तुलसी गबार्ड के अमेरिका की नई इंटेलीजेंस चीफ बनने से क्यों 'फाइव आइज' पर मंडराया खतरा? जानें वजह
एबीपी लाइव डेस्क November 16, 2024 07:12 PM

Tulsi Gabbard Appointment: अमेरिका के नवनिर्वाचित राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने पूर्व डेमोक्रेटिक सांसद तुलसी गबार्ड को नेशनल इंटेलिजेंस (DNI) की निदेशक नियुक्त करने का फैसला कर खुफिया समुदाय में हलचल मचा दी है. ट्रंप का ये फैसला बताता है कि वह अपने दूसरे कार्यकाल में परंपरागत अनुभव की जगह वफादारों को प्राथमिकता देने का इरादा रखते हैं.

अमेरिकी समोआ में तुलसी का जन्म माइक गबार्ड और कैरल गबार्ड के घर पर हुआ. तुलसी गबार्ड खुद को हिंदू बताती हैं, लेकिन वो भारतीय मूल की नहीं हैं. साल 2014 में वह भारत आईं थीं, यहां उन्होंने पीएम मोदी से मुलाकात की थी. तब पीएम मोदी ने तुलसी की खूब तारीफ की थी.

राजनीतिक रुख में बड़ा बदलाव, ट्रंप के करीबी हुईं गबार्ड

हवाई से पूर्व डेमोक्रेटिक सांसद रही गबार्ड अपनी खुले विचार, सैन्य सेवा, और असामान्य विदेश नीति विचारों के लिए चर्चित रही हैं. 2022 में डेमोक्रेटिक पार्टी छोड़ते समय गबार्ड पर 'रूसी एजेंट' होने का आरोप लगा, साथ ही उनकी नीतियों की भी आलोचना हुई. इसके बाद गबार्ड ने ट्रंप के 'अमेरिका फर्स्ट' सिद्धांत का समर्थन किया और उनकी एक मजबूत समर्थक बनकर उभरीं.

2021 में कांग्रेस छोड़ने के बाद गबार्ड ने रूढ़िवादी मीडिया प्लेटफार्मों की ओर रुख किया और डेमोक्रेटिक पार्टी को 'एलिटिस्ट कैबल ऑफ वॉर्मॉन्गर्स' कहकर आलोचना की. उनकी इस भाषा ने ट्रंप के समर्थकों के बीच गूंज पाई, और धीरे-धीरे वह ट्रंप के राजनीतिक दायरे में महत्वपूर्ण चेहरा बन गईं.

फाइव आइज को क्यों हैं 'खतरे' का अंदेशा?

फाइव आइज ऑस्ट्रेलिया, कनाडा, न्यूज़ीलैंड, यूनाइटेड किंगडम, और संयुक्त राज्य अमेरिका का एक खुफिया गठबंधन है. इस गठबंधन के तहत सभी देश आपस में खुफिया जानकारी का आदान-प्रदान करते हैं. तुलसी गबार्ड के नामांकन ने फाइव आइज के कान खड़े कर दिए हैं. वॉल स्ट्रीट जर्नल ने एक पूर्व सीआईए ऑपरेशन्स अधिकारी डगलस लंदन के हवाले से कहा, "गबार्ड को इस ओहदे के लिए चुनना खुफिया प्रतिष्ठान के लिए अपमानजनक है. क्या वह खुफिया जानकारी को अपने अनुसार ढालेंगी? क्या वह इसे छांटेंगी और सीमित करेंगी?"

एक पश्चिमी खुफिया स्रोत ने तो चेतावनी दी है कि यदि तुलसी गबार्ड की रूस समर्थक नीतियां अमेरिकी खुफिया नीति को प्रभावित करती हैं, तो इससे खुफिया जानकारी के आदान-प्रदान में कमी आ सकती है. इस संभावित बदलाव के प्रति खुफिया एजेंसियों में गहरी चिंता जताई जा रही है.

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