डॉ. अनिल कुमार निगम
आज दिल्ली एनसीआर सहित देश के विभिन्न शहरों में अवैध निर्माण और कब्जा बहुत जटिल समस्या बन गई है। विडंबना है कि देश के विभिन्न शहरों में भूमाफिया न केवल सक्रिय बल्कि वे जमीनों पर अवैध कब्जा कर अथवा अवैध तरीके से निर्माण कर जमीन और भवनों को भोलेभाले लोगों को बेच देते हैं। यह सारा काम प्रशासनिक अधिकारियों से साठगांठ से किया जाता है और बाद में इन अवैध निर्माण को वैध कराने के लिए अदालतों में इस आधार पर अपील दायर की जाती है कि निर्माण अत्यधिक पुराना है लिहाजा उसे वैध कर दिया जाए। प्रश्न है कि भूमाफिया और प्रशासनिक अधिकारियों के बीच इस षडयंत्र के कुचक्र को तोड़ने के लिए सरकारें क्या कर रही हैं? प्रश्न यह भी है कि प्रदेश सरकारें इस कुचक्र पर प्रहार क्यों नहीं करती? ऐसे मामलों पर अदालतों को हस्तक्षेप क्यों करना पड़ता है? कहीं ऐसा तो नहीं कि भूमाफिया के अवैध धंधों को संरक्षण मिला हुआ है?
प्रशासनिक देरी, समय बीतने या निवेश के कारण कोई अवैध निर्माण वैध नहीं हो सकता। यह बात देश की सर्वोच्च अदालत सुप्रीम कोर्ट ने गत माह 18 दिसंबर को एक फैसले के सिलसिले में यह टिप्पणी भी की। दुर्भाग्यपूर्ण है कि आज देश के विभिन्न नगरों एवं महानगरों में भूमाफिया सक्रिय हैं। वे न केवल अवैध कब्जा करते और निर्माण करते हैं बल्कि उन जमीनों पर कालोनी काटकर अथवा भवन बनाकर लोगों को बेच रहे हैं। इन भूमाफियाओं की स्थानीय अधिकारियों एवं नेताओं से इतनी गहरी साठगांठ होती है कि जब वे यह सब करते हैं तो प्रशासनिक अधिकारी और नेता इसकी न केवल अनदेखी करते हैं बल्कि समय बीतने के साथ ही वे अवैध निर्माण को वैध करने की प्रक्रिया शुरू कर देते हैं।
यूं तो संपूर्ण देश में अवैध निर्माण एक संगठित अपराध बनकर उभरा है पर देश की राजधानी दिल्ली और एनसीआर में यह काम धड़ल्ले से चल रहा है। भूमाफिया काम के सिलसिले में देश के अनेक हिस्सों से आने वाले लोगों को मकान और दुकान बेचने के नाम पर ठग रहे हैं और वे भ्रष्ट अधिकारियों से साठगांठ कर सरकार को करोड़ों का चूना भी लगा रहे हैं। आज दिल्ली के अंदर आने वाले गांव, दिल्ली से सटे नोएडा-ग्रेटर नोएडा, गाजियाबाद, फरीदाबाद और गुड़गांव के गांवों के आसपास और शायद ही कोई ऐसा सेक्टर होगा, जहां पर भूमाफिया ने अवैध निर्माण कर लोगों को ठगा न हो।
मजे की बात यह है कि जब यह अवैध निर्माण चलता है प्राधिकरण अथवा प्रशासन के अधिकारी जानबूझकर कोई कार्रवाई नहीं करते क्योंकि माफिया इसके बदले अधिकारियों की जेबें जमकर गरम करते हैं। आपने सुना होगा कि नोएडा, ग्रेटर नोएडा अथवा गाजियाबाद प्राधिकरणों के अधिकारियों के घरों पर विजीलेंस, ईडी अथवा आयकर विभाग की टीमें प्राय: छापे मारती हैं और उनके घरों से अकूत संपत्ति भी पकड़ी गई है। नोएडा के कई ऐसे बहुचर्चित अधिकारी सरदार मोहिंद सिंह, रविंद्र यादव, यादव सिंह आदि हैं जिन पर भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप लग चुके हैं।
