शासन द्वारा इस कुंभ को यादगार बनाने के लिए विशेष प्रबंध के निर्देश दिए, हुए भी। पानी की तरह पैसा बहा कि संगमतट पर स्नान करने आए भक्त परेशान न हों, आसमान से धरती तक सुरक्षा की दृष्टि से निगरानी हो रही थी, फिर ऐसा क्या हुआ कि संगमनोज पर श्रद्धालुओं का दबाव बढ़ गया और बेरीकेट्स टूट गए और भगदड़ मच गई? सारे इंतजाम धडा़म हो गए, इसके पीछे क्या कारण रहे, आइए जानते हैं वेबदुनिया की ग्राउंड रिपोर्ट से...
होल्डिंग एरिया में नही रोके गए श्रद्धालु : महाकुंभ मेला में दूर-दराज से पहुंचे अत्यधिक श्रद्धालुओं को रोकने के लिए प्रशासन की तरफ से होल्डिंग एरिया बनाया गया है। जब बीते सोमवार से कुंभ मेले में भीड़ अत्यधिक हो गई थी, श्रद्धालु गुस्साए नजर आ रहे थे तो इन होल्डिंग एरिया का इस्तेमाल करते हुए मेला प्रशासन को भीड़ नियत्रंण का प्रयास करना चाहिए था। मेले की तरफ भीड़ बढ़ रही थी, जिसको जहां जगह मिल रही थी वह बैठ और सो रहा था। जो श्रद्धालु परिवार के साथ या जत्थों में संगमनोज के आसपास डेरा डाले हुए थे, उन्हें बुधवार को भोर में स्नान करना था। यदि स्थानीय प्रशासन ऐसे लोगों को होल्डिंग एरिया में रोक लेता तो शायद यह दुखद हादसा नही होता, 30 लोगों की जान बच सकती थी।
संगमनोज के लिए बने वन-वे प्लान पर नही हुआ एक्शन : कुंभ मेला प्रशासन ने श्रद्धालुओं की सुविधा के लिए वन-वे प्लान बनाया था। जिसके मुताबिक संगम स्नान करने वाले आए लोग काली सड़क से त्रिवेणी बांध पार करके संगम अपर रास्ते से गुजरते हुए संगम नोज तक पहुंचेंगे और फिर अक्षयवट मार्ग से होते हुए त्रिवेणी रूट से बाहर निकल जाएंगे। प्रशासन द्वारा बनाए गए इस वन-वे प्लान पर एक्शन नहीं हुआ, फलस्वरूप भगदड़ मच गई क्योंकि भक्तों की भीड़ संगम अपर मार्ग पर ही डटी रही। प्रशासन के बनाए रूट यानी अक्षयवट मार्ग के जरिए बहुत कम श्रद्धालु संगमनोज पहुंचे थे। एक रास्ते से आवागमन होना भगदड़ का कारण बन गया।
कुंभ मेले में बने 30 पांटून पुल में अधिकांश बंद : महाकुंभ नगरी प्रयागराज में कुंभ मेले को सुचारू ढंग से संचालित करने के लिए 30 पांटून पुल बनाए गए थे, लेकिन इसके अधिकांश पुल बंद रखे गए। 27 जनवरी को सिर्फ 13, 14, 15 पुल चालू किए थे, अखाड़े मार्ग को बंद रखा गया था। 28 जनवरी में केवल सात पुल 3, 14, 15, 17, 18, 19, 22 चालू रखे गए थे। मौनी अमावस्या यानी 29 जनवरी में केवल 10 करोड़ श्रद्धालुओं के लिए 1, 2, 13, 14, 15, 17, 18, 19 22 नम्बर के पुल खोले गए। अधिकांश पुल बंद होने के जिसके कारण झूंसी से आने वाले श्रद्धालुओं को लगभग 10 किलोमीटर तक पैदल चलना पड़ रहा था, पैदल चले हुए बुजुर्ग, महिलाएं और बच्चे थककर चूर हो रहे थे, थकान मिटाने के लिए वह संगमनोज पर बैठकर सुस्ता रहे थे। जिसके चलते संगमनोज पर भीड़ का दबाव बढ़ रहा था और यह हादसा हो गया।
वीवीआईपी मूवमेंट भी हो सकता है हादसे की वजह : 27-28 जनवरी में कुंभ स्नान करने वीआईपी कैटेगिरी के लोग पहुंचे थे। गृहमंत्री अमित शाह, बाबा रामदेव, अरुणाचल प्रदेश के गृहमंत्री मामा नातुंग, मिलिंद सोमन, किरन रिजिजू, अमेरिकी रॉक बैंड कोल्डप्ले कज सिंगर क्रिस मार्टिन, रामायण में राम का किरदार निभाने वाले/सांसद अरुण गोविल। वीवीआईपी मूवमेंट के कारण अधिकांश पुल बंद हुए, जिससे श्रद्धालुओं की भीड़ एक स्थान पर ज्यादा एकत्रित हो गई, लंबा सफर तय करने के कारण थकान मिटाने के लिए रुक गए।
