कोलकाता: कोलकाता नगर निगम (KMC) द्वारा विश्वकर्मा पूजा की छुट्टी रद्द कर ईद-उल-फितर की छुट्टी बढ़ाने का आदेश जारी होते ही पश्चिम बंगाल की राजनीति में भूचाल आ गया। इस फैसले के बाद विपक्षी दल भाजपा ने इसे सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस (TMC) द्वारा मुस्लिम तुष्टिकरण का खुला उदाहरण बताया। आदेश के अनुसार, 17 सितंबर 2025 को विश्वकर्मा पूजा की छुट्टी रद्द कर, 31 मार्च 2025 और 1 अप्रैल 2025 को ईद-उल-फितर की दो दिन की छुट्टी घोषित की गई थी। यह आदेश विशेष रूप से हिंदी मीडियम स्कूलों के लिए था, लेकिन बवाल बढ़ने के बाद नगर निगम को इस फैसले को रद्द करना पड़ा।
नगर निगम ने सफाई देते हुए इसे ‘टाइपिंग एरर’ बताया और शिक्षा विभाग के उस अधिकारी को कारण बताओ नोटिस जारी किया, जिसने इस आदेश पर हस्ताक्षर किए थे। KMC के शिक्षा विभाग के मुख्य प्रबंधक द्वारा 25 फरवरी 2025 को इस आदेश पर हस्ताक्षर किए गए थे, जिसमें कहा गया था कि विश्वकर्मा पूजा की छुट्टी के बदले ईद की छुट्टी दो दिन की कर दी गई है। इस आदेश के खिलाफ जनता और विपक्ष में जबरदस्त आक्रोश देखने को मिला, जिसके चलते इसे तत्काल रद्द कर दिया गया। भाजपा ने इस मुद्दे को तुष्टिकरण की राजनीति से जोड़ा और TMC पर मुस्लिम समुदाय को खुश करने के लिए बहुसंख्यक समुदाय के पर्वों की अनदेखी करने का आरोप लगाया। बंगाल भाजपा के महासचिव जगन्नाथ चट्टोपाध्याय ने कहा कि यह विश्वास करना मुश्किल है कि नगर निगम अधिकारी इस फैसले से अनभिज्ञ थे। उन्होंने सवाल उठाया कि बिना उच्च अधिकारियों की अनुमति के ऐसा आदेश कैसे जारी किया गया।
भाजपा नेता अमित मालवीय ने भी ममता सरकार पर तीखा हमला बोला। उन्होंने कहा कि ममता बनर्जी के करीबी सहयोगी और कोलकाता के मेयर फिरहाद हकीम के निर्देश पर हिंदुओं के प्रमुख पर्व विश्वकर्मा पूजा की छुट्टी रद्द कर दी गई, जबकि ईद की छुट्टी एक दिन से बढ़ाकर दो दिन कर दी गई। भाजपा ने इसे हिंदू विरोधी मानसिकता का प्रमाण बताया। यह पहली बार नहीं है जब ममता बनर्जी सरकार पर मुस्लिम तुष्टिकरण के आरोप लगे हैं। 2023 में भारत के पिछड़ा वर्ग आयोग (NCBC) ने एक रिपोर्ट जारी की थी, जिसमें बताया गया था कि बंगाल सरकार बड़े पैमाने पर मुस्लिम जातियों को ओबीसी आरक्षण दे रही है। इससे वास्तविक पिछड़े वर्गों का हक मारा जा रहा है। यहां तक कि रिपोर्ट में इस बात की भी आशंका जताई गई थी कि इस आरक्षण का लाभ रोहिंग्या और अवैध बांग्लादेशी नागरिकों को भी मिल रहा है।
इसके अलावा, बंगाल में कई बार हिंदू पर्वों को लेकर भी विवाद सामने आते रहे हैं। दुर्गा पूजा और सरस्वती पूजा के आयोजनों को लेकर सरकारी आदेशों में हस्तक्षेप की शिकायतें की गई हैं। वहीं, मुस्लिम समुदाय के पर्वों पर किसी तरह की कोई रोकटोक नहीं देखी जाती। रामनवमी और हनुमान जन्मोत्सव के जुलूसों पर भी कई बार बंगाल के मुस्लिम बहुल इलाकों में पथराव की घटनाएं हुई हैं। ममता बनर्जी का रवैया हमेशा ही अल्पसंख्यक तुष्टिकरण की ओर झुका दिखता है। रामनवमी के जुलूस पर पथराव की घटनाओं के बाद ममता ने गैर-जिम्मेदाराना बयान देते हुए कहा था कि जुलूस मुस्लिम बहुल इलाकों से निकाला ही क्यों गया। यह बयान अपने आप में दर्शाता है कि ममता सरकार किस तरह एक समुदाय विशेष को प्राथमिकता देने में लगी हुई है।
यही नहीं, ममता बनर्जी अवैध बांग्लादेशियों और रोहिंग्याओं को देश से बाहर निकालने के हर प्रयास का भी विरोध करती रही हैं। NRC और CAA जैसे कानूनों का बंगाल में सबसे ज्यादा विरोध भी इसी वजह से हुआ था। हाल ही में ममता बनर्जी ने महाकुंभ मेले को 'मृत्युकुंभ' कहकर एक और विवाद को जन्म दिया। 18 फरवरी 2025 को पश्चिम बंगाल विधानसभा में उन्होंने प्रयागराज में चल रहे महाकुंभ मेले को 'मृत्युकुंभ' बताया। ममता ने आरोप लगाया कि इस आयोजन में वीआईपी लोगों को विशेष सुविधाएं दी जा रही हैं, जबकि आम श्रद्धालुओं के लिए पर्याप्त व्यवस्थाएं नहीं हैं। इस बयान से हिंदू समुदाय की धार्मिक भावनाएं आहत हुईं और विपक्ष ने इसे हिंदू विरोधी मानसिकता का एक और उदाहरण बताया। कोलकाता नगर निगम ने आदेश वापस लेते हुए इसे टाइपिंग एरर बताया, लेकिन यह सफाई कई सवालों के जवाब नहीं देती। आदेश बिना उच्च अधिकारियों की अनुमति के कैसे जारी हुआ? क्या इसे जारी करने वाले अधिकारी पर केवल नोटिस देना पर्याप्त है या कठोर कार्रवाई होनी चाहिए? क्या सच में यह सिर्फ टाइपिंग मिस्टेक थी या फिर यह ममता सरकार की तुष्टिकरण नीति का हिस्सा था?
बंगाल में जिस तरह से लगातार हिंदू पर्वों को दबाने और मुस्लिम पर्वों को प्राथमिकता देने के मामले सामने आ रहे हैं, वह ममता बनर्जी सरकार की नीतियों पर गंभीर सवाल खड़े करते हैं। अब देखना होगा कि इस मामले में बंगाल सरकार कितनी पारदर्शिता रखती है और दोषियों पर क्या कार्रवाई करती है।
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