कल्पना चावला
16 जनवरी 2003, यह वही तारीख है जब भारतीय मूल की पहली महिला अंतरिक्ष यात्री, कल्पना चावला, ने अपनी दूसरी और आखिरी अंतरिक्ष यात्रा के लिए कोलंबिया स्पेस शटल मिशन STS-107 के साथ उड़ान भरी. यह नासा के स्पेस शटल प्रोग्राम का 113वां मिशन था. 16 जनवरी को शुरू हुआ यह अभियान, एक फरवरी 2003 को खत्म होना था मगर लैंडिंग से ठीक 16 मिनट पहले, यह शटल टूटकर बिखर गया.
इस दुर्घटना में कल्पना समते सात एस्ट्रोनॉट्स की मौत हो गई. मिशन के दौरान क्रू ने अंतरिक्ष में 80 से अधिक एक्सपेरिमेंट किए. आइए जानते हैं, इस हादसे के पीछे की वजह, आखिर किस एक गलती ने कल्पना चावला की जान ले ली.
बचपन से ही आसमान छूने का सपना1 जुलाई 1962 को हरियाणा के करनाल में जन्मी कल्पना चावला को बचपन से ही हवाई जहाज और उड़ान की दुनिया में रुचि थी. चार भाई-बहनों में सबसे छोटी कल्पना ने करनाल में ही अपनी शुरुआती पढ़ाई पूरी की. इसके बाद उन्होंने पंजाब इंजीनियरिंग कॉलेज से एयरोनॉटिकल इंजीनियरिंग में बीटेक किया.
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1988 में नासा से जुड़ने के बाद, कल्पना ने अमेरिका को अपना स्थायी ठिकाना बना लिया और 1991 में अमेरिकी नागरिकता हासिल की. 1997 में, उन्हें पहली बार अंतरिक्ष मिशन पर जाने का मौका मिला और वे नासा के स्पेस शटल प्रोग्राम का हिस्सा बन गईं. फिर आई तारीख 16 जनवरी 2003, जब उन्हें अंतरिक्ष में जाने के लिए दूसरा मौका मिला.
एक छोटी दरार, बड़ा हादसाहादसे के बाद नासा की तरफ से जांच की गई. जो पता चला वो काफी चौंकाने वाला था. जांच के मुताबिक कोलंबिया स्पेस शटल STS-107 के लांच वाले दिन, यानी 16 जनवरी 2003 को शटल के बाहरी टैंक से फोम इंसुलेशन का एक टुकड़ा टूटकर गिर गया. इस टुकड़े ने शटल के बाएं पंख पर एक छेद कर दिया.
इस छोटी सी दरार ने पूरे मिशन को तबाह कर दिया. जब शटल वायुमंडल में प्रवेश कर रहा था, तो गर्म गैसें उस छेद से भीतर घुस गईं और बाएं पंख की संरचना को नष्ट कर दिया. 1 फरवरी 2003 को, जब शटल की लैंडिंग होनी थी, मिशन कंट्रोल सेंटर ने असामान्य तापमान रीडिंग्स और टायर प्रेशर की गड़बड़ियों को नोट किया. कुछ ही मिनटों बाद, स्पेसक्राफ्ट आग के गोले में बदल गया और टुकड़ों में बिखर गया.
नासा की अनदेखी ने बढ़ाया हादसे का खतरास्पेस जर्नलिस्ट माइकल कैबेज और विलियम हारवुड की 2008 की एक किताब के मुताबिक़ नासा के अंदर कई लोग थे जो टूटे हुए विंग की तस्वीरें लेना चाहते थे. कहा जाता है कि नासा के डिफेंस डिपार्टमेंट ने ऑर्बिटल स्पाई कैमरा का इस्तेमाल करने का सुझाव दिया था. लेकिन नासा के बड़े अधिकारियों ने इसके लिए मना कर दिया. और बिना किसी जांच के लैंडिंग आगे बढ़ गई. कई विशेषज्ञों का मानना है कि अगर क्षति की सही तस्वीरें ली जातीं, तो इसका समाधान खोजा जा सकता था.
शटल का कंट्रोल खोने में 40 सेकंड से कम लगाएक रिपोर्ट में यह भी कहा गया कि कल्पना और उनके छह साथी अंतरिक्ष यात्रियों के पास बचने या सुधार का कोई समय ही नहीं था, क्योंकि शटल का कंट्रोल खोने और केबिन का प्रेशर बुरी तरह से बिगड़ने में सिर्फ 40 सेकंड लगे थे. वे इसलिए भी समय पर ऐसा नहीं कर सके क्योंकि उन्हें अपने स्पेस सूट पहनने में विलंब हुआ था. रिपोर्ट में कहा गया था कि कोलंबिया में सवार अंतरिक्ष यात्रियों में से एक ने प्रेशर सूट हेलमेट नहीं पहना था, जबकि तीन ने अपने स्पेस सूट ग्लव्स नहीं पहन रखे थे. हालांकि, ऐसा होता भी तो वे बचाव नहीं कर सकते थे, क्योंकि कोलंबिया की सीटों की डिजाइन ऐसी थी कि शायद ही कुछ कर पाते. उनके हेलमेट भी सिर के हिसाब से सही नहीं थे. इसके कारण उन्हें सिर में भीषण चोटें आई थीं.
मलबे की तलाश में हफ्तों लग गएस्पेसक्राफ्ट के मलबे को ढूंढने में हफ्तों लग गए. यह अभियान बेहद चुनौतीपूर्ण था क्योंकि मलबा 2000 वर्ग मील के इलाके में बिखरा हुआ था. नासा को 84,000 टुकड़े मिले, जो कि पूरे स्पेसक्राफ्ट का केवल 40 प्रतिशत हिस्सा थे. इस हादसे ने 1986 में हुए चैलेंजर स्पेस शटल दुर्घटना की यादें ताजा कर दीं, जिसमें सात अंतरिक्ष यात्रियों की जान गई थी. कोलंबिया हादसे के बाद नासा ने स्पेस शटल प्रोग्राम को दो साल के लिए रोक दिया और अंततः 2011 में इसे हमेशा के लिए बंद कर दिया.