पहले निर्माण और बाद में बुल्डोजर चलाने के मामले में 18 दिसंबर 2024 को सुप्रीम कोर्ट को दिशा-निर्देश भी जारी करने पड़े। जस्टिस जेबी पारदीवाला व जस्टिस आर महादेवन की पीठ ने कहा कि निर्माण के बाद होने वाले कानूनी उल्लंघनों के खिलाफ भी त्वरित कार्रवाई होनी चाहिए। ऐसे निर्माण को गिराने के साथ दोषी अधिकारियों पर भी जुर्माना लगाया जाना चाहिए। पीठ ने मेरठ में एक रिहायशी भूमि पर बने अवैध व्यावसायिक निर्माण के ध्वस्तीकरण को सही ठहराते हुए कहा, शहरी योजना से जुड़े कानूनों व अधिकारियों की जिम्मेदारियों को सख्ती से लागू करने की जरूरत है।
अवैध निर्माण को नियमित करने वाली योजनाएं केवल असाधारण परिस्थितियों में और विस्तृत सर्वेक्षण के बाद आवासीय घरों के मामले में एक बार के उपाय के रूप में लाई जानी चाहिए। अनधिकृत निर्माण, उसमें रहने वालों और आस-पास रहने वाले नागरिकों के जीवन के लिए खतरा पैदा करने के अलावा, बिजली, भूजल और सड़कों तक पहुंच जैसे संसाधनों पर भी प्रभाव डालते हैं, जिन्हें मुख्य रूप से व्यवस्थित विकास और अधिकृत गतिविधियों के हिसाब से डिजाइन किया जाता है।
यहां अधिकारियों एवं सरकार के समक्ष अनेक सवाल रख रहा हूं। प्रश्न है कि अवैध कालोनी और फ्लैटों की रजिस्ट्री क्यों और कैसे होती है? अगर जमीन और निर्माण अवैध है तो इन भवनों को कंपलीशन सर्टिफिकेट कैसे मिल जाता है? बिजली विभाग यहां पर कनेकसन क्यों और कैसे दे दिया जाता है? नगर निगम अथवा प्रशासन यहां पानी का कनेक्सन कैसे उपलब्ध करा देता है? यह भी देखा गया है कि यह सब होने के बाद स्थानीय नेता यहां रहने वालों के राशनकार्ड और वोटर आईडी कार्ड बनवा देते हैं, आखिर इस प्रक्रिया पर प्रतिबंध कौन लगाएगा?
लोगों को अवैध निर्माण से मुक्त कराना है तो प्राधिकरणों और प्रशासन को अवैध निर्माण की निगरानी का सशक्त तंत्र बनाना चाहिए। अगर किसी भी इलाके में अवैध निर्माण हो रहा है तो अधिकारियों को प्रारंभिक स्तर पर ही उसके ढहा देना चाहिए। बावजूद इसके यदि वहां अवैध निर्माण हो गया है तो उस क्षेत्र के अधिकारी के खिलाफ सख्त विभागीय कार्रवाई की जानी चाहिए। इसके अलावा भूमाफियाओं को चिन्हित कर उनके खिलाफ संख्त कदम उठाए जाएं।
सरकारी एवं अधिसूचित जमीनों का नियमित तौर पर सर्वे कराया जाए। इसके लिए ड्रोन की भी मदद ली जा सकती है। हाल ही में दिल्ली में सरकारी जमीन पर कब्जे की समस्या से निपटने के लिए दिल्ली विकास प्राधिकरण, दिल्ली नगर निगम और सर्वे ऑफ इंडिया ने एक अहम समझौता किया है। इसके तहत ड्रोन सर्वे की मदद से जमीन का सटीक रिकॉर्ड तैयार किया जाएगा। ड्रोन सर्वे से अतिक्रमण का आसानी से पता लगाया जा सकेगा और उस पर नजर रखी जा सकेगी।किसी भी शहर के सुनियोजित विकास और लोगों को समुचित सुरक्षित एवं गुणात्मक सुविधा प्रदान करना शासन और प्रशासन की नैतिक जिम्मेदारी है। इसलिए भूमाफिया और भ्रष्ट अधिकारियों दोनों पर ही नकेल कसने की जरूरत है।
(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)
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हिन्दुस्थान समाचार / संजीव पाश
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