Property Rights: पत्नी अपने पति की मंजूरी के बिना बेच सकती है प्रोपर्टी, कोर्ट ने अपने फैसले में बता दिया
Himachali Khabar Hindi February 07, 2025 11:42 AM

कलकत्ता हाईकोर्ट (Calcutta High Court) ने एक महत्वपूर्ण फैसले में साफ फैसला सुनाया है कि अगर प्रॉपर्टी (Property) किसी महिला के नाम पर है, तो उसे बेचने के लिए अपने पति की अनुमति की आवश्यकता नहीं है। इस फैसले ने पारिवारिक संपत्ति से जुड़े अधिकारों पर समाज में लंबे समय से चली आ रही गलतफहमियों को दूर करने का काम किया है।

क्या है हाईकोर्ट का निर्णय?

कलकत्ता हाईकोर्ट की डिवीजन बेंच, जिसमें जस्टिस हरीश टंडन और जस्टिस प्रसेनजीत बिश्वास शामिल थे, ने एक याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा कि पत्नी को पति की संपत्ति की तरह नहीं देखा जा सकता। कोर्ट ने इस बात पर जोर दिया कि महिलाओं को अपने फैसलों के लिए पति की अनुमति की आवश्यकता नहीं होनी चाहिए, खासकर जब संपत्ति उनके नाम पर हो।

कोर्ट ने कहा, “अगर पति अपनी पत्नी की सहमति के बिना प्रॉपर्टी बेच सकता है, तो पत्नी भी वही अधिकार रखती है। ऐसी स्थिति को क्रूरता या सामाजिक नियमों का उल्लंघन नहीं माना जा सकता।”

ट्रायल कोर्ट का फैसला रद्द

हाईकोर्ट ने ट्रायल कोर्ट (Trial Court) के उस फैसले को खारिज कर दिया, जिसमें कहा गया था कि क्योंकि पत्नी के पास आय का कोई स्रोत नहीं था, इसलिए संपत्ति बेचने के लिए पति की सहमति जरूरी है। हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया कि चाहे संपत्ति का भुगतान किसी ने भी किया हो, अगर वह संपत्ति महिला के नाम पर है, तो उसके अधिकारों को सीमित नहीं किया जा सकता।

लैंगिक समानता और संवैधानिक अधिकारों पर जोर

हाईकोर्ट ने अपने फैसले में टिप्पणी करते हुए कहा कि वर्तमान समाज में महिलाओं को पुरुषों से कमतर समझने की मानसिकता को बदलना जरूरी है। अदालत ने कहा, “संविधान में लैंगिक समानता को प्राथमिकता दी गई है। महिलाओं के अधिकारों को सीमित करना संविधान की मूल भावना का उल्लंघन है।”

पति-पत्नी के अधिकारों पर कोर्ट की टिप्पणी

कोर्ट ने अपनी टिप्पणी में कहा कि पढ़े-लिखे और समझदार पति-पत्नी को अपने अधिकारों और कर्तव्यों के प्रति संवेदनशील होना चाहिए। महिला के अपने नाम पर दर्ज प्रॉपर्टी को बेचने के निर्णय को क्रूरता के दायरे में लाना न केवल गलत है, बल्कि लैंगिक असमानता को भी बढ़ावा देता है।

ट्रायल कोर्ट का निर्णय क्यों था विवादित?

2014 में, ट्रायल कोर्ट ने इस आधार पर फैसला दिया था कि चूंकि संपत्ति का भुगतान पति ने किया था, इसलिए पत्नी को इसे बेचने के लिए पति की मंजूरी लेनी होगी। हाईकोर्ट ने इस फैसले को गैर-मान्य और अनुचित बताया। अदालत ने स्पष्ट किया कि संपत्ति का नाम महिला के नाम पर होने से वह उसकी वैध मालिक बनती है, चाहे भुगतान किसी ने भी किया हो।

तलाक के मामले में भी हाईकोर्ट का हस्तक्षेप

ट्रायल कोर्ट ने इस प्रकरण में क्रूरता का आधार मानते हुए पति के पक्ष में तलाक की डिक्री जारी की थी। हाईकोर्ट ने इस डिक्री को भी रद्द करते हुए कहा कि संपत्ति से जुड़े अधिकारों पर फैसले लेने के लिए पति की अनुमति की आवश्यकता का तर्क समाज की प्रगतिशीलता के खिलाफ है।

फैसले के मायने और संदेश

यह फैसला न केवल महिलाओं के संपत्ति अधिकारों को सुरक्षित करता है, बल्कि समाज में लैंगिक समानता की दिशा में एक बड़ा कदम भी है। हाईकोर्ट ने अपने फैसले में यह भी स्पष्ट किया कि किसी भी स्थिति में महिलाओं को उनके संवैधानिक अधिकारों से वंचित नहीं किया जा सकता।

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