प्रमुख मार्गों पर बैरीकेड्स भी हो सकती है वजह : सरकार इस कुंभ मेले को यादगार बनाकर एक नया कीर्तिमान स्थापित करना चाहती है, जिसके लिए प्रशासन ने कुंभ मेले के चारों तरफ की सड़कों से अतिक्रमण हटाकर चौड़ा किया, लेकिन इन चौड़े मार्गों में से कुछ को बंद रखा गया, वहीं कुछ मुख्य मार्गों पर बैरिकेडिंग लगा दिए गए, जो स्नान करने आए श्रद्धालुओं के लिज मुसीबत बन रहा था। बेरीकेट्स के कारण लंबा चलना पड़ रहा था, लगातार चलने से थकान में चूर लोग संगम के किनारे आराम फरमा रहे थे। एक जगह बैठने के बाद उनका संगमतट छोड़ने का मन नही कर रहा था, यह भी हादसे की वजह बन गई।
सीआईएसएफ का कैंप दूरी बनी वजह : महाकुंभ में अप्रिय घटना से निपटने के लिए सुरक्षाबलों के कैंप स्थापित किए गए थे। यह कैंप बहुत दूर बने हुए थे, मेले के सेक्टर-10 में सीआईएसएफ का कैंप बनाया गया था। प्रशासन की चूक रही कि उसने अलग-अलग सेक्टरों के लिए सीआईएसएफ का कैंप नहीं लगाया था। संगमनोज से सेक्टर 10 की दूरी थी, इसलिए जब देर रात्रि में लगभग 1 बजे के करीब भगदड़ मच गई तो सीआईएसएफ को बुलाया गया। मेले में बेतहाशा भीड़ के बीच से गुजरकर सेक्टर 3 तक आने में काफी समय चला गया। यदि हर मेला सेक्टर के अंदर प्रशासन सीआईएसएफ की एक टुकड़ी लगा देता तो जल्दी भीड़ को नियंत्रित करते हुए घायलों को जल्दी उपचार मिल जाता।
प्रशासन की रणनीति गलत साबित हुई : मौनी अमावस्या के देश के विभिन्न राज्यों और विदेशों से श्रद्धालु महाकुंभ में स्नान के लिए पहुंचे हुए हैं। मौनी अमावस्या पर आने वाले श्रद्धालु ब्रह्म मुहूर्त में संगमतट पर स्नान को आतुर दिखाई दिए। ब्रह्म बेला में स्नान का इंतजार करते हुए उन्होंने संगमनोज के आसपास जमावड़ा लगा लिया, वहीं बैठना और सोना हादसे एक मुख्य वजह बन गई। मेले के नोडल अधिकारी और प्रशासन को पर व्यवस्था करनी चाहिए थी श्रद्धालुओं को रात्रि आठ बजे संगम पर रवाना न करते बल्कि दो बजे संगमनोज के लिए व्यवस्थित तरीके से रवाना किया जाए। ताकि वह पावन अमृत बेला में स्नान करके अगले पड़ाव पर बढ़ सकें।
कुंभ में लगे अधिकारी हैं हादसे के जिम्मेदार : महाकुंभ मेले में कमिश्नर विजय विश्वास पंत का एक वीडियो भी सामने आया है, जिसमें वह श्रद्धालुओं से देर रात से स्नान करने की अपील करते नजर आ रहे थे और साथ ही उन्होंने भगदड़ की आशंका भी व्यक्त की थी। कमिश्नर एनाउंसमेंट कर रहे थे कि सभी श्रद्धालु सुन लें यहां लेटे रहने से कोई फायदा नहीं है। जो सोवत है, वो खोवत है। उठिए स्नान करिए। यह आपके सुरक्षित रहने के लिए है। भगदड़ मचने की संभावना है। आप पहले आए हैं तो आपको पहले अमृत मिल जाना चाहिए। सभी श्रद्धालुओं से करबद्ध निवेदन है कि उठें, उठें सोए नहीं।
वहीं, एसएसपी राजेश द्विवेदी पर भीड़ को कंट्रोल करने का जिम्मा था। उसके साथ ही उनके कधों पर मौनी अमावस्या पर साधुओं को अमृत स्नान कराने की जिम्मेदारी थी, लेकिन व भीड़ को कंट्रोल नही कर पाए। श्रद्धालु 28 जनवरी की रात्रि में संगमनोज की तरफ बढ़ते रहे और वहीं बैठ गए, सो गए, जिसके चलते भीड़ का दबाव बढ़ा, बैरीकेड्स टूट गए और भगदड़ मच गई।
नींद से जागा प्रशासन : कुंभ मेले में अमृत स्नान से पहले भगदड़ के बाद अफसरों की नींद टूटी। भगदड़ में 30 लोगों की मौत और बड़ी संख्या में घायल हुए हैं। घटना के बाद प्रशासन ने कुंभ में कई बदलाव किए हैं। मेला परिक्षेत्र को पूरी तरह नो-व्हीकल जोन घोषित किया, वीवीआईपी पास कैंसिल कर दिए हैं। वन-वे रूट का सख्ती से पालन करने के निर्देश और साथ ही पड़ोसी जिलों से आ रहे वाहनों को बॉर्डर पर ही रोकना और कारों को पूरी तरह प्रतिबंधित कर दिया गया। मेला प्रशासन ने औराई स्थित काशीराज इंटर कॉलेज, गोपीगंज में गुलाबधर मिश्र इंटर कॉलेज, गोपीगंज के रामलीला मैदान, राजपूत ढाबा के पीछे और ऊंज में रामदेव पीजी कॉलेज के पास होल्डिंग एरिया बनाया है, जहां वाहन रोके जा रहे हैं।
Edited by: Vrijendra Singh Jhala