जयपुर: राजस्थान के जोधपुर में पुलिस ने शनिवार (21 दिसंबर 2024) को दो कुख्यात चोरों, मोहम्मद सादिक और अब्दुल्ला को गिरफ्तार किया। ये दोनों इतने शातिर निकले कि जेल से छूटने के महज 15 दिनों के भीतर फिर से चोरी की वारदात को अंजाम दे बैठे, और इस बार उनका निशाना बने एक जज का घर। यह घटना न केवल पुलिस के लिए चुनौती बनी, बल्कि इसने न्याय व्यवस्था की कमजोरियों की भी पोल खोल दी है।
पुलिस के अनुसार, सादिक और अब्दुल्ला जोधपुर के बकरा मंडी इलाके के रहने वाले हैं। ये दोनों पहले मकानों की रेकी करते और फिर मौका देखकर चोरी को अंजाम देते थे। 3 नवंबर 2024 को, इन्होंने पाली जिले की इंद्रा कॉलोनी में एक बंद मकान को निशाना बनाया था। परिवार के मंदिर दर्शन के लिए बाहर होने का फायदा उठाते हुए, इन्होंने करीब 20 लाख रुपये के गहने और नकदी चुरा लिए। पुलिस ने इस मामले की जांच के लिए 400 से ज्यादा सीसीटीवी फुटेज खंगाले और 11 नवंबर को दोनों को गिरफ्तार किया। पूछताछ में चोरी के कुछ सामान बरामद भी हुए।
हालांकि, 14 नवंबर को जेल भेजे जाने के बाद 29 नवंबर को दोनों को अदालत से जमानत मिल गई। जेल से छूटते ही इन अपराधियों ने फिर से चोरी शुरू कर दी। 13 दिसंबर 2024 को, इन्होंने चित्तौड़गढ़ के मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट सिद्धार्थ सांधु के घर को निशाना बनाया और लाखों के गहने और नकदी लेकर फरार हो गए। मजिस्ट्रेट के घर चोरी की वारदात ने पुलिस को तत्काल सक्रिय कर दिया। 50 से अधिक सीसीटीवी फुटेज की जांच के बाद, पुलिस ने चोरों की पहचान कर ली और 21 दिसंबर को जोधपुर से उन्हें गिरफ्तार कर लिया। जाँच में पता चला कि दोनों महंगे शौक और जुआ-सट्टे के आदी हैं। इनकी कार्यप्रणाली भी बेहद संगठित थी, एक घर के अंदर चोरी करता, जबकि दूसरा बाहर निगरानी करता था। खतरे की स्थिति में ये तुरंत फरार हो जाते थे।
इस पूरी घटना ने कानून व्यवस्था और न्यायिक प्रणाली की कमजोरियों को फिर से उजागर कर दिया है। पुलिस ने 8 दिनों की कड़ी मेहनत से इन अपराधियों को पकड़ा था, लेकिन वे 15 दिनों में ही अदालत से जमानत लेकर बाहर आ गए। सवाल यह उठता है कि जब अपराधियों पर पहले से कई मामले दर्ज हों, तब भी उन्हें इतनी आसानी से रिहा क्यों किया जाता है?
अक्सर अदालतें मानवाधिकारों का हवाला देकर अपराधियों को राहत दे देती हैं, लेकिन इस रियायत का ये अपराधी नाजायज फायदा उठाते हैं। सादिक और अब्दुल्ला इसका ताजा उदाहरण हैं, जिन्होंने जेल से छूटते ही फिर अपराध किया और इस बार तो उन्होंने सीधे जज के घर को ही निशाना बना लिया। इस घटना से यह स्पष्ट होता है कि कानून में सख्ती और दोषियों पर कड़ा अंकुश लगाने की जरूरत है। पुलिस अपनी जान जोखिम में डालकर अपराधियों को पकड़ती है, लेकिन अदालतें जब बिना ठोस कारण के इन्हें छोड़ देती हैं, तो यह समाज के लिए खतरे की घंटी बन जाता है।
अगर ऐसे मामलों पर समय रहते कठोर कदम नहीं उठाए गए, तो अपराधियों का दुस्साहस बढ़ता जाएगा और भारत से अपराध को खत्म करने का सपना महज कल्पना बनकर रह जाएगा। इस केस ने पुलिस और न्याय व्यवस्था दोनों के लिए एक गंभीर चुनौती पेश की है, जिसे नजरअंदाज करना अब मुमकिन नहीं है।
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