को बढ़ावा देने में अग्रणी के रूप में स्थापित करता है।
भारत की नौसेना आईओआर और पश्चिम एशिया समुद्री परिदृश्य को आकार देने को लेकर बड़ी किरदार निभाने की प्रयास में है। हिंदुस्तान की रणनीतिक दूरदर्शिता, क्षमता निर्माण और मानवीय पहुंच के मिश्रण स्थिरता को बढ़ावा देता है। SAGAR नीति के अनुसार भारतीय नौसेना का विकास शक्ति प्रक्षेपण और साझेदारी निर्माण के एक परिष्कृत संतुलन को दर्शाता है। ये तेजी से बढ़ते समुद्री क्षेत्र में साझा सुरक्षा और समृद्धि को तय करने को लेकर एक विशेष हालात सामने लाता है।