पांच साल पहले स्वर्ण रथ पर बिठाकर लाए गए आकाश आनंद को बसपा सुप्रीमो मायावती ने पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा दिया। रविवार को पार्टी ने प्रेस विज्ञप्ति जारी कर कहा कि अब आकाश आनंद बसपा के किसी भी पद पर नहीं रहेंगे।
मायावती ने अपने भाई आनंद कुमार और रामजी गौतम को नेशनल कोऑर्डिनेटर नियुक्त कर दिया है। मायावती कब किसे हायर करें और कब फायर, यह कोई नहीं जानता!
आकाश आनंद की विदाई का असली कारण क्या?
बसपा ने हाल ही में पार्टी के बड़े नेता अशोक सिद्धार्थ को भी बाहर का रास्ता दिखाया था। आकाश आनंद इन्हीं अशोक सिद्धार्थ के दामाद हैं। मायावती ने श्वसुर-दामाद दोनों से सारे संबंध खत्म कर लिए।
बसपा सुप्रीमो के तेजी से लिए जा रहे फैसले पार्टी को कमजोर कर रहे हैं। यही कारण है कि कभी राष्ट्रीय स्तर की पार्टी बसपा अब राज्य की मान्यता भी खोने की कगार पर है।
भतीजे को हटाया, भाई को लाया!
जब आकाश आनंद की बसपा में एंट्री हुई थी, तो माना जा रहा था कि वे मायावती के उत्तराधिकारी बनेंगे। लेकिन अब मायावती ने यू-टर्न लेते हुए उन्हें बाहर कर दिया और अपने भाई आनंद कुमार पर भरोसा जताया।
आज उन्होंने यह भी साफ कर दिया कि उनके जीते जी कोई भी नेता उत्तराधिकारी नहीं बनेगा। इस फैसले ने बसपा कार्यकर्ताओं को भी चौंका दिया है।
मायावती की नाराजगी का कारण क्या है?
2022 के विधानसभा चुनाव और 2024 के लोकसभा चुनाव में बसपा का खराब प्रदर्शन।
आकाश आनंद के ससुर अशोक सिद्धार्थ से दूरी बढ़ाना।
पार्टी में गुटबाजी रोकने के लिए कड़े फैसले।
बसपा बन रही है ‘जेबी पार्टी’?
मायावती ने अशोक सिद्धार्थ को निकालते समय आरोप लगाया था कि उन्होंने पार्टी को दो धड़ों में बांटने की साजिश की। अब उन्होंने आकाश आनंद के निष्कासन पर कहा कि चूंकि वे अशोक सिद्धार्थ के दामाद हैं, इसलिए उन पर उनके ससुर और पत्नी का प्रभाव रहेगा।
एक ओर मायावती कांशीराम की नीतियों का हवाला देकर नाते-रिश्तेदारों को पार्टी में लाने के खिलाफ थीं, वहीं उन्होंने पहले भतीजे और अब भाई को पार्टी में जगह दी।
बसपा का कैडर न आकाश की बढ़ती दखल को सह सका और न ही उनके अचानक निष्कासन को। कार्यकर्ता मायावती के फैसलों से भ्रमित हैं और पार्टी अंदरूनी संघर्ष से जूझ रही है।
बसपा का सिकुड़ता जनाधार और मायावती की पकड़ कमजोर?
कभी राष्ट्रीय स्तर की पार्टी रही बसपा की स्थिति अब उत्तर प्रदेश में भी कमजोर हो गई है।
2009 में हरियाणा में बसपा ने करनाल लोकसभा सीट जीती थी।
2018 में राजस्थान विधानसभा में बसपा को 4 सीटें मिली थीं, लेकिन सभी विधायक बाद में कांग्रेस में शामिल हो गए।
मध्य प्रदेश में भी बसपा के विधायक कांग्रेस में चले गए।
प्रश्न उठता है कि कैडर-बेस्ड पार्टी होने के बावजूद बसपा में इतनी टूट-फूट क्यों हो रही है?
क्या मायावती कांशीराम की विरासत को खत्म कर रही हैं?
बसपा संस्थापक कांशीराम ने पार्टी को दलितों, पिछड़ों और अल्पसंख्यकों का मजबूत मंच बनाया था। लेकिन मायावती की नीतियों ने बसपा को एक जाति-विशेष तक सीमित कर दिया।
टिकट बेचने के आरोपों ने पार्टी कार्यकर्ताओं में असंतोष बढ़ाया।
बंद कमरों में होने वाली बैठकें और लोकतांत्रिक प्रक्रिया की कमी पार्टी को कमजोर कर रही है।
मायावती के फैसले कार्यकर्ताओं तक नहीं पहुंचते, जिससे असंतोष बढ़ रहा है।
राजनीति में बड़ा दिल चाहिए!
राजनीति में सफलता पाने के लिए नेता को पार्टी और वोट बैंक का विस्तार करना होता है। लेकिन मायावती ने पहले भतीजे को, फिर भाई को आगे कर बसपा को संकीर्ण दायरे में समेट दिया।
अगर पार्टी को पुनर्जीवित करना है, तो मायावती को कांशीराम की नीतियों पर वापस लौटना होगा। वरना बसपा का भविष्य और भी अनिश्चित हो सकता है!
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