आजकल एक नई चिंताजनक स्वास्थ्य समस्या देखने को मिल रही है, जिसमें बहुत कम उम्र की लड़कियों में पीरियड्स शुरू हो रहे हैं। चिकित्सा की भाषा में इसे 'प्रीकोशियस प्यूबर्टी' कहा जाता है। यह एक ऐसी स्थिति है जिसमें बच्चों का शरीर सामान्य उम्र से पहले ही यौवन की ओर बढ़ने लगता है। विशेषज्ञों के अनुसार, लड़कियों में 8 साल और लड़कों में 9 साल की उम्र से पहले यौवन के लक्षण दिखना चिंता का विषय है।
प्रीकोशियस प्यूबर्टी के लक्षणइस स्थिति में लड़कियों में स्तनों का विकास, शरीर पर बालों का आना और पीरियड्स शुरू होना जैसे लक्षण दिखाई देते हैं। वहीं लड़कों में आवाज का भारी होना, शरीर पर बाल आना और अंडकोष का आकार बढ़ना जैसे बदलाव नजर आते हैं। इसके अलावा, दोनों में तेजी से लंबाई बढ़ना और त्वचा पर मुंहासे आना भी इसके लक्षण हो सकते हैं।
प्रीकोशियस प्यूबर्टी के कारणइस समस्या के पीछे कई कारण हो सकते हैं। कुछ मामलों में यह आनुवंशिक हो सकता है, जबकि अन्य में पर्यावरणीय कारक भूमिका निभा सकते हैं। मोटापा, तनाव, खान-पान की गलत आदतें और कुछ रासायनिक पदार्थों के संपर्क में आना भी इसके कारण हो सकते हैं। कभी-कभी मस्तिष्क में ट्यूमर या हार्मोनल असंतुलन भी इसका कारण बन सकता है।
प्रीकोशियस प्यूबर्टी के प्रभावसमय से पहले यौवन आने के कई नकारात्मक प्रभाव हो सकते हैं। बच्चों की लंबाई कम रह सकती है क्योंकि उनकी हड्डियां जल्दी विकसित होकर बंद हो जाती हैं। इसके अलावा, मानसिक स्वास्थ्य पर भी असर पड़ सकता है। बच्चे अपने साथियों से अलग महसूस कर सकते हैं और उन्हें भावनात्मक समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है।
निदान और उपचारयदि माता-पिता को अपने बच्चे में समय से पहले यौवन के लक्षण दिखाई दें, तो उन्हें तुरंत चिकित्सक से संपर्क करना चाहिए। डॉक्टर विभिन्न परीक्षणों और जांचों के माध्यम से इसका निदान करते हैं। उपचार के लिए हार्मोन थेरेपी का इस्तेमाल किया जा सकता है, जो यौवन की प्रक्रिया को धीमा कर सकती है।
रोकथाम के उपायहालांकि प्रीकोशियस प्यूबर्टी को पूरी तरह से रोकना मुश्किल है, लेकिन कुछ उपाय अपनाकर इसके जोखिम को कम किया जा सकता है। स्वस्थ जीवनशैली अपनाना, संतुलित आहार लेना और नियमित व्यायाम करना महत्वपूर्ण है। प्लास्टिक के बर्तनों के इस्तेमाल से बचना चाहिए क्योंकि इनमें मौजूद कुछ रसायन हार्मोन के असंतुलन का कारण बन सकते हैं।
माता-पिता की भूमिकामाता-पिता का सहयोग इस स्थिति से निपटने में बहुत महत्वपूर्ण है। उन्हें अपने बच्चों के साथ खुलकर बात करनी चाहिए और उनके सवालों का धैर्यपूर्वक जवाब देना चाहिए। बच्चों को भावनात्मक सहारा देना और उनके आत्मविश्वास को बढ़ावा देना जरूरी है।