सुप्रीम कोर्ट ने सेट कर दी लिमिट, तलाक के बाद पत्नी मांग सकती है इतना गुजारा भत्ता
Himachali Khabar Hindi January 04, 2025 02:42 PM

सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने हाल ही में एक तलाक के मामले में अहम टिप्पणी करते हुए भरण-पोषण और गुजारा भत्ते (Alimony) की सीमा को स्पष्ट किया है। कोर्ट ने अपने फैसले में महिलाओं को आगाह किया कि भरण-पोषण के लिए बनाए गए सख्त प्रावधान कल्याणकारी उद्देश्यों के लिए हैं, न कि पतियों को दंडित करने, धमकाने या उनसे जबरन वसूली करने के लिए।

सुप्रीम कोर्ट ने सेट कर दी लिमिट

सुप्रीम कोर्ट की जस्टिस बीवी नागरत्ना और पंकज मिथल की बेंच ने 73 पन्नों के एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा कि भरण-पोषण का कानून महिलाओं को तलाक के बाद अभाव से बचाने, उनकी गरिमा बनाए रखने और उन्हें सामाजिक न्याय प्रदान करने के लिए बनाया गया है। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि कानून यह नहीं कहता कि पति अपनी बदली हुई वित्तीय स्थिति के आधार पर जीवन भर पत्नी की स्थिति को ऊंचा बनाए रखे।

बेंच ने सवाल उठाया, “अगर पति अलग होने के बाद किसी दुर्भाग्यपूर्ण घटना के कारण दिवालिया हो जाता है, तो क्या पत्नी तब भी बराबरी का गुजारा भत्ता मांगने को तैयार होगी?” यह टिप्पणी उन महिलाओं को ध्यान में रखते हुए की गई है जो अपने पतियों की संपत्ति और आय को आधार बनाकर अनुचित मांग करती हैं।

अमीर व्यक्तियों के लिए तलाक का खर्च

इस फैसले का उदाहरण हाल ही में भारतीय मूल के एक अमेरिकी व्यक्ति के मामले से सामने आया। एक सफल आईटी कंसल्टेंसी चलाने वाले इस व्यक्ति को 2020 में अपनी पहली पत्नी को 500 करोड़ रुपये गुजारा भत्ते के रूप में देने पड़े। बाद में, उनकी दूसरी शादी भी मात्र एक साल में टूट गई। सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में उनकी दूसरी पत्नी को 12 करोड़ रुपये गुजारा भत्ता देने का आदेश दिया।

अदालत ने सख्त प्रावधानों का दुरुपयोग न करने की दी चेतावनी

दूसरी पत्नी ने कोर्ट में तर्क दिया कि उसे पहली पत्नी के बराबर गुजारा भत्ता मिलना चाहिए। इस पर सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने नाराजगी जताते हुए कहा कि इस प्रकार की मांगें अनुचित हैं। बेंच ने कहा कि महिलाओं को यह समझना होगा कि कानून उनके कल्याण के लिए है, न कि पतियों पर अतिरिक्त दबाव बनाने के लिए।

बेंच ने यह भी कहा कि, “अक्सर देखा गया है कि पार्टियां अपने जीवनसाथी की संपत्ति और आय का खुलासा करके ऐसी मांगें करती हैं जो अनुचित होती हैं। भरण-पोषण का अधिकार पति के साथ जीवनयापन के दौरान मिली सुविधाओं के स्तर पर आधारित होता है।”

पति की प्रगति पर नहीं डाला जा सकता अनावश्यक बोझ

कोर्ट ने स्पष्ट किया कि अलगाव के बाद पति की सफलता और संपत्ति को देखते हुए पत्नी की मांगें करना गलत है। बेंच ने कहा, “अगर पति तलाक के बाद सफलता की ऊंचाईयों को छूता है, तो उससे यह उम्मीद करना अनुचित है कि वह अपनी बदली हुई स्थिति के अनुसार पत्नी का भरण-पोषण करे।” यह फैसला समाज में संतुलन बनाए रखने और दोनों पक्षों के हितों को सुरक्षित रखने की दिशा में एक बड़ा कदम माना जा रहा है।

महिलाओं के लिए सुप्रीम कोर्ट की सलाह

सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में महिलाओं को सावधान रहने की सलाह दी है। अदालत ने कहा कि महिलाओं को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि वे भरण-पोषण के लिए बने कानूनों का उपयोग अपने कल्याण के लिए करें, न कि पतियों को दंडित करने और उनके अधिकारों का उल्लंघन करने के लिए।

FAQs

1. तलाक के बाद पत्नी को कितना गुजारा भत्ता मिल सकता है?
भरण-पोषण का निर्धारण पति की आय, संपत्ति और जीवनस्तर को ध्यान में रखकर किया जाता है। इसे पत्नी के वैवाहिक जीवन में मिली सुविधाओं के आधार पर तय किया जाता है।

2. क्या पत्नी पति की संपत्ति के बराबर गुजारा भत्ता मांग सकती है?
सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि पत्नी की ऐसी मांगें अनुचित हैं। भरण-पोषण का उद्देश्य पत्नी की गरिमा और सामाजिक सुरक्षा सुनिश्चित करना है, न कि पति की संपत्ति को साझा करना।

3. क्या पति को हमेशा अपनी बदली हुई आर्थिक स्थिति के अनुसार गुजारा भत्ता देना होगा?
नहीं, सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि पति से यह उम्मीद नहीं की जा सकती कि वह तलाक के बाद अपनी बदली हुई आर्थिक स्थिति के आधार पर पत्नी का जीवनस्तर बनाए रखे।

4. क्या गुजारा भत्ता की सीमा तय है?
गुजारा भत्ता की कोई निश्चित सीमा नहीं है। यह पति की आय, पत्नी की आवश्यकताओं और मामले की परिस्थितियों पर निर्भर करता है।

5. क्या महिलाएं कानून का दुरुपयोग कर सकती हैं?
सुप्रीम कोर्ट ने चेतावनी दी है कि महिलाएं भरण-पोषण के सख्त प्रावधानों का दुरुपयोग न करें। कानून का उद्देश्य महिलाओं का कल्याण है, न कि पतियों को दंडित करना।

सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला न केवल कानून के दुरुपयोग को रोकने की दिशा में अहम है, बल्कि यह महिलाओं और पतियों दोनों के अधिकारों की रक्षा करता है। यह तलाक और भरण-पोषण के मामलों में न्यायसंगत और संतुलित दृष्टिकोण अपनाने की आवश्यकता को रेखांकित करता है।